लखनऊ। कहा जाता है कि अगर पार्टी अधिक दिनों तक सत्ता से दूर रहती है तो उसके कार्यकर्ता और नेता दूसरी पार्टियों में भागने लगते हैं।ऐसे में पूर्व मुख्यमंत्री समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव जीत के भरपूर कोशिश में जुटे हैं।बड़ी पार्टियों से लेकर छोटी पार्टियों के साथ अखिलेश यादव ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा, लेकिन हर बार अखिलेश यादव असफल हुए। बड़ा सवाल उठता है कि क्या अखिलेश यादव को 2024 के गठबंधन सफलता मिल पाएगी।
सबसे पहले मुख्यमंत्री रहते हुए 2017 में अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ विधानसभा चुनाव में गठबंधन किया। बड़े जोर-शोर से राहुल गांधी और अखिलेश यादव चुनावी मैदान में उतरे। उत्तर प्रदेश की जनता ने दोनों को नकार दिया और एकतरफा जीत के साथ भाजपा ने सरकार बनाई। अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी।इसके बाद 2019 में लोकसभा चुनाव हुआ।वर्षों पुरानी दुश्मनी भुलाकर अखिलेश यादव ने मायावती के साथ गठबंधन किया।सपा और बसपा का पॉकेट वोट बैंक यूपी में काफी अधिक था। सपा और बसपा को मिला लिया जाए तो 45 फ़ीसदी से अधिक पॉकेट वोट इनके पास था,लेकिन परिणाम आए तो एक बार फिर अखिलेश यादव को मुंह की खानी पड़ी। 80 में 64 लोकसभा सीटों पर 2019 में भाजपा ने जीत हासिल कर ली। इसके बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने पश्चिम में आरएलडी, पूर्वांचल में सुभाषपा और कई छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन किया। प्रचंड बहुमत के साथ योगी सरकार फिर से दूसरी बार प्रदेश में बन गई, जिससे सवाल उठने लगे हैं कि क्या 2024 लोकसभा चुनाव में इंडि गठबंधन का परफॉर्मेंस अखिलेश यादव के लिए संजीवनी साबित होगा।
पीडीए यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक का नारा सपा और अखिलेश यादव ने दिया है।इसी के तहत अखिलेश यादव ने 40 फ़ीसदी से अधिक वोट प्रतिशत लेने का प्लान तैयार किया है।किसी भी तरीके से अखिलेश यादव सपा के परफॉर्मेंस को चर्चा में लाना चाहते हैं और ज्यादा से ज्यादा प्रत्याशियों को जीतना चाहते हैं।यही वजह है कि सपा हर छोटी बड़ी पार्टी से गठबंधन कर रही हैं।अभी तो प्रथम फेज का ही नामांकन शुरू हुआ है, लेकिन अखिलेश यादव ने कृष्णा पटेल की अपना दल (क) से गठबंधन तोड़ लिया है।इस बात का ऐलान खुद अखिलेश यादव ने प्रेस कांफ्रेंस करके किया।
अब कयास लगाए जा रहे हैं कि अपना दल (क) मिर्जापुर, फूलपुर, कौशांबी,प्रतापगढ़, बांदा, भदोही, प्रयागराज, चंदौली, रॉबर्ट्सगंज समेत एक दर्जन लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने की तैयारी में है।इन सीटों पर कुर्मी मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है।अपना दल (क) का पॉकेट वोट बैंक कुर्मी मतदाता है।बताया जा रहा है कि सपा केवल एक सीट अपना दल (क) को दे रही थी, जबकि अपना दल(क) तीन सीट की मांग कर रही थी। इसी पर बात नहीं बनी और अखिलेश यादव ने अपना दल(क) से गठबंधन तोड़ने का ऐलान कर दिया। अगर अपना दल(क) प्रदेश के एक दर्जन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारती है, तब अखिलेश यादव का पड़ा का फार्मूला निश्चित तौर पर डेंट होगा।