द ड्रीमर फाउंडेशन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘द ड्रीमर थियेटर फेस्टिवल’ संपन्न
पटना: द ड्रीमर फाउंडेशन द्वारा आयोजित तीन दिवसीय ‘द ड्रीमर थियेटर फेस्टिवल’ 24 मार्च से 26 मार्च 2025 तक सफलता के साथ संपन्न हुआ। इस फेस्टिवल का आयोजन पटना के प्रयास रंगमंडल एक्जीबिशन रोड पर किया गया, जहां थियेटर प्रेमियों को विभिन्न नाटकों का मंचन देखने का अवसर मिला। इस फेस्टिवल ने न केवल दर्शकों को थियेटर की दुनिया से रूबरू कराया, बल्कि नाटक और रंगमंच के महत्व को भी पुनः जागरूक किया।
फेस्टिवल का उद्देश्य और महत्व
‘द ड्रीमर थियेटर फेस्टिवल’ का मुख्य उद्देश्य नाट्य कला के प्रति लोगों को जागरूक करना और थियेटर के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करना था। इस फेस्टिवल के आयोजन से न केवल शहर में रंगमंच के क्षेत्र में एक नया उत्साह पैदा हुआ, बल्कि स्थानीय कलाकारों को अपनी कला दिखाने का मंच भी मिला। इस दौरान प्रदर्शित नाटकों ने समाज के विभिन्न मुद्दों को सजीव रूप से प्रस्तुत किया, जिससे दर्शकों ने न केवल मनोरंजन किया, बल्कि गहरी सोच और समझ भी प्राप्त की।
पहला दिन: ‘फ्लॉप मैन’ का मंचन
पहले दिन, 24 मार्च 2025 को नाट्य संस्था ‘वॉयस फाउंडेशन’ ने नाटक ‘फ्लॉप मैन’ का मंचन किया। इस नाटक का नाट्य रूपांतरण विवेक ओझा और निर्देशन राहुल उपाध्याय (सम्राट) ने किया। नाटक ‘फ्लॉप मैन’ में एक ऐसे गांव के लड़के की कहानी प्रस्तुत की गई, जो एक लड़की से प्यार करता है और वह कई बार फ्लॉप होता है। नाटक में दर्शाया गया कि प्यार और रिश्तों में सफलता और असफलता को लेकर संघर्षों का सामना कैसे करना पड़ता है। यह नाटक दर्शकों को न केवल हास्य से भरपूर था, बल्कि इसके माध्यम से प्यार और नायक बनने की कड़ी मेहनत की वास्तविकता को भी उजागर किया गया।

नाटक के पात्रों ने अपनी दमदार अभिनय से न केवल कहानी को जीवंत किया, बल्कि यह भी दिखाया कि असफलता के बावजूद संघर्ष जारी रखना कितना महत्वपूर्ण है। दर्शकों ने नाटक को बहुत सराहा और इसके संवादों में अपनी जिंदगी के अनुभवों को महसूस किया।
दूसरा दिन: ‘लोक नृत्य’ का मंचन
फेस्टिवल के दूसरे दिन, 25 मार्च 2025 को नाट्य संस्था ‘रंगओला फाउंडेशन’ ने नाटक ‘लोक नृत्य’ का मंचन किया, जिसका निर्देशन रजनीकांत ने किया। यह नाटक एक लोक गीत पर आधारित था, जिसमें चैत होली और सोहर जैसे पारंपरिक लोक नृत्यों का स्वरूप दिखाया गया। इस नाटक में दर्शकों को भारतीय लोक संस्कृति, पारंपरिक नृत्य और संगीत से अवगत कराया गया।
नाटक में रंगीन और जीवंत परिधान, जीवंत संगीत और पारंपरिक नृत्यशैली ने दर्शकों को भारतीय संस्कृति की गहरी झलक दी। ‘लोक नृत्य’ न केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति थी, बल्कि इसके माध्यम से भारतीय समाज के पारंपरिक और सांस्कृतिक परिवेश को भी दिखाया गया। इस नाटक को देखकर दर्शकों को हमारे पारंपरिक लोक गीतों और नृत्य की महत्वपूर्ण धरोहर का अहसास हुआ।
तीसरा दिन: ‘जुर्म’ का मंचन
26 मार्च 2025 को फेस्टिवल के तीसरे और अंतिम दिन नाट्य संस्था ‘वॉयस फाउंडेशन’ ने नाटक ‘जुर्म’ का मंचन किया। यह नाटक एक इसाई लड़के जॉन की कहानी पर आधारित था, जो अपनी पत्नी से धोखा खा चुका होता है और चर्च के फादर के सामने कन्फेशन करने आता है। नाटक में यह दर्शाया गया कि कैसे एक व्यक्ति अपने जीवन के सबसे बड़े दुख और धोखे को स्वीकार कर सच्चाई का सामना करता है।
नाटक में विवेक कुमार ओझा, विजेंद्र महाजन, कुमार विशाल और हेमा जैसे कलाकारों ने मुख्य भूमिका निभाई। नाटक का लेखन ममता मेहरोत्रा द्वारा किया गया था, जबकि नाट्य रूपांतरण ब्रह्मानंद पांडे और निर्देशन विवेक कुमार ओझा ने किया था। इस नाटक में ध्वनि संचालन जितेंद्र कुमार जेमी और प्रकाश संचालन मनीष कुमार द्वारा किया गया था।
इस नाटक में जॉन की अंदरूनी पीड़ा और संघर्ष को बहुत सुंदर तरीके से दर्शाया गया। इसमें धार्मिक और सामाजिक मुद्दों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाओं को भी प्रस्तुत किया गया, जो दर्शकों के दिलों को छू गया। नाटक का संदेश था कि जीवन में कभी न कभी हम सभी को अपनी गलतियों का सामना करना पड़ता है, और सच्चाई का सामना करने से ही शांति मिलती है।
फेस्टिवल की सफलता और समापन
तीन दिवसीय ‘द ड्रीमर थियेटर फेस्टिवल’ का समापन एक भव्य समरोह के साथ हुआ, जिसमें सभी नाटकों के कलाकारों और निर्देशकों को उनके अद्वितीय योगदान के लिए सम्मानित किया गया। इस फेस्टिवल ने न केवल थियेटर के प्रति दर्शकों का प्रेम बढ़ाया, बल्कि यह भी साबित किया कि पटना जैसे शहरों में रंगमंच और नाट्य कला को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
फेस्टिवल के समापन पर द ड्रीमर फाउंडेशन के आयोजकों ने सभी दर्शकों, कलाकारों और नाट्य संस्थाओं का आभार व्यक्त किया और इस उम्मीद के साथ फेस्टिवल को समाप्त किया कि अगले साल भी इस प्रकार के आयोजनों का सिलसिला जारी रहेगा।
‘द ड्रीमर थियेटर फेस्टिवल 2025’ ने रंगमंच की दुनिया को पटना में एक नई दिशा दी और नाटक प्रेमियों को एक मंच प्रदान किया, जहां वे विभिन्न प्रकार के नाटकों का आनंद ले सकते थे। इस फेस्टिवल के माध्यम से न केवल मनोरंजन हुआ, बल्कि समाज के विभिन्न मुद्दों और मानवीय संवेदनाओं को भी उजागर किया गया। आयोजकों ने यह साबित किया कि थियेटर न केवल एक कला है, बल्कि यह समाज में जागरूकता फैलाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।