मिथिला पेंटिंग से रोजगार की नई राहें, नबिता झा का हुनर बना प्रेरणा स्रोत*
जीविका दीदी नबिता झा के द्वारा बनाई गई राखियों की बढ़ती मांग, खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों का अनूठा संगम*
दरभंगा: बिहार में दरभंगा जिले के सदर प्रखंड के कंसी गाँव की निवासी नबिता झा द्वारा खादी पेपर और प्राकृतिक रंगों से बनाई गई राखियां बेहद लोकप्रिय हो रही हैं। राखियों की अनूठी डिजाइन और पारंपरिक कलात्मकता ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया है जिससे उनकी माँग तेजी से बढ़ रही है।
भगवती जीविका स्वयं सहायता समूह से जुड़ी नबिता झा ने इस पारंपरिक कला को न सिर्फ देश के कई हिस्सों में फैलाया बल्कि विदेशों तक भी पहुंचाया है।
दिल्ली, पांडिचेरी, कर्नाटक, महाराष्ट्र जैसे राज्यों के अलावा इंग्लैंड और बार्सिलोना जैसे देशों से भी उन्हें मिथिला पेंटिंग के ऑर्डर मिल रहे हैं।
नबिता झा को मिथिला पेंटिंग की प्रेरणा और प्रशिक्षण उनकी माँ बौआ देवी से मिला जो मधुबनी जिले के जितवारपुर गाँव की निवासी और प्रतिष्ठित पद्मश्री पुरस्कार विजेता हैं। बौआ देवी को 1976 में राष्ट्रीय पुरस्कार और 2017 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। अपनी मां के मार्गदर्शन में, नबिता ने इस कला को न केवल आत्मसात किया बल्कि उसे और भी उन्नत बनाया।
नबिता का मानना है कि मिथिला पेंटिंग के माध्यम से बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सकते हैं। उनका कहना है कि मिथिला की यह बेमिसाल कला पूरी दुनिया में अपनी जगह बना सकती है,बशर्ते इसे सही दिशा और प्रोत्साहन मिले।
दरभंगा जिला परियोजना प्रबंधक (डीपीएम) डॉ. ऋचा गार्गी ने कहा कि मिथिला पेंटिंग के क्षेत्र में रोजगार की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने कहा कि इस कला का हर जगह सम्मान हो रहा है और यही कारण है कि आज के युवा एवं युवतियाँ मिथिला पेंटिंग की ओर तेजी से आकर्षित हो रहे हैं।
इसी कड़ी में नबिता झा को जीविका द्वारा विभिन्न मेलों में स्टॉल प्रदान किए गए जहाँ वे अपनी कलाकृतियों को बेचकर अपनी जीविका चला रही हैं।
उनके द्वारा खादी पेपर और नेचुरल रंगों का उपयोग कर बनाई गई राखियां भी बेहद लोकप्रिय हो रही हैं।
राखी बनाने का उनका यह प्रयास मिथिला पेंटिंग की कला का एक और अनुपम उदाहरण है जो न सिर्फ उन्हें आर्थिक सम्बल प्रदान कर रहा है बल्कि इस कला की माँग को भी बढ़ा रहा है।
दरभंगा जिले की नबिता झा अब युवतियों के लिए प्रेरणा स्रोत बन चुकी हैं। उनके प्रयासों ने यह साबित कर दिया है कि पारंपरिक कलाओं के माध्यम से भी वैश्विक पहचान बनाई जा सकती है।
मिथिला पेंटिंग जो सदियों से इस क्षेत्र की सांस्कृतिक धरोहर रही है अब नबिता झा जैसे कलाकारों के माध्यम से एक नए आयाम तक पहुंच रही है।