अलवर: तीन वर्षीय चेतना की बोरवेल में गिरकर हुई दुखद मौत के बाद भी प्रशासन की लापरवाही का सिलसिला जारी है। जिला मुख्यालय पर ही खुले बोरवेल नजर आ रहे हैं, जिससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण इलाकों में इनकी स्थिति कितनी बदतर होगी। कोटपूतली-बहरोड़ की घटना के बाद आमजन को उम्मीद थी कि प्रशासन अब सक्रिय होकर कार्रवाई करेगा, लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं।
केंद्रीय गाइडलाइंस सिर्फ कागजों तक सीमित
केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय की गाइडलाइन के तहत ब्लॉक और जिला स्तर पर कमेटियां बनाई गई हैं। ब्लॉक स्तर पर उपखंड अधिकारियों को खुले बोरवेल पर कार्रवाई का प्रभारी अधिकारी नियुक्त किया गया है। इसके अलावा, उच्च न्यायालय ने भी ऐसे हादसों को रोकने के लिए सख्त आदेश दिए हुए हैं। बावजूद इसके, प्रशासनिक कार्रवाई सिर्फ कागजों में सिमट कर रह गई है।
अलवर में खुले बोरवेल से बढ़ रहा खतरा
अलवर शहर के अशोका सिनेमा घर के सामने बापू बाजार में पिछले 20 दिनों से एक बोरवेल खुला हुआ है। इसे मात्र प्लास्टिक के कट्टे से ढका गया है, जो किसी भी बड़ी दुर्घटना को आमंत्रित कर सकता है। यह इलाका आवासीय है और बच्चों के साथ-साथ अन्य लोगों के लिए भी बड़ा खतरा बना हुआ है।
प्रशासन की उदासीनता
सरकारी अफसरों की लापरवाही का आलम यह है कि वे खुले बोरवेल के मुद्दे पर कागजी कार्रवाई तक सीमित हैं। न तो कोई ठोस कदम उठाए जा रहे हैं और न ही गाइडलाइंस का पालन किया जा रहा है। ऐसे में चेतना जैसी घटनाओं की पुनरावृत्ति की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता।
आमजन की अपील
स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से तुरंत कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि खुले बोरवेल के कारण हर दिन किसी न किसी हादसे की आशंका बनी रहती है। यदि प्रशासन समय रहते कदम उठाए तो ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है।
प्रशासन की उदासीनता और लापरवाही पर सवाल उठना लाजिमी है। चेतना की मौत ने समाज और सरकार को झकझोरा था, लेकिन हालिया हालात यह दर्शाते हैं कि सबक लेने के बजाय जिम्मेदार अधिकारी हादसों का इंतजार कर रहे हैं।