गुस्ताखी माफ हरियाणा-पवन कुमार बंसल

नायब सैनी सरकार का पहला "घोटाला",  सेक्टर-56 गुरुग्राम में कंट्री क्लब और हेल्थ क्लब को लीज पर देने का विवाद

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गुस्ताखी माफ हरियाणा-पवन कुमार बंसल।

नायब सैनी सरकार का पहला “घोटाला”,  सेक्टर-56 गुरुग्राम में कंट्री क्लब और हेल्थ क्लब को लीज पर देने का विवाद

 

एचएसवीपी के नियमों और विनियमों में गड़बड़ी, राजनीतिक हस्तक्षेप का आरोप

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कंट्री क्लब और हेल्थ क्लब की लीज पर विवाद
हरियाणा सरकार के तहत नायब सैनी के नेतृत्व में कथित रूप से एक नया विवाद सामने आया है। सेक्टर-56 गुरुग्राम में स्थित कंट्री क्लब और हेल्थ क्लब को 15 साल के लिए लीज पर देने का मामला उजागर हुआ है, जिसमें बाद में इसे अगले 15 वर्षों के लिए बढ़ाए जाने की संभावना जताई गई है। इस सौदे में पक्षपात और नियमों का उल्लंघन होने के आरोप हैं।

संदिग्ध एमओयू और राजनीतिक हस्तक्षेप
इस मामले में एक सनसनीखेज खुलासा हुआ है, जिसमें एचएसवीपी (हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण) के शीर्ष अधिकारियों के निजी पक्ष सुभाष इंफ्राइंजीनियर प्राइवेट लिमिटेड और महक़मे के बीच हस्ताक्षरित एमओयू (मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग) की प्रति को साझा करने में अनिच्छा दिखाई दी। एचएसवीपी के सीए चंद्र शेखर खरे और एस्टेट ऑफिसर बलिना ने इस एमओयू के नियम और शर्तों के बारे में पूछे गए सवालों का जवाब देने से बचते हुए न तो फोन उठाया और न ही संदेशों का जवाब दिया।

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लीज और रियायती समझौता
सूत्रों के मुताबिक, यह लीज 15 साल के लिए दी गई है, लेकिन इसे अगले 15 सालों के लिए बिना किसी कठिनाई के नवीकरणीय बनाया जा सकता है। यह नवीनीकरण केवल औपचारिकता तक सीमित है, क्योंकि एचएसवीपी के उच्च पदस्थ अधिकारियों की पूर्व मंजूरी के बाद इसे बढ़ाया जा सकता है।

सुभाष इंफ्राइंजीनियर को लीज पर विवाद
गोल्फ कोर्स एक्सटेंशन रोड पर स्थित करीब छह एकड़ का अर्ध-निर्मित कॉम्प्लेक्स 7.56 करोड़ रुपये सालाना पट्टे पर दिया गया है। इस सौदे से जुड़ी एलओए (लेटर्स ऑफ अवार्ड) मेमो नंबर 7803 दिनांक 20.11.2024 के संदर्भ में, एचएसवीपी और सफल बोली लगाने वाले सुभाष इंफ्राइंजीनियर प्राइवेट लिमिटेड के बीच रियायत समझौता निष्पादित किया जाना है। इसी संदर्भ में, 03.12.2024 को सुभाष इंफ्राइंजीनियर ने एचएसवीपी गुरुग्राम के ईओ द्वितीय को रियायती समझौते का मसौदा प्रस्तुत किया है।

सौदे में गड़बड़ी की आशंका
अधिकारियों के बीच पारदर्शिता की कमी और इस रियायती समझौते के पीछे के राजनीतिक और व्यावसायिक दबावों को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। इस मामले की जांच की मांग लगातार बढ़ रही है, क्योंकि इसमें कई स्तरों पर नियमों का उल्लंघन और पक्षपाती व्यवहार के संकेत मिलते हैं।

नौकरी और रियायती समझौते का भविष्य
इस सौदे के प्रति बढ़ती आलोचना और जांच के बावजूद, अभी तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। आगे की जांच और संभावित कानूनी कार्रवाई के परिणामस्वरूप यह सौदा सैद्धांतिक रूप से प्रभावित हो सकता है।

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