नवजात शिशुओं में पीलिया एक आम समस्या है, जिसमें बच्चे की त्वचा और आंखों के सफेद हिस्से पीले दिखाई देने लगते हैं। डॉ. सौरभ खन्ना (लीड कंसलटेंट – न्यूनैटॉलॉजी और पेडियाट्रिक्स, सीके बिरला हॉस्पिटल गुरुग्राम) के अनुसार, यह समस्या बिलीरुबिन नामक पदार्थ के बढ़ने के कारण होती है, जो रेड ब्लड सेल्स के टूटने से उत्पन्न होता है। हल्का पीलिया आमतौर पर खुद ठीक हो जाता है, लेकिन यदि यह गंभीर हो जाए और समय पर इलाज न मिले, तो यह खतरनाक हो सकता है।
पीलिया के कारण:
- शारीरिक (फिजियोलॉजिकल) पीलिया – यह जन्म के 3-5 दिनों के भीतर होता है और आमतौर पर कुछ हफ्तों में अपने आप ठीक हो जाता है। इसका कारण शिशु के इम्मैच्युर लीवर का बिलीरुबिन को सही से बाहर न निकाल पाना होता है।
- ब्रेस्टफीडिंग पीलिया – जब शिशु को सही से स्तनपान नहीं मिल पाता, तो शरीर से बिलीरुबिन का निष्कासन ठीक से नहीं हो पाता, जिससे पीलिया हो सकता है।
- ब्रेस्ट मिल्क पीलिया – कुछ मामलों में, मां के दूध में मौजूद तत्व शिशु के लीवर में बिलीरुबिन के प्रोसेस को धीमा कर सकते हैं, जिससे पीलिया लंबे समय तक बना रह सकता है।
- ब्लड ग्रुप इनकंपैटिबिलिटी – अगर मां और शिशु का ब्लड ग्रुप अलग है, तो इससे शरीर में एंटीबॉडी बन सकती है, जिससे बिलीरुबिन की मात्रा बढ़ जाती है।
- प्रीमेच्योरिटी (समय से पहले जन्म) – समय से पहले जन्मे शिशुओं का लीवर पूरी तरह से विकसित नहीं होता, जिससे उन्हें पीलिया होने की संभावना ज्यादा रहती है।
पीलिया के लक्षण:
- त्वचा और आंखों का पीला पड़ना
- सुस्ती और अधिक नींद आना
- तेज़ आवाज में रोना
- गहरे पीले रंग का पेशाब
- हल्के रंग का स्टूल
कम्प्लीकेशन:
- यदि पीलिया गंभीर हो जाए, तो बिलीरुबिन मस्तिष्क में जमा हो सकता है, जिससे कर्निक्टेरस नामक स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- स्थायी न्यूरोलॉजिकल डैमेज
- सुनने की क्षमता में कमी
- मानसिक विकास में देरी
- सेरेब्रल पाल्सी
- गंभीर मामलों में मृत्यु भी हो सकती है
उपचार:
- फोटोथेरेपी (Phototherapy) – शिशु को विशेष नीली रोशनी में रखा जाता है, जो बिलीरुबिन को तोड़ने में मदद करती है।
- इंट्रावेनस इम्युनोग्लोबुलिन (IVIg) – यदि पीलिया ब्लड ग्रुप इनकंपैटिबिलिटी के कारण हुआ है, तो यह उपचार रेड ब्लड सेल्स के टूटने की गति को धीमा करता है।
- एक्सचेंज ट्रांसफ्यूजन – जब पीलिया बहुत गंभीर हो, तो शिशु के रक्त को धीरे-धीरे बदलने की प्रक्रिया अपनाई जाती है।
- पर्याप्त स्तनपान – बार-बार स्तनपान कराने से शिशु के शरीर से बिलीरुबिन जल्दी बाहर निकलने में मदद मिलती है।
- विटामिन और सप्लीमेंट्स – कुछ मामलों में डॉक्टर मल्टीविटामिन, कैल्शियम, आयरन और यूडीसीए (Ursodeoxycholic Acid) की सलाह दे सकते हैं।
बचाव:
- शिशु को जन्म के बाद नियमित रूप से जांच करानी चाहिए, खासकर पहले कुछ दिनों में।
- मां को स्तनपान से जुड़ी किसी भी समस्या के लिए डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।
- यदि मां और शिशु के रक्त समूह में अंतर है, तो गर्भावस्था के दौरान विशेष देखभाल की आवश्यकता होती है।
नवजात शिशुओं में पीलिया एक सामान्य समस्या है, लेकिन समय पर इलाज न मिलने पर यह गंभीर रूप ले सकता है। माता-पिता को इसके लक्षणों और उपचार के बारे में जागरूक होना चाहिए ताकि शिशु की सेहत को खतरे से बचाया जा सके। सही समय पर डॉक्टर से परामर्श लेकर उचित इलाज करने से शिशु स्वस्थ और सुरक्षित रह सकता है।