नवरात्रि के दूसरे दिन देवी दुर्गा के दूसरे स्वरूप, मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। यह दिन विशेष रूप से तप, त्याग और संयम का प्रतीक माना जाता है। मां ब्रह्मचारिणी को ज्ञान, तपस्या और वैराग्य की देवी के रूप में पूजा जाता है। उनके आचरण और तप की वजह से उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा गया है। मान्यता है कि उनकी पूजा से जीवन की सभी परेशानियां दूर होती हैं और भक्तों के जीवन में त्याग, सदाचार और संयम जैसे गुणों का विकास होता है।
ऐसे पड़ा मां का नाम ब्रह्मचारिणी
शास्त्रों के अनुसार, मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर जन्म लिया। उन्होंने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए नारद मुनि के निर्देश पर कठोर तपस्या की। वर्षों तक कठिन साधना करते हुए बिना अन्न-जल ग्रहण किए उन्होंने तप किया। उनकी इसी साधना के कारण उन्हें ब्रह्मचारिणी या तपस्विनी कहा जाता है। नवरात्रि के दूसरे दिन उनके इसी स्वरूप की पूजा की जाती है, जो दृढ़ संकल्प और समर्पण का प्रतीक है।
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप
मां ब्रह्मचारिणी श्वेत वस्त्र धारण करती हैं और उनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल होता है। उनका यह रूप साधना, संयम और तपस्या का प्रतिनिधित्व करता है। यह देवी जल्दी प्रसन्न होती हैं और अपने भक्तों को ज्ञान, विद्या और शांति का वरदान देती हैं।
मां ब्रह्मचारिणी का प्रिय भोग
नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को चीनी या मिसरी का भोग लगाया जाता है। यह भोग भक्तों को लंबी आयु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है। चीनी का भोग अर्पित करने से जीवन में मिठास और अच्छे विचारों का प्रवेश होता है। इस दिन मां पार्वती की कठिन तपस्या को याद करते हुए संघर्ष और समर्पण का भाव जागृत होता है।
मां ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।