भारतीय सिनेमा में उर्दू को पहचान दिलाने वाले कैफी ने आज के दिन दुनिया को कहा था अलविदा……
लोगों के दर्द, रोमांस और दर्द को कैफ़ी आज़मी ने अपने शब्दों में पिरोया
नई दिल्ली। उर्दू के प्रसिद्ध प्रगतिवादी शायर और गीतकार कैफ़ी आज़मी की आज पुण्यतिथि है। 20 के दशक में मुशायरों में रंग जमा देने वाले कैफी आजमी ने हिंदी सिनेमा में दर्द भरे गीत से लेकर रोमांस, दर्द, तन्हाई तक गानें लिखे। उनके लिखे गीत तुम न मिलो तो हम घबराएं और वक्त ने किया क्या हसीं सितम….आज भी लोगों के जुबान पर रहता हैं……
जीवन परिचय
कैफ़ी आज़मी का असली नाम सैय्यद अख्तर हुसैन रिज़वी था। कैफ़ी आज़मी का जन्म 14 जनवरी, 1919 को उत्तरप्रदेश के जिले आजमगढ़ के मिजवां गांव में हुआ था।
शिक्षा
कैफ़ी आज़मी के तहसीलदार पिता उन्हें आधुनिक शिक्षा देना चाहते थे। किंतु रिश्तेदारों के दबाव के कारण कैफ़ी आज़मी को इस्लाम धर्म की शिक्षा प्राप्त करने के लिए लखनऊ के ‘सुलतान-उल-मदरिया’ में भर्ती कराना पड़ा। कैफ़ी ने लखनऊ और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से उर्दू, अरबी और फ़ारसी भाषाओं की शिक्षा ली है।
लेखनी की शुरूआत
कैफी आजमी ने महज 11 साल की उम्र में पहली गजल लिखी थी। किशोर होते-होते तो मुशायरों में समां बांधने लगे थे। शेरो-शायरी-गजल का यही शौक उन्हें मुंबई ले आया। फिर क्या था ऐसी शोहरत मिली कि मिजवां से मुंबई से होते हुए दुनिया भर में कैफी आजमी के चर्चे होने लगे। एक लेखक के रूप में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि चेतन आनंद की हीर रांझा थी।
व्यक्तिगत जीवन
कैफ़ी आज़मी ने मई 1947 में शौकत आज़मी से निकाह किया था। इनकी दो संतान शबाना आज़मी और बाबा आज़मी है।
निधन
भारतीय सिनेमा में उर्दू को पहचान दिलाने वाले कैफी 10 मई 2002 में दुनिया को अलविदा कह गए थे।
उपलब्धियां
1975 कैफ़ी आज़मी को आवारा सिज्दे पर साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड से सम्मानित किया गया था।