मैली से निर्मल यमुना – दूर की एक हक़ीक़त

गुस्ताख़ी माफ़ हरियाणा -पवन कुमार बंसल il

‘“ मैली से निर्मल यमुना’ एक दूर की हकीकत ? हमारे जागरूक पाठक डॉ शिव सिंह रावत के सौजन्य सें li

राजनीतिक परिप्रेक्ष्य:
दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में यमुना नदी का प्रदूषण संकट एक प्रमुख मुद्दा रहा। अरविंद केजरीवाल ने हरियाणा पर यमुना में “जहर” घोलने का आरोप लगाया, लेकिन आँकड़े कुछ और ही बया करते हैं।असल में यमुना दिल्ली में प्रवेश के समय अपेक्षाकृत साफ होती है लेकिन राजधानी में ही अत्यधिक प्रदूषित हो जाती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के नेतृत्व में बीजेपी ने इस बयान को आम आदमी पार्टी (आप) के खिलाफ इस्तेमाल किया और तीन साल में यमुना को साफ करने का वादा किया।पहली बार यमुना प्रदूषण ने चुनावों में जनता एवं मीडिया का ध्यान आकर्षित किया।इस मुद्दे ने मतदाताओं को प्रभावित किया, जिससे आप पार्टी की हार हुई ।

अब दिल्ली और हरियाणा दोनों राज्यों में बीजेपी की सरकार होने से, नदी को पुनर्जीवित करने के लिए समन्वित प्रयासों की उम्मीद है। सरकार को राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से हटकर समाधान की ओर ध्यान देना होगा जिसकी अच्छी शुरुआत हो भी चुकी है।

यमुना का प्रदूषण संकट:
यमुना प्रदूषण संकट को समझना
यमुना हिमालय से निकलकर उत्तराखंड और हरियाणा से होते हुए दिल्ली में प्रवेश करती है। हथिनीकुंड बैराज पर नदी के लगभग 80 प्रतिशत पानी को सिंचाई के लिए मोड़ दिया जाता है, जिससे दिल्ली पहुंचते-पहुंचते इसका प्रवाह बहुत कम हो जाता है। वज़ीराबाद बैराज पर दिल्ली अपने पीने के पानी के लिए और अधिक जल निकाल लेती है, जिससे नदी लगभग सूख जाती है। दिल्ली में वज़ीराबाद से ओखला के बीच का 22 किलोमीटर का हिस्सा सबसे ज्यादा प्रदूषित है, जहां यमुना में 78 प्रतिशत प्रदूषण एकत्रित होता है। मुख्य प्रदूषण स्रोतों में अनधिकृत कॉलोनियों से आने वाला अनुपचारित सीवेज, अक्षम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी), औद्योगिक कचरा, ठोस अपशिष्ट और कृषि अपवाह शामिल हैं। नदी के किनारे अवैध अतिक्रमण से जल प्रवाह बाधित होता है, जिससे समस्या और बढ़ जाती है।

प्रदूषण का स्तर:
हाल में किए गए जल गुणवत्ता परीक्षणों से चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए। जल में घुली हुई ऑक्सीजन (डीओ) का स्तर, जो जलीय जीवन के लिए आवश्यक है, सबसे प्रदूषित हिस्सों में लगभग शून्य हो गया। जैव रासायनिक ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी), जो जल में मौजूद कार्बनिक प्रदूषण को दर्शाता है,100 मिलीग्राम प्रति लीटर (एमजी/लि) तक पहुंच गया, जबकि स्वीकार्य सीमा केवल 3 है।
वहीं, फीकल कोलीफॉर्म का स्तर 2,50,000 एमपीएन/ 100 मिलि तक दर्ज किया गया, जिससे यह पानी मानव संपर्क के लिए पूरी तरह अनुपयुक्त है । सर्दियों में अमोनिया और फॉस्फेट की उच्च मात्रा जहरीले झाग के निर्माण का कारण बनती है। वज़ीराबाद में नजफगढ़ नाला, पानीपत मैन ड्रेन-2, गुड़गांव में बादशाहपुर नाला और ओखला के पास शाहदरा नाला प्रमुख प्रदूषण स्रोत बने हुए हैं। जब तक इन नालों का गंदा पानी यमुना नदी में डलने से पहले साफ नहीं होता, तब तक किसी भी सफाई अभियान का असर सीमित रहेगा।

दिल्ली में सरकार की चार-स्तरीय योजना (2025-2027)
बीजेपी सरकार ने यमुना को साफ करने के लिए चार-स्तरीय रणनीति बनाई है: नदी के तल से कचरा और गाद हटाना, नजफगढ़ और अन्य बड़े नालों की सफाई , एसटीपी की क्षमता बढ़ाना और उनकी दैनिक निगरानी करना एवं नदी में ताजा जल प्रवाह बनाए रखना और आगे कचरा गिरने से रोकना हालांकि, इस पहल की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि कानून कितनी सख्ती से लागू किए जाते हैं, वित्तीय सहायता कितनी निरंतर मिलती है, और जनता कितनी सक्रिय भागीदारी करती है।

