ज्ञानवापी मामला: काशी ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडे ने कहा, अब किसी भी पक्ष को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए

नोएडा: ज्ञानवापी मस्जिद का मामला सुर्खियों में है. ज्ञानवापी के बोर्ड पर लिखे मस्जिद पर मंदिर चस्पा कर दिया गया है. वाराणसी कोर्ट के आदेश के बाद काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के अध्यक्ष नागेंद्र पांडे का बयान आया है. उन्होंने कहा है कि अब किसी भी पक्ष को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए. उन्होंने ये भी कहा है कि यहां पूजा जल्द ही शुरू होगी. उन्होंने कहा, “अदालत ने सालों से बंद पड़े ‘तहखाने’ को खोलने और पूजा करने का आदेश दिया है. अब किसी भी पक्ष को कोई समस्या नहीं होनी चाहिए. अदालत के आदेश के अनुसार, हम सभी आवश्यक प्रक्रियाएं करेंगे. हमें पूजा करने का अधिकार दिया गया है. हमारे पास पर्याप्त पुजारी हैं और हम जल्द ही ‘पूजा’ शुरू करेंगे. पूजा हमारी पूजा पद्धति के अनुसार की जाएगी. इसके लिए किसी को बाहर से बुलाने की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा, हमारे पास सब कुछ पर्याप्त मात्रा में है.

वाराणसी अदालत ने बुधवार को हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर ‘व्यास का तेहखाना’ क्षेत्र में प्रार्थना करने की अनुमति दी. कोर्ट ने जिला प्रशासन को अगले सात दिनों में जरूरी इंतजाम करने को कहा है.

मुस्लिम पक्ष देगा इलाहबाद उच्च न्यायालय में चुनौती
31 जनवरी बुधवार को वाराणसी कोर्ट के आदेश पर हिंदू भक्तों को ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर ‘व्यास का तेहखाना’ क्षेत्र में प्रार्थना करने की अनुमति देने पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, मुस्लिम पक्ष के वकील अखलाक अहमद ने कहा कि वे वाराणसी कोर्ट के फैसले को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएंगे.

अखलाक अहमद ने कहा, हम फैसले के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट जाएंगे. आदेश में 2022 की एडवोकेट कमिश्नर रिपोर्ट, एएसआई की रिपोर्ट और 1937 के फैसले को नजरअंदाज किया गया है, जो हमारे पक्ष में था. हिंदू पक्ष ने कोई सबूत नहीं रखा है कि 1993 से पहले प्रार्थनाएं होती थीं. उस स्थान पर ऐसी कोई मूर्ति नहीं है.

हिंदू पक्ष का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील विष्णु शंकर जैन ने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया, “सात दिनों के भीतर पूजा शुरू हो जाएगी. सभी को पूजा करने का अधिकार होगा.” हिंदू पक्ष को ‘व्यास का तेहखाना’ में प्रार्थना करने की अनुमति है. जिला प्रशासन को 7 दिनों के भीतर व्यवस्था करनी होगी.”

ओवैसी ने क्या कहा
एआईएमआईएम अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने इस फैसले को पूजा स्थल कानून का उल्लंघन बताया है. असदुद्दीन औवेसी ने कहा, ”जिस जज ने फैसला सुनाया, वह रिटायरमेंट से पहले उनका आखिरी दिन था. जज ने 17 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट को रिसीवर नियुक्त किया और आखिरकार उन्होंने सीधे फैसला सुना दिया. उन्होंने खुद कहा कि 1993 के बाद से कोई नमाज नहीं पढ़ी गई, 30 साल हो गए हैं. उन्हें कैसे पता कि अंदर मूर्ति है? यह पूजा स्थल अधिनियम का उल्लंघन है.”

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