महाराष्ट्र सरकार की ‘लड़की बहिन’ योजना के खिलाफ जनहित याचिका दायर; HC ने तत्काल सुनवाई से किया इनकार

मुंबई।  शहर के एक चार्टर्ड अकाउंटेंट ने महाराष्ट्र सरकार की ‘मुख्यमंत्री माझी लड़की बहिन योजना’ के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की है। यह योजना महिलाओं के लिए नकद लाभ योजना है। याचिका में कहा गया है कि इससे करदाताओं पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

याचिकाकर्ता ने 9 जुलाई को इस योजना को शुरू करने वाले सरकारी प्रस्ताव को रद्द करने की मांग की है। इस योजना के तहत 21 से 65 वर्ष की आयु की उन महिलाओं के बैंक खातों में 1,500 रुपये का मासिक भत्ता भेजा जाएगा, जिनकी पारिवारिक आय 2.5 लाख रुपये से कम है।

इस योजना की घोषणा राज्य के बजट में की गई थी।

याचिकाकर्ता के वकील ओवैस पेचकर ने शुक्रवार को याचिका पर तत्काल सुनवाई और योजना के क्रियान्वयन पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश की मांग की, क्योंकि इस महीने के अंत में लाभार्थियों को यह राशि वितरित की जाएगी।

हालांकि, मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय और न्यायमूर्ति अमित बोरकर की खंडपीठ ने इसे अस्वीकार कर दिया और कहा कि याचिका पर ऑटो-लिस्टिंग प्रणाली के अनुसार सुनवाई की जाएगी।

मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, “ऑटो लिस्टिंग की प्रणाली को निरर्थक न बनाएं। अत्यावश्यकता का मतलब है विध्वंस या किसी को फांसी पर लटकाया जाना।”

हाई कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, जनहित याचिका पर 5 अगस्त को सुनवाई होने की संभावना है।

याचिकाकर्ता नवीद अब्दुल सईद मुल्ला ने दावा किया कि विवादित सरकारी योजना के माध्यम से “प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करदाताओं/राजकोष पर अतिरिक्त बोझ डाला जाता है, क्योंकि कर अवसंरचना विकास के लिए एकत्र किए जाते हैं, न कि तर्कहीन नकद योजनाओं के लिए”।

उन्होंने कहा, “ऐसी नकद लाभ योजनाएं आगामी राज्य विधानसभा चुनावों में वर्तमान गठबंधन सरकार में पार्टियों की ओर से किसी खास उम्मीदवार के पक्ष में वोट देने के लिए एक खास वर्ग के मतदाताओं को रिश्वत या उपहार देने के समान हैं।”

ऐसी योजना जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों के विरुद्ध है और “भ्रष्ट आचरण” के समान है।

जनहित याचिका में आगे दावा किया गया कि महिलाओं के लिए इस योजना पर लगभग 4,600 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह “महाराष्ट्र पर बहुत बड़ा बोझ है, जिस पर पहले से ही 7.8 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है और इसलिए इसे रद्द किया जाना चाहिए”।

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