world autism awareness day: आज मनाया जा रहा विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस, जानें क्या है यह बीमारी इसके लक्षण औऱ उपचार
प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज्म ग्रसित होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक को होती है यह बीमारी
हर साल 2 अप्रैल को विश्व स्तर पर ऑटिज्म जागरूकता दिवस यानी आत्मकेंद्रित दिवस मनाया जाता है। विश्व ऑटिज़्म जागरूकता दिवस मनाने का उद्देश्य लोगों को ऑटिज़्म के बारे में जागरुक करना और उन लोगों को सपोर्ट करना है जो इस विकार का सामना कर रहे हैं।
इतिहास
विश्व केंद्रित जागरूकता दिवस 1 नवंबर 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ परिषद ने पारित किया गया था और 18 दिसंबर 2007 को इसे लागू कर दिया गया
विश्व आत्मकेंद्रित जागरूकता दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्रों के बीच विभिन्न प्रकार के ऑटिज्म / आत्मकेंद्रित डिसऑर्डर के प्रति जागरूकता लाने से संबंधित है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अनुसार, विश्व ऑटिज्म दिवस का उद्देश्य “ऑटिस्टिक लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने की आवश्यकता पर प्रकाश डालना है ताकि वे समाज के अभिन्न अंग के रूप में पूर्ण और सार्थक जीवन जी सकें।” पहला विश्व आत्मकेंद्रित दिवस वर्ष 2008 में 2 अप्रैल को मनाया गया था। विश्व आत्मकेंद्रित दिवस केवल सात आधिकारिक स्वास्थ्य-विशिष्ट संयुक्त राष्ट्र दिवसों में से एक है।
ऑटिज्म क्या है?
ऑटिज्म एक न्यूरोलॉजिकल स्थिति है, जो व्यक्ति में आजीवन रहती है। बच्चों में कम उम्र में ही यह स्थिति उजागर हो जाती है। जो बच्चा ऑटिज्म से पीड़ित होता है, उसमें मुख्य तौर से सामाजिक दुर्बलता, बात करने में मुश्किल, प्रतिबंधित व्यवहार , व्यवहार में दोहराव जैसे लक्षण दिखाई देते है।
आसान शब्दों में कहे तो ऑटिज्म एक तंत्रिका संबंधी विकार है, जो किसी व्यक्ति की दूसरों के साथ संवाद करने की क्षमता को प्रभावित करता है। जो बचपन में शुरू होता है और वयस्कता तक रहता है।
भारत के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार प्रति 110 में से एक बच्चा ऑटिज्म ग्रसित होता है और हर 70 बालकों में से एक बालक इस बीमारी से प्रभावित होता है। इस बीमारी की चपेट में आने के बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज्यादा संभावना है। इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका ज्ञात नहीं है।
ऑटिज्म का उपचार
वर्तमान में ऑटिज्म के लिए कोई उपचार उपलब्ध नहीं है। ऐसा माना जाता है कि हर व्यक्ति में ऑटिज्म के लक्षण अलग अलग होते हैं, इसलिए हर व्यक्ति को विशेष उपचार देने से ही बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। ऑटिज्म के मुख्य लक्षणों का इलाज करने में दवाइयां कारगार नहीं होती हैं। लेकिन वे बेचैनी, डिप्रेशन, सनकी और जुनूनी व्यवहार को कंट्रोल करने में मदद कर सकती हैं।
ऐसे बच्चे जो ऑटिज्म से पीड़ित हैं उनके लिए लाइफस्टाइल से जुड़े बदलाव मददगार साबित हो सकते हैं जैसे- ऐसे बच्चों के साथ धीरे-धीरे और साफ आवाज में बात करना, बच्चे से बातचीत करते समय बार-बार बच्चे का नाम दोहराएं। ताकि बच्चा यह समझ सके कि आप उसी से बात कर रहे हैं।
बच्चे को आपकी बात समझने और फिर उसका जवाब देने के लिए पर्याप्त समय लेने दें..बातचीत के दौरान हाथों से इशारे करें और तस्वीरों की मदद भी ले सकते हैं।