अलवर : धारा यादव, गांव माचड़ी, अलवर की एक ऐसी प्रेरक कहानी है जिसे न केवल अलवर बल्कि पूरे भारत में पहचाना जाता है। 2009 से 2019 तक, अलवर राजस्थान के साथ-साथ भारत के कई खेल प्रेमियों की धारा यादव के नाम से अच्छी तरह से पहचान थी। 1500-3000 मीटर स्टीपलचेज जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में सफलता पाने वाले धारा की कहानी ने कई युवा खिलाड़ियों को संघर्ष और मेहनत की ओर प्रेरित किया।
परिवार और बचपन का संघर्ष
धारा यादव का बचपन बहुत कठिनाइयों में बीता। जब वह केवल 9 साल के थे, तब उनकी माँ का निधन हो गया। उसके बाद उनके पिता, श्री विक्रम यादव ने मां की तरह उन्हें पाला और चाचा ने भाई की तरह उनकी देखभाल की। घर की आर्थिक स्थिति खराब थी और खेती भी बहुत अधिक नहीं थी। इसके बावजूद, धारा की मेहनत और आत्मविश्वास ने उसे अपने सपनों की ओर बढ़ने की राह दिखा दी।
शुरुआत और कोचिंग से सफलता की ओर
धारा ने अपने जीवन में एक अहम मोड़ उस समय लिया जब वह एक अखबार की कटिंग लेकर घूमते थे, जिसमें लिखा था “खिलाड़ी बना थानेदार।” यह देखकर धारा ने सेना में भर्ती होने वाले बच्चों के साथ दौड़ना शुरू किया। धीरे-धीरे वह दूसरों से अलग हो गया और इसके बाद उसके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ आया। उसके दोस्त फकरुद्दीन, जो आर्मी में थे, ने धारा के लिए अलवर में एक बड़े कोच से बात की। उसके बाद धारा ने 11 किमी दौड़कर अलवर जाने की शुरुआत की, और फिर धीरे-धीरे अपनी मेहनत से उसे सफलता मिली।
सफलता की कहानी और नेशनल चैंपियनशिप
धारा यादव ने 2 साल में ही भारत में दूसरे नंबर पर जगह बनाई। इसके बाद, उसने अपनी मेहनत और संघर्ष से अपनी पूरी ज़िन्दगी बदल दी। 2009 से 2020 तक, धारा ने भारत के लिए खेला, 11 नेशनल मैडल जीते, तीन बार राजस्थान का बेस्ट खिलाड़ी रहा और इंडियन रेलवे में नौकरी भी जॉइन की।
सपनों को साकार करने की यात्रा
धारा यादव का जीवन एक प्रेरणा है कि किस तरह संघर्ष, मेहनत और दृढ़ निश्चय से किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है। आज वह उस आलीशान घर में रहता है, जिसकी कल्पना भी उसने कभी नहीं की थी। उसका बचपन एक छोटे से कमरे में बीता था, लेकिन आज उसने अपनी मेहनत से अपने परिवार की स्थिति को बदल दिया और अपना नाम रोशन किया।