मोदी सरकार ने हाल ही में कैबिनेट मीटिंग में “वन नेशन वन इलेक्शन” प्लान को पास कर एक नई चर्चा का सबब बना दिया है। विपक्षी दलों का कहना है कि यह केवल चुनाव के दौरान लोगों का ध्यान भटकाने की एक रणनीति है। सरकार का दावा है कि इससे चुनावों के बार-बार होने वाले खर्चे में कमी आएगी और सरकारी तंत्र निष्ठापूर्वक काम कर सकेगा।
हालांकि, इस बिल को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। यदि राज्यों में अल्प बहुमत वाली सरकारें बनती हैं, तो उन्हें बचाने के लिए चुनाव तो कराए जाएंगे। इसके अलावा, अगर सरकार यह योजना लागू करने में असफल रहती है, तो यह केवल एक सपना साबित होगा।
विपक्षी दलों में यह भी चिंता है कि एक साथ चुनाव कराने से क्षेत्रीय पार्टियों का प्रभुत्व खतरे में आ जाएगा, क्योंकि मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। इससे राज्यों के स्थानीय मुद्दे पीछे रह सकते हैं, जिससे लोकतंत्र पर खतरा मंडरा सकता है।
केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में “वन नेशन-वन इलेक्शन” की सिफारिशें स्वीकार की गई हैं, जिसे पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में बनी उच्च स्तरीय कमेटी ने तैयार किया था। हालांकि, इस मुद्दे पर विवाद गहरा गया है, और विपक्ष इस पर सहमत नहीं है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह सब केवल एक फ्लॉप शो साबित होने वाला है, जिसका मुख्य उद्देश्य जनता का ध्यान भटकाना है। मोदी सरकार की छवि सुधारने के प्रयास में यह कानून बनाने की कोशिशें की जा रही हैं, जो अंततः उनकी गिरती लोकप्रियता को और बढ़ा सकती हैं।
पत्रकार सुसंस्कृति परिहार ने इस मुद्दे पर गहरी चिंता व्यक्त की है, जो दर्शाता है कि यह योजना कितनी विवादास्पद साबित हो सकती है।