सिक्स डे वॉर: जब इज़राइल ने हमेशा के लिए बदल दिया पश्चिम एशिया का भूगोल

  • एन. के. रावत

1967 का सिक्स डे वॉर, जिसे हिंदी में “छह दिन का युद्ध” कहा जाता है, पश्चिम एशिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह युद्ध 5 से 10 जून 1967 तक चला। इसने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा और मध्य पूर्व के भू-राजनीतिक परिदृश्य को स्थायी रूप से बदल दिया। इस लेख में, हम इस महत्वपूर्ण संघर्ष की पृष्ठभूमि, घटनाक्रम, और परिणामों को विस्तार से समझेंगे।

युद्ध की पृष्ठभूमि

पश्चिम एशिया का तनाव
पश्चिम एशिया एक ऐसा क्षेत्र है जहां कभी भी शांति का माहौल नहीं रहा। यहाँ की राजनीति और भूगोल ने लगातार संघर्ष और तनाव को जन्म दिया है। 1948 में इज़राइल के निर्माण के बाद से, इज़राइल और उसके पड़ोसी अरब देशों के बीच विवाद और संघर्ष एक स्थायी स्थिति बन गए थे। इस क्षेत्र की जटिलताओं में धार्मिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक कारक भी शामिल थे।

1960 के दशक के आरंभ में यह तनाव अधिक बढ़ गया, जब मिस्र के राष्ट्रपति गमल अब्देल नासर ने इज़राइल के खिलाफ एक निर्णायक युद्ध की धमकी दी और अपनी सेना को तैयार किया। नासर ने तटीय जलमार्ग तटबंदी की और संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों को समाप्त करने की कोशिश की। इस तरह की गतिविधियों ने क्षेत्रीय तनाव को चरम पर पहुँचा दिया।

आंतरराष्ट्रीय स्थिति
इस अवधि में, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी तनाव बढ़ रहा था। अमेरिका और सोवियत संघ के बीच की शीत युद्ध की स्थिति ने पश्चिम एशिया में भी अपनी छाप छोड़ी। सोवियत संघ ने अरब देशों को समर्थन प्रदान किया, जबकि अमेरिका ने इज़राइल का समर्थन किया। इस स्थिति ने क्षेत्रीय संघर्ष को और अधिक जटिल बना दिया।

युद्ध की शुरुआत
सैन्य तैयारियाँ
5 जून 1967 की सुबह, इज़राइल ने एक अभूतपूर्व सैन्य आक्रमण शुरू किया। इसने ऑपरेशन प्रॉक्सी के तहत मिस्र की वायुसेना पर एक तेज और निर्णायक हमला किया। इज़राइल की वायुसेना ने मिस्र के हवाई ठिकानों को पूरी तरह से नष्ट कर दिया। इस आक्रमण ने मिस्र की सैन्य क्षमता को बुरी तरह प्रभावित किया और युद्ध की दिशा को बदल दिया।

पहला दिन
पहले दिन के दौरान, इज़राइल ने अपनी हवाई बढ़त का पूरा फायदा उठाया। मिस्र की वायुसेना के लगभग सभी प्रमुख ठिकाने नष्ट हो गए, जिससे इज़राइल की सेना को महत्वपूर्ण बढ़त मिल गई। इसके बाद, इज़राइल ने सिनाई प्रायद्वीप की ओर बढ़ना शुरू किया, जहाँ उसने मिस्र की रक्षा लाइनों को ध्वस्त कर दिया।

दूसरा और तीसरा दिन
जैसे-जैसे युद्ध का दूसरा और तीसरा दिन आया, इज़राइल ने अपनी आक्रामकता को बढ़ाया। इज़राइल ने जॉर्डन और सीरिया के साथ भी संघर्ष शुरू किया। 6 जून को, इज़राइल ने वेस्ट बैंक पर आक्रमण किया, जो उस समय जॉर्डन के अधीन था। इस आक्रमण ने इज़राइल को वेस्ट बैंक में महत्वपूर्ण किलेबंदी प्राप्त करने की अनुमति दी।

7 और 8 जून को, इज़राइल ने सीरिया के साथ संघर्ष शुरू किया और गोलान हाइट्स पर आक्रमण किया। सीरिया की सेना ने घेराबंदी की, लेकिन इज़राइल की तेज और निर्णायक कार्रवाइयों ने उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। गोलान हाइट्स पर कब्जा इज़राइल के लिए एक महत्वपूर्ण रणनीतिक लाभ था।

चौथा और पांचवाँ दिन
9 और 10 जून को, युद्ध ने अपने अंतिम चरण में प्रवेश किया। इज़राइल ने अपने कब्जे में आए क्षेत्रों को मजबूत करने और विस्तार करने की कोशिश की। मिस्र, जॉर्डन, और सीरिया ने संघर्ष समाप्त करने के लिए बातचीत शुरू की। इन बातचीतों के परिणामस्वरूप युद्ध समाप्त हुआ और इज़राइल ने एक निर्णायक विजय प्राप्त की।

युद्ध के परिणाम
भूगोल में परिवर्तन
सिक्स डे वॉर ने मध्य पूर्व के भूगोल में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। इज़राइल ने वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, गोलान हाइट्स, और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया। इस भू-भाग पर कब्जा इज़राइल के लिए एक महत्वपूर्ण जीत थी, लेकिन इसके साथ ही यह क्षेत्रीय विवादों को और गहरा करने का कारण भी बना।

राजनीतिक प्रभाव
इस युद्ध ने क्षेत्रीय राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया। मिस्र, जॉर्डन, और सीरिया की हार ने उनके सैन्य और राजनीतिक आत्म-संस्कार को प्रभावित किया। युद्ध के परिणामस्वरूप, अरब देशों ने अपनी सैन्य और कूटनीतिक रणनीतियों पर पुनर्विचार किया।

अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
युद्ध के बाद, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इस संघर्ष के प्रभावों को समझने के लिए विभिन्न प्रयास किए। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 1967 की प्रस्ताव 242 पारित किया, जिसमें इज़राइल को कब्जा किए गए क्षेत्रों को लौटाने और शांति वार्ता शुरू करने की बात की गई। इस प्रस्ताव ने भविष्य की शांति प्रक्रिया के लिए एक आधार प्रदान किया।

सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव
सिक्स डे वॉर ने न केवल राजनीतिक और भौगोलिक स्थितियों को प्रभावित किया, बल्कि इसने क्षेत्रीय समाज और संस्कृति पर भी गहरा असर डाला। युद्ध ने क्षेत्रीय संघर्ष और शांति की संभावनाओं को नया दृष्टिकोण प्रदान किया। इसके परिणामस्वरूप, मध्य पूर्व में शांति और स्थिरता के प्रयासों को नई दिशा मिली।

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