ग़ुस्ताखी माफ़ हरियाणा -पवन कुमार बंसल
राम सहाय वर्मा की यादे – डॉ रणबीर सिंह फोगाट
संसार से किसी के चले जाने के पश्चात हम दुआ करते हैं कि दिवंगत की आत्मा को शान्ति मिले. असल में वे हमारी यादों में किसी न किसी वजह से समाये रहते हैं. हरयाणा प्रांत में एक समय प्रशासन के सर्वोच्च पद चीफ सेक्रेटरी के पद पर रहे श्री राम सहाय वर्मा जी कल 13 जनवरी को 84 वर्ष की उम्र में सिधार गए. सन 2017-18के आसपास इनकी पुस्तक ‘माय एनकाउंटर्स विद द थ्री लाल्स ऑफ़ हरयाणा’ का प्रकाशन हुआ था. मैंने इसे तभी पढ़ लिया था और मन में यह ख्याल रखा कि जब भी चंडीगढ़-पंचकुला का टूर बनेगा वर्मा जी से मिलूंगा. उसी साल सर्दियों में जाना हुआ. एक आईएएस मित्र से वर्मा जी का फोन नंबर लिया और इनसे बातचीत करके मिलने का वक़्त ले लिया और उनके निवास स्थान का पता भी. बेटा मेरे साथ था.
मैं इनके साथ चार घंटा रहा. कुछ अपने बारे में बताया और उनकी अधिक सुनी. उनकी तीन बेटियां हैं जो शादीशुदा और बल-बच्चे वाली हैं. वे राजस्थान में जिला सीकर में एक ठिकाणे श्रीमाधोपुर के रहने वाले थे और शुरू में राजस्थान में कॉलेज टीचर लगे. कुछ समय बाद आईएएस का एग्जाम क्लियर किया जो सयुंक्त पंजाब में ज्वाइन किया. तभी हरयाणा बनाया गया तो इन्हें हरयाणा काडर दिया गया. इन्होंनें लग्न और ईमानदारी से काम किया. बातचीत के दौरान कहने लगे कि जिन्दगी में जो कुछ कमाई की उससे यह एक थ्री-बेडरूम फ्लैट और पंचकुला देहात में डेढ़ एकड़ खेती की जमीन ही ले पाया. बाक़ी का बेटियों की पढाई और शादी में खर्च हो गया. अब सिर्फ सरकार द्वारा दी जाने वाली पेंशन से ठीक गुज़र-बसर हो रही है. हरयाणा में वह शुरूआती विकास का दौर था जिसमें चौधरी बंसी लाल के विज़न को वर्मा जी ने किताब में अच्छे से बताया है.
मेरा बेटा उनकी इज़ाज़त लेकर मोबाइल से हमारी कुछ तस्वीरें ले रहा था कि मैंने पूछ लिया “आपकी पत्नी?”. एक आह भरकर बोले, “वह बहुत अच्छी थी. दस साल पहले मुझे छोड़कर चली गयी. बच्चों की छुट्टियां होती हैं तो बेटियां मेरे पास कुछ दिन रहने चली आती हैं.”
अचानक उठे और रसोईघर में जाकर चाय बनाने लगे. घर के काम के लिए एक महिला सहायक आयी हुयी थी. उसके हाथ में चाय-बिस्कुट न देकर खुद ट्रे में इन्हें रखकर लाये और पूछा दोपहर का खाना लेंगें तो अभी बोल देता हूं. मैंने कहा रोहतक वापिस जा रहा हूं. अभी इच्छा नहीं है.
मैंने किताब की रचना प्रक्रिया के बारे में इनसे पूछ तो कहने लगे कि इसका सीक्वल भी आएगा. पिछले साल फोन करके पूछा था तो कहने लगे कि अभी वक़्त लगेगा. किताब की रचना प्रक्रिया के बारे में कहने लगे कि मैंने अपने प्रशासनिक कार्यकाल के बारे में नोट्स बनाए थे. इन्हें विस्तार देकर किताब बना दी.
यह किताब पढने में रोचक है, किसी की निंदा नहीं और अनावश्यक आलोचना भी नहीं है. इससे मालूम होता है कि पॉलिटिकल सोच वाले शासकों और प्रशासनिक अफसरों में कैसे रिश्ते होते हैं और क्यों वे पोलीटिकल गवर्नेंस के विरुद्ध एक शब्द भी नहीं बोल सकते. मैंने तीन-चार और आईएएस अफसरों के अनुभवों पर आधारित किताबें पढीं हैं. सरदार प्रताप सिंह कैरों पर भी, जो इनके पुत्र ने लिखी है. यह भी शानदार है. ऐसी किताबों से हमें वास्तविक धरातल पर आकर सचाई जानने का मौक़ा मिलता है. आमतौर से ऐसी बातें कभी मीडिया में नहीं आतीं. मुझे एक बात का अहसास जरूर होता है कि पोलिटिकल गपबाजी और मीडिया रिपोर्ट्स से अपने कांक्लुजन्स, अर्थात किसी व्यक्ति और घटना के बारे में निष्कर्ष, निर्धारित न करें और अपनी राय भी न बनाएं जब तक उस व्यक्ति के साथ लम्बे अरसे तक आपके अनुभव न हुए हों. मीडिया में पोलिटिकल रिपोर्ट्स को मैं कभी तरजीह नहीं देता. इनमें से अनेक स्कैंडलस होती हैं. अगर किसी मीडिया पर्सन के पास फैक्ट्स होते भी हैं और वह इन्वेस्टीगेशन करता भी है तो भी पोलिटिकल गवर्नेंस पर कोई ख़ास फर्क नहीं पड़ता बशर्ते इसे पूरे मीडिया ग्रुप की सपोर्ट न हो. उदाहरण के लिए अरुण शौरी ने जब इंडियन एक्सप्रेस में तीन दिन लगातार तीन खण्डों में ‘इंदिरा गांधी एज कॉमर्स’ रिपोर्ट्स का प्रकाशन किया तो तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अब्दुल रहमान अंतुले के परखचे उड़ गए थे. इंदिरा जी ने उन्हें तुरत डिसमिस कर दिया था. बड़ा बवाल उठा था. लेकिन इसके पीछे श्री रामनाथ गोयनका की साइलेंट सपोर्ट थी.i