(गीतावली सिन्हा)
भारत में हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। इस दिन का काफी ऐतिहासिक महत्त्व था। ऐसे में हिंदी को बढ़ावा देने के मकसद से सरकार ने यह दिन हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाना तय किया।आज हिंदी दिवस है। इसे प्रत्येक साल बड़े जोश के साथ मनाया जाते है। यह स्वविदित है, हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है।इसके वावजूद हम इसके महत्व को नहीं समझ पाते। बच्चे जो पढ़ाई में हिंदी के महत्व को समझ नहीं पाते हैं।
आज के बच्चे जो निजी स्कूलों में अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं। उनमें हिंदी के प्रति रूझान कम देखा गया है। वे या हमारे परिवार के या समाज के लोग दोराहे पर खड़े दिखते हैं। वे हिंदी की महत्ता को समझते हैं लेकिन उसे व्यवहार में नहीं ला पाते हैं। उनके लिये अंग्रेजी शब्द स्टेटस सिंबल बन गया है। यह हर उस शब्द को अंग्रेजी में ही बोलत हैं। आज भगवान को हम गॉड के नाम से याद करते हैं। हम भगवान के सामने अपनी इच्छापूर्ति के लिये विश शब्द का इस्तेमाल करते हैं। जन्मदिन को बर्थडे के नाम से जानते हैं। यह तो हमारी हीं आदते और व्यवहार में शामिल है। आज यदि हम बच्चों से सत्रह या छब्बीस या सताईस बोलते हैं, तो इसे नहीं समझ पाते। हिंदी को साहित्य कहा गया है ।कबीर के दोहे,तुलसीदास की रचनायें, महादेवी वर्मा की कवितायें और प्रेमचंद्र की लिखी साहित्यिक उपन्यास हमारे जीने की राह बताती है।
मैथिली शरण गुप्त की पंक्तियां नर हो, ना निराश करों मन को। एक प्रेरणादायक पंक्तियां हैं। और हां हिंदी दिवस जब भी आता है ,हमारा मन गौरव से भर जाता है और हमारे अंदर से यही आवाज आती है, हिंदी है हम , हिंदी हैं हम , वतन हैं, हिंदुस्तान हमारा। आज हम सब मिलकर राम की इस धरती को, गौतम की भूमि को सपनों से भी प्यारा हिंदुस्तान बनाये।