रामपुर में 50वें अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ’21वीं सदी में महिला नेतृत्व’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इससे पूर्व दरबार हॉल में इसी विषय पर प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया गया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रोफेसर नीरजा सिंह (इतिहास विभाग, सत्यवती कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली), विशेष अतिथि डॉ. किश्वर सुल्ताना (सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष, हिन्दी विभाग, राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर) एवं डॉ. बेबी तबस्सुम (एसोसिएट प्रोफेसर, जीवविज्ञान विभाग, राजकीय रजा स्नातकोत्तर महाविद्यालय, रामपुर) रहीं। बीज वक्तव्य वेंकटेश्वर विश्वविद्यालय, गजरौला की प्रो. मधु चतुर्वेदी ने प्रस्तुत किया।
नारी की भूमिका समाज के आधार स्तंभ की तरह: प्रो. मधु चतुर्वेदी
प्रो. मधु चतुर्वेदी ने अपने वक्तव्य में कहा कि नारी की भूमिका समस्त प्रगति, क्रियान्विति और सृजन के आधार स्तंभ की तरह है। नारी की चेतना प्रत्येक क्षेत्र में विद्यमान है। उन्होंने कहा, “नारी का आदिकाल से मानना है कि ‘मुक्ति का आधार पाना चाहती हूँ, ले सृजन के तार गाना चाहती हूँ’। वह सदैव नए क्षितिज प्राप्त करने की आकांक्षा रखती है।”
महिलाएँ अर्थव्यवस्था और सामाजिक संरचना में निभा रही हैं अहम भूमिका: डॉ. किश्वर सुल्ताना
डॉ. किश्वर सुल्ताना ने अपने संबोधन में कहा कि महिलाएँ कभी भी कर्मक्षेत्र में पीछे नहीं रहीं। उन्होंने न केवल परिवार और कृषि कार्यों में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। आज वे भारतीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने के लिए कई क्षेत्रों में नेतृत्व कर रही हैं। उन्होंने कहा, “महिलाएँ सूचना और संचार माध्यमों के माध्यम से अपने परिवार, समाज और आर्थिक स्थिति के सर्वांगीण विकास में योगदान दे रही हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा क्षेत्र में भी महिला नेतृत्व तेजी से बढ़ रहा है।”
नारी समाज और राष्ट्र की आधारशिला: डॉ. बेबी तबस्सुम
कार्यक्रम की विशेष अतिथि डॉ. बेबी तबस्सुम ने कहा, “लीडरशिप किसी के लिए भी एक व्यक्तिगत गुण होता है। विज्ञान की दृष्टि से यदि देखें तो जिस तरह इंसान की मूल इकाई एक कोशिका होती है, वैसे ही किसी देश, समाज और परिवार की मूल इकाई नारी है। नारी में इतनी शक्ति होती है कि वह पूरे समाज को परिवर्तित कर सकती है। 21वीं सदी की नारी इसी बदलाव का प्रतीक है।”
संविधान ने महिलाओं को विशेष शक्ति प्रदान की: प्रो. नीरजा सिंह
प्रो. नीरजा सिंह ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भारतीय संविधान ने महिलाओं की आवाज को सशक्त बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1950 से लेकर अब तक महिला नेताओं, रचनाकारों और नवाचारकों ने समाज में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कहा, “संविधान महिलाओं को विशेष अधिकार देता है, जिसके चलते वे आज विभिन्न क्षेत्रों में नेतृत्व कर रही हैं और भारत के विकास में योगदान दे रही हैं।”
स्त्री विमर्श और समाज में नारी की भूमिका: डॉ. पुष्कर मिश्र
पुस्तकालय के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने कहा कि वर्तमान विश्वदृष्टि में स्त्री और पुरुष दोनों का स्थान महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “आज स्त्री विमर्श मुख्य रूप से स्त्रियों को वस्तु मानकर देखा जाता है, और इस विचारधारा के विरुद्ध आवाजें उठ रही हैं। लेकिन हमें नारी को मुक्तता के रूप में देखने की आवश्यकता है।”
उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि प्रो. मधु चतुर्वेदी का महाकाव्य ‘देवयानी’ एक महत्वपूर्ण साहित्यिक योगदान है और भविष्य में वे ‘सीतायण’ की रचना करने के लिए प्रेरित हो सकती हैं। उन्होंने कहा, “21वीं सदी में महिलाएँ विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी हैं, और 22वीं सदी में स्त्रियाँ संपूर्ण विश्व का नेतृत्व करने वाली हैं। विकासवादी जीवविज्ञान भी इस विचार का समर्थन करता है कि नेतृत्व की क्षमता और सहनशक्ति महिलाओं में अधिक होती है।”
इस संगोष्ठी के माध्यम से यह स्पष्ट हुआ कि 21वीं सदी में महिला नेतृत्व की भूमिका और प्रभाव व्यापक हो चुका है। नारी शक्ति आज समाज, अर्थव्यवस्था, सुरक्षा, विज्ञान, और प्रशासन सहित हर क्षेत्र में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। विशेषज्ञों ने इस अवसर पर महिलाओं के उत्थान और नेतृत्व को और अधिक सशक्त करने की आवश्यकता पर बल दिया।