भगवान शिव की जटाओं से क्यों बहती है मां गंगा? जानिए इसके पीछे का रहस्य

हिंदू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है, और इन सभी देवी-देवताओं को खूबसूरत वस्त्रों और आभूषणों से सजाया जाता है। लेकिन भगवान शिव एक ऐसे देवता हैं जिनका स्वरूप अन्य सभी देवी-देवताओं से बहुत अलग और अनोखा है। भोलेनाथ का रूप जब भी ध्यान में आता है, तो एक अलग सी प्रतिमा बनती है। भगवान शिव के गले में आभूषण नहीं, बल्कि सांपों की माला है, उनके सिर पर मुकुट नहीं, बल्कि चंद्र देवता विराजमान हैं, और उनकी जटाओं से मां गंगा बहती हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मां गंगा भगवान शिव की जटाओं से क्यों बहती हैं? आइए जानते हैं इसके पीछे का रहस्य।

मां गंगा को धरती पर क्यों आना पड़ा?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां गंगा स्वर्गलोक में रहती थीं। एक दिन भागीरथ ने अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए मां गंगा को धरती पर लाने का संकल्प लिया। इस संकल्प को पूरा करने के लिए उन्होंने घोर तपस्या की और मां गंगा को प्रसन्न किया। इसके बाद मां गंगा ने भागीरथ की मनोकामना पूरी करने के लिए धरती पर आने का निर्णय लिया।

हालांकि, अब समस्या यह थी कि मां गंगा का वेग इतना तेज था कि वह सीधे धरती पर नहीं आ सकती थीं, क्योंकि धरती उसका सामना नहीं कर सकती थी। उनके तेज प्रवाह से सृष्टि नष्ट हो सकती थी। इस समस्या के समाधान के लिए भागीरथ ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी समस्या बताई। ब्रह्मा जी ने बताया कि यदि भगवान शिव को प्रसन्न किया जाए तो यह समस्या हल हो सकती है।

भगवान शिव की जटाओं से गंगा क्यों बहती है?
ब्रह्मा जी की सलाह पर भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए घोर तपस्या शुरू की। भगवान शिव ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भागीरथ ने अपनी समस्या बताई, जिसके बाद भोलेनाथ ने अपनी जटाओं को खोल दिया और मां गंगा को अपनी जटाओं में समाने को कहा। इस तरह, मां गंगा ने देवलोक से भगवान शिव की जटाओं में प्रवेश किया, जिससे उनके वेग में कमी आई। अब वे धरती पर आकर लोगों का उद्धार करने के लिए तैयार हो गईं। भगवान शिव ने मां गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया, इसीलिए उन्हें “गंगाधर” के नाम से भी जाना जाता है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित है। कृपया इस पर किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

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