चुनौतियाँ और रुकावटें:
हालांकि राजनीतिक तौर पर यमुना सफाई अभियान चलाया जा रहा है , लेकिन कई चुनौतियाँ अब भी बनी हुई हैं। प्रदूषण नियंत्रण कानूनों का पालन कमजोर रहा है, जिससे उद्योग और लोग अब भी खुले में कचरा छोड़ते हैं। अनधिकृत कॉलोनियाँ लगातार बढ़ रही हैं, जिनमें उचित सीवेज सिस्टम नहीं है, जिससे अनुपचारित कचरा यमुना में जा रहा है।
इसके अलावा नदी के किनारों पर अतिक्रमण से प्राकृतिक जल प्रवाह बाधित होता है। यमुना नदी के तल में अवैध रेत खनन से गंभीर पर्यावरणीय क्षति हो रही है। जो नदी प्रवाह मार्ग को बदलने, जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव एवं नदी किनारे के कटाव का मुख्य कारण है। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीच समन्वय भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि यमुना का प्रदूषण कई राज्यों से प्रभावित होता है।

क्या 2027 तक यमुना को साफ किया जा सकता है?
यमुना को प्रदूषण मुक्त करना अगले तीन वर्षों में कठिन जरूर है, लेकिन असंभव नहीं। हालांकि पूरी तरह से पुनर्जीवन में अधिक समय लग सकता है। लेकिन अगर नदी में गिरने वाले गंदे पानी को उपचारित किया जाए तथा ठोस कचरे का उचित प्रबंधन किया जाए तो स्थिति काफ़ी हद तक
सुधर सकती है ।

यमुना पुनर्जीवन के उपाय:
1. सीवेज ट्रीटमेंट में सुधार – एसटीपी की दक्षता बढ़ानी होगी और उन्नत तकनीक का विकास करना होगा। अनधिकृत कॉलोनियों में छोटे स्तर पर एसटीपी प्लांट लगाने चाहिएँ।

2. प्राकृतिक उपचार तकनीकें (फाइको-रिमेडिएशन) – माइक्रोएल्गी और डायटम्स का उपयोग कर प्रदूषकों को प्राकृतिक रूप से तोड़ा जा सकता है। फाइकोरेमेडियन नैनो टेक्नोलॉजी पर
आधारित इनसिटू, किफ़ायती और पर्यावरण अनुकूल तकनीक है। इससे मैन ड्रैन-2, नजफगढ ड्रैन, शाहदरा ड्रैन, आगरा कैनाल के ज़हरीले पानी को साफ किया जा सकता है। 750 एमएलडी गंदे पानी को साफ करने की अनुमानित लागत ₹50-60 करोड़ आएगी।

3. पानी के प्रवाह की बहाली – यमुना के प्रदूषण की एक बड़ी वजह नदी में पानी के प्रवाह की कमी है। यदि यमुना बाढ़ क्षेत्र के राज्य बारिश में बाढ़ के पानी का संरक्षण एवं रिचार्ज करें तो यमुना से कृषि के लिए कम पानी की निकासी होगी जिससे नदी में नियंत्रित रूप से ताजा पानी छोड़ा जा सकता है। जिससे यमुना का ईकोसिस्टम बेहतर होगा।

4. औद्योगिक प्रदूषण पर सख्ती – अवैध उद्योगों पर कार्रवाई और सख्त पर्यावरणीय मानकों को सख्ती से लागू करना आवश्यक होगा।

5. जन जागरूकता और सहभागिता – पर्यावरण एवं नदी संरक्षण के लिए जनभागीदारी बहुत आवश्यक है। सफाई अभियानों, कचरा प्रबंधन और पर्यावरण-अनुकूल आदतों को बढ़ावा देने के लिए नागरिकों को आगे आना चाहिए।

आगे का रास्ता:
यमुना की सफाई के लिए केवल अल्पकालिक प्रयासों से काम नहीं चलेगा, बल्कि दीर्घकालिक सुधारों की आवश्यकता है। अनुपचारित सीवेज का नदी में गिरना रोकना, उद्योगों को पर्यावरण मानकों का पालन करने के लिए बाध्य करना एवं राजनीतिक जवाबदेही को मजबूत करना आवश्यक होगा।

निष्कर्ष

यमुना सिर्फ एक नदी नहीं, बल्कि लोगों की जीवनरेखा है। इसे पुनर्जीवित करना कोई विकल्प नहीं, बल्कि हमारे भविष्य के लिए एक अनिवार्यता है। यदि सरकारें ठोस कदम उठाएँ और जनता सक्रिय रूप से सहयोग करे, तो वर्ष 2027 तक मैली से निर्मल एवं स्वच्छ यमुना संभव हो सकती है।

विशेषज्ञ की राय:
डॉ. शिव सिंह रावत, जो हरियाणा के सिंचाई और जल संसाधन विभाग में पूर्व अधीक्षण अभियंता रह चुके हैं, यमुना नदी और जल संसाधनों के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने आईआईटी दिल्ली से यमुना नदी और हरियाणा के जल संसाधनों पर पीएचडी की है। वे ‘यमुना बचाओ अभियान’ के संयोजक भी हैं और यमुना नदी के संरक्षण के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं।

यमुना नदी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए डॉ. रावत ने #WalkForYamuna अभियान की शुरुआत की। इस अभियान के तहत उन्होंने 7 दिनों तक पैदल चलकर यमुना नदी के किनारे-किनारे यात्रा की, ताकि आम जनता को नदी संरक्षण और पर्यावरण की महत्ता के प्रति संवेदनशील बनाया जा सके। उनके अनुसार, यमुना की मौजूदा स्थिति बेहद गंभीर है, और इसके पुनर्जीवन के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, ठोस नीतियां और जनभागीदारी अत्यंत आवश्यक हैं।

 

Leave A Reply

Your email address will not be published.