मक्का-किसानों की उन्नति के बजाय आयात की हड़बड़ी क्यों?

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी
डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी

 -डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी

विगत एक दशक से मक्का किसानों के लिए मक्का एक महत्वपूर्ण और आकर्षक फसल बनकर उभरी है, जिसे हम ‘Maizolution’ (मक्का+क्रांति) या सुनहरी क्रांति कह सकते हैं। इस क्रांति ने एक ओर मक्का किसानों की आर्थिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त किया है, तो दूसरी ओर खाद्य सुरक्षा, पशु चारे और औद्योगिक उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान किया है। आज भारत में कुछ राज्य मक्का के प्रमुख उत्पादक बन गए हैं, जिससे कई किसान पारंपरिक फसलों जैसे धान और गेहूं को छोड़कर मक्का की खेती की ओर रुख कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, मक्का की खेती का क्षेत्र लगभग 82.25 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो पिछले वर्ष के 74.56 लाख हेक्टेयर से 10% की उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाता है। इससे स्पष्ट होता है कि भारत बिना आयात के भी अपनी घरेलू मक्का की मांग को पूरा कर सकता है।

हालांकि, इस आशाजनक परिदृश्य के बावजूद, हाल ही में भारत सरकार मक्का के आयात पर विचार कर रही है। यह निर्णय मुख्य रूप से कुछ उद्योग संगठनों की मांग से प्रेरित है, जो पशु आहार के लिए मक्का की उपलब्धता को लेकर चिंतित हैं और अल्पकालिक आपूर्ति में कमी को लेकर अपनी आशंकाएं व्यक्त कर रहे हैं। इस कदम पर कई किसान संगठनों, मक्का किसानों और गैर सरकारी संस्थाओं ने सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि यदि भारतीय किसान मक्का का पर्याप्त उत्पादन कर सकते हैं, तो सरकार को मक्का के आयात की हड़बड़ी क्यों करनी चाहिए?

मक्का के आयात से आपूर्ति की समस्या का तात्कालिक समाधान मिल सकता है, लेकिन इससे भारतीय किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित करने की सरकार की कवायद में बाधा आ सकती है। आयात के कारण मक्का की कीमतों में गिरावट आ सकती है, जिससे घरेलू उत्पादन में कमी आ सकती है और भविष्य में भारत मक्का के लिए पूरी तरह से विदेशों पर निर्भर हो सकता है। यह सरकार की “आत्मनिर्भर भारत” पहल के विपरीत है, जो कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने के प्रयास कर रही है।

मक्का के आयात में एक और बड़ा खतरा जीएम (जैविक संशोधित) फसलों का संभावित प्रवेश है। वर्तमान अधिसूचना में गैर-जीएम मक्का की बात हो रही है, लेकिन भविष्य में जीएम आयात की मंजूरी की आशंका बनी हुई है। अमेरिका में मक्का उत्पादन की स्थिति को देखें तो लगभग 92% मक्का गैर-जीएम है। भारत में जीएम फसलों पर विवाद जारी है, जिसमें इस मक्के का उपयोग करने से स्वास्थ्य, पर्यावरणीय प्रभाव और पारंपरिक खेती की विधियों के लिए खतरे की चर्चा हो रही है।

हरित क्रांति से सुनहरी क्रांति तक:

हाल ही में एक महत्वपूर्ण अखबार “इंडियन एक्सप्रेस” ने “मक्का में हरित क्रांति” पर प्रकाश डाला, जिसमें यह बताया गया कि इस क्रांति में संकर बीज, आधुनिक खेती तकनीकों और राज्य सरकारों की प्रेरणा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। इस परिवर्तन के कारण मक्का के उत्पादन में अचानक वृद्धि हुई है और भारत वैश्विक स्तर पर सबसे बड़े उत्पादक देशों में से एक बन गया है।

कई राज्य मक्का की खेती को प्रोत्साहित कर रहे हैं। पंजाब में की गई पहल “मार्कफेड” इसका उत्कृष्ट उदाहरण है, जिसने मक्का को औद्योगिक फसल के रूप में बढ़ावा देने के लिए खुद को नोडल एजेंसी के रूप में स्थापित किया है। इस पहल का उद्देश्य किसानों को बेहतर बाजार संपर्क प्रदान करना है, जिससे वे बेहतर कीमत प्राप्त कर सकें और बिचौलियों पर निर्भरता कम हो सके। इसी प्रकार अरुणाचल प्रदेश के तवांग में आईसीएआर द्वारा मक्का शेलर के प्रदर्शन और वितरण कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य किसानों को मक्का प्रसंस्करण में दक्ष बनाना है।

आत्मनिर्भरता की दिशा में सतत समाधान की आवश्यकता:

भारत तेजी से वैश्विक स्तर पर कृषि के क्षेत्र में अग्रसर हो रहा है, और मक्का के क्षेत्र में भी हमें आयात पर निर्भर रहने के बजाय घरेलू उत्पादन क्षमताओं को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। संकर बीजों को बढ़ावा देकर, भंडारण और वितरण बुनियादी ढांचे में सुधार करके, और मार्कफेड तथा आईसीएआर द्वारा किए जा रहे कार्यक्रमों को व्यापक रूप से लागू करके, सरकार किसानों के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति सुनिश्चित कर सकती है और आयात पर निर्भरता को कम कर सकती है।

कुछ उद्योग संगठनों की चिंताएं वाजिब हो सकती हैं, लेकिन मक्का के आयात से दीर्घकालिक समाधान नहीं निकलेगा। सरकार को भारतीय किसानों के कल्याण को प्राथमिकता देनी चाहिए और दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। घरेलू मक्का उत्पादन को समर्थन देकर, भारत एक संतुलित कृषि नीति बना सकता है जो किसानों और उद्योग दोनों के लिए लाभकारी हो, और राष्ट्र के लिए एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य सुनिश्चित करे।

-डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी

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