- एन. के. रावत
अमेरिका और भारत का रिश्ता किसी नटवरलाल के जादुई शो से कम नहीं है। अमेरिका हमें एक हाथ से मिठाई देता है और दूसरे हाथ से वो मिठाई छीनने की कोशिश भी करता है। अब देखिए, 2024 में दोनों देश बड़ी-बड़ी बातें कर रहे हैं। अमेरिका कहता है, “भारत हमारा बड़ा भाई है!” और भारत कहता है, “अमेरिका हमारी जेब में है!” लेकिन अंदर की बात यह है कि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है, जैसे गाड़ी को पेट्रोल की।
‘दोस्ती’ के ड्रामे की पटकथा
अब इस रिश्ते को देखिए, कभी अमेरिका भारत को ‘विश्वगुरु’ मानता है, तो कभी उसे विकासशील देश कहकर झिड़कता है। 2024 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव की कहानी ऐसी है, जैसे वो हमें हाथ पकड़कर घुमा तो रहे हैं, लेकिन इशारा कर रहे हैं, “देखो चीन की ओर!” चीन से निपटने के लिए भारत चाहिए, तो प्यार भी उबाल पर है। लेकिन जैसे ही कोई व्यापार की बात आती है, अमेरिका का चेहरा बदल जाता है—”तुम्हारे आईटी वाले ज़्यादा ही घुस रहे हैं हमारे देश में!”
वीज़ा का वर्चस्व—तुम्हारा और हमारा खेल
अब आओ वीज़ा वाली गाथा पर। यहाँ भी एक अनोखा खेल चल रहा है। अमेरिका कहता है, “भई, हम तुम्हारे इंजीनियर और डॉक्टर चाहेंगे, लेकिन संख्या में कम।” भारत की जनता वीज़ा लाइन में लगी हुई है, सोच रही है कि कब ग्रीन कार्ड मिलेगा। और अमेरिका अपनी राजनीति में व्यस्त है, “पहले वोट दो, फिर वीज़ा देंगे।” अमेरिका को देखकर लगता है, जैसे किसी ने मछली पकड़ने का कांटा फेंका हो—कभी पकड़ते हैं, कभी छोड़ते हैं।
सैन्य अभ्यास या कुश्ती का दांव?
अब सामरिक साझेदारी की बात करें। दोनों देश हथियार बेचने-खरीदने के खेल में मस्त हैं। अमेरिका का राष्ट्रपति कहता है, “आओ, हम तुम्हारे साथ सैन्य अभ्यास करेंगे, साथ मिलकर चलेंगे।” और भारत अंदर से सोच रहा है, “भाई, हथियार बेचने का खेल खेल रहे हो, दोस्ती के नाम पर बिजनेस कर रहे हो!” यह दोस्ती कम, और व्यापार का गठबंधन ज़्यादा लगता है।
तो बात सीधी है—यह रिश्ता प्रेमी और प्रेमिका के उस रिश्ते जैसा है, जिसमें गिफ्ट भी आते हैं और ताने भी। कभी-कभी दोनों हाथों में हाथ डालकर चल रहे होते हैं, और कभी-कभी पीठ पीछे छुरा घोंपने की तैयारी करते हैं। लेकिन जब तक दुनिया की सियासत में चीन का साया है, तब तक ये नाटक चलता रहेगा। यह रिश्ता वैसा ही है, जैसे बंदर और नारियल—जब तक काम आ रहा है, तब तक साथ, और जब नारियल खाली हो गया, तो फेंक दिया!