योगी-मोदी सरकार में सफाईकर्मी रामप्यारी डोमिन की दर्दनाक कहानी – पेंशन के इंतजार में भीख मांगकर आखिरी सांसें गिन रही हैं
रिपोर्ट: चंदन दुबे
बाबुओं की फाइलों में दफन पेंशन – सरकारी लापरवाही की एक और त्रासदी
गाजीपुर। जिस देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डोम राजा के चरण धोकर सामाजिक समरसता का संदेश देते हैं, “सबका साथ, सबका विकास” का उद्घोष करते हैं, उसी देश में रामप्यारी डोमिन – एक सेवानिवृत्त सफाईकर्मी – अपनी पेंशन के इंतजार में भीख मांगकर अपनी आखिरी सांसें गिन रही हैं।
रामप्यारी डोमिन की यह कहानी सिर्फ एक महिला की नहीं, बल्कि बाबुओं की लापरवाही, अफसरशाही की उदासीनता और सरकार की निष्क्रियता का आइना है।
बिना पेंशन के 5 साल – सरकार के “सफाईकर्मियों के सम्मान” का असली चेहरा
रामप्यारी डोमिन 30 सितंबर 2015 को नगर पालिका परिषद, गाजीपुर से सेवानिवृत्त हुईं, लेकिन पेंशन आज तक शुरू नहीं हुई। सिस्टम का भ्रष्टाचार और लालफीताशाही इस हद तक विकराल हो चुकी है कि एक गरीब सफाईकर्मी अपने हक के लिए पांच सालों से भीख मांगने को मजबूर हो गई है।
सरकारी बाबू और अधिकारी जब भी रामप्यारी नगर पालिका पहुंचती हैं, तो उन्हें एक ही जवाब दिया जाता है – “फाइल आगे बढ़ रही है। सवाल यह है कि यह फाइल कब तक आगे बढ़ेगी? क्या रामप्यारी की सांसों से भी धीमी है यह सरकारी प्रक्रिया?
पति की पारिवारिक पेंशन भी अटकी, बीमारी ने जकड़ा, मदद के लिए कोई नहीं!
रामप्यारी के पति सरबाज डोम भी सफाईकर्मी थे और मृतक आश्रित कोटे से नियुक्त हुए थे। लेकिन उनकी पारिवारिक पेंशन भी आज तक नहीं मिल पाई।
रामप्यारी को टीबी और दमा जैसी गंभीर बीमारियां हैं, लेकिन इलाज के लिए फूटी कौड़ी तक नहीं। यह हाल तब है जब सरकार “गरीबों को मुफ्त इलाज” और “सामाजिक सुरक्षा” देने का दावा करती है।
बिना सूचना के नौकरी से हटाया, एक झटके में खत्म कर दिया जीवनयापन का सहारा
2020 में, जब रामप्यारी अपने अधिकारों के लिए लड़ रही थीं, तो सरकार ने बिना किसी सूचना के उनकी नौकरी खत्म कर दी। न कोई पत्र, न कोई आदेश – बस एक झटके में उनका जीवनयापन का अंतिम सहारा भी छीन लिया गया।
अब सवाल यह है कि जो सरकार “सबका साथ, सबका विकास” का दावा करती है, वह आखिर किसका विकास कर रही है?
प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से लेकर नगर विकास मंत्री तक को गुहार, लेकिन कोई सुनवाई नहीं!
रामप्यारी डोमिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, नगर विकास मंत्री, समाज कल्याण मंत्री और सफाई आयोग तक पत्र भेजे, लेकिन जवाब में सिर्फ आश्वासन मिला, कोई ठोस कार्रवाई नहीं।
सरकारें सफाईकर्मियों के लिए सांकेतिक सम्मान की बड़ी-बड़ी बातें करती हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि इन्हीं सफाईकर्मियों को अपने हक के लिए भीख मांगनी पड़ रही है।
क्या सफाईकर्मियों को सिर्फ मरने के बाद सम्मान मिलता है?
रामप्यारी डोमिन की यह कहानी पूरे सफाईकर्मी समाज के लिए एक सवाल खड़ा करती है –क्या सरकार सफाईकर्मियों को जीते-जी उनका हक देने में अक्षम है? /-क्या सफाईकर्मियों को सिर्फ मौत के बाद ही मुआवजा और सरकारी सहानुभूति मिलती है?/-क्या यह सिस्टम इतना संवेदनहीन हो चुका है कि एक बीमार बुजुर्ग महिला को भीख मांगने पर मजबूर कर दिया
अब भी सिस्टम नहीं जागेगा, या रामप्यारी की मौत का इंतजार किया जा रहा है?
रामप्यारी डोमिन की यह त्रासदी सिर्फ एक सरकारी लापरवाही नहीं, बल्कि देश की अफसरशाही के पतन और गरीबों के प्रति सरकार की असंवेदनशीलता का सबसे बड़ा प्रमाण है।
अब देखना यह है कि क्या सरकार और अफसर इस पर संज्ञान लेंगे या यह मामला किसी और रामप्यारी की मौत के बाद ही सुना जाएगा?