गीता को समझने के लिए दिमाग का mature होना चाहिए, यह कम से कम उच्च श्रेणी से नीचे के विद्यार्थियों के समझ से बाहर है

ग़ुस्ताखी माफ़ हरियाणा – पवन कुमार बंसल

गीता को समझने के लिए दिमाग का mature होना चाहिए। यह कम से कम उच्च श्रेणी से नीचे के विद्यार्थियों के समझ से बाहर है- मुझे लगता है कि यह मामला राजनीतिक ज़्यादा है

हमारे जागरूक पाठक वीबी मलिक के सौजन्य सेi गीता मैंने बचपन में पढ़ी थी, लेकिन उस समय गीता का मर्म समझ में नहीं आया। गीता को समझने के लिए दिमाग का mature होना चाहिए। यह कम से कम उच्च श्रेणी से नीचे के विद्यार्थियों के समझ से बाहर है। जीव, शरीर आत्मा, परमात्मा, कर्म,अकर्म, विकर्म, जन्म, पुनर्जन्म गहन शब्द हैं। दूसरे दुनिया में लगभग 30 % लोग नास्तिक हैं, जो भगवान को नहीं मानते। इसी संदर्भ में, श्रीकृष्ण अर्जुन को यह कहते हैं कि, यह ज्ञान उन को नहीं दिया जाए, जो मुझ में विश्वास नहीं करते।
वास्तव में, गीता महाभारत का एक भाग है। इस में श्रीकृष्ण अर्जुन को गीता का संदेश तब देते हैं,जब अर्जुन युद्ध क्षेत्र में अपने सामने अपने बन्धु, आदरणीय रिश्ते दारों व गुरुओं को पाता है, तो लड़ने से इन्कार कर देता है, तब श्रीकृष्ण अर्जुन को लड़ने के लिए, अपने प्रेमियों, रिश्तेदारों को युद्ध में मारने की कहते हैं। इस का सात्विक, राजसिक और तामसिक बुद्धि , भोजन आदि की क्या तारतम्यता है।
उच्च श्रेणी के विद्यार्थियों के लिए पाठ्यक्रम में गीता के कुछ श्लोक ही रखे जा सकते हैं। मुझे लगता है कि यह मामला राजनीतिक ज्यादा है।

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