गुस्ताखी माफ हरियाणा -पवन कुमार बंसल

गुस्ताखी माफ हरियाना -पवन कुमार बंसल

राजनीतिक विश्लेषक डॉ रणबीर सिंह फोगाट li हरयाणा में अधिकांश भूमि आदिकाल से उस किसान के अधिकार में रही है जो इसे दशकों पहले से लेकर पूर्वजों की कई पुश्तों से जोत कर फसल उगाता रहा है. हरियाणा में भूमि की मिलकियत हमेशा से भाईचारा के आधार पर रही है. अर्थात, सभी वारिसों में बराबरी के आधार पर भू-स्वामित्व है. मुझे नहीं लगता कि जिन तीन लोगों( नरेन्द्र मोदी ,भूपिन्दर हूड़ा और नायब सैनी ) का नाम आपने अपने इस लघु नोट में लिया है उन्होंनें कभी उत्तर-पश्चिमी भारत में भू-स्वामित्व के इतिहास के बारे में कोई अध्ययन किया होगा. 98 प्रतिशत ब्यूरोक्रेसी भी इस इतिहास से वाकिफियत न रखती होगी. लोगों को मालूम नहीं है कि शामलात भूमि भी भाईचारा-भूमि होती है. इसे नज़ूल और गैर-काश्त भूमि भी कहा जाता है जिसका उपयोग चारागाह, जोहड़, खदान, वनक्षेत्र, मार्ग सार्वजनिक निर्माण के लिए किया जाता है. हिन्दू शास्त्रों में राजा को भी यह निर्देश है कि किसी भी गांव में उसके पास कृषि भूमि की जोत होनी चाहिए. आप [मालूम करें कि भूपेन्द्र सिंह हूडा के दादा जी के पास सांघी में काश्त की कितने बीघा जमीन थी. आप उस जमीन को छोड़ दें जिसे चौधरी रणबीर सिंह ने खरीदा है जिसका बड़ा हिस्सा नैनीताल की तराई में है. हालत जब यह है तो जमीन के बारे में हूडा जैसे व्यक्ति कोई स्टेटमेंट दें, यह हर लिहाज़ से अनुचित है. नरेन्द्र मोदी जी के पुश्तैनी धंधे में कृषि जमीन इनके परिवार के पास होने की संभावना शून्य है. श्री नायब सिंह सैनी खेतीहर कौम से हैं. इनकी नाम जमीन की पैमाईश के बारे में तो मालूम नहीं लेकिन इसकी बाज़ार कीमत दो महीना पहले इन्होंनें रु.65 लाख बतायी है. नंगल (लाडवा) में इस बाजार कीमत के अनुसार यह 2 एकड़ या एक हेक्टर से कम ही होनी चाहिए. लेकिन वर्तमान में जो जमीन इनके परिवार के पास है इसकी मिलकियत 200 वर्ष से अधिक समय से इनके पास न होगी. हो सकता है लाडवा के सिख शासक ने यह इन्हें दी हो. हरयाणा में अगर किसानों से जमीन नहीं छीनी या ली गयी तो क्या यह देवताओं से ली गयी थी? भूपेंद्र हूडा का स्टेटमेंट मौलिक रूप से गलत है. यह अलग बात है कि एक बड़े पॉलिटिशियन के सेवक ऐसा कोई प्रूफ नहीं छोड़ते जिसमें जमीनों सौदों में इनका सीधा हाथ दिखे, लेकिन सौदे इनके इशारे में बिना होती ही नहीं. राज्य के महकमें तो गुलामों की तरह इनके फैसलों को कानूनी जामा पहनाती है. पहले किसी न किसी कानून के अंतर्गत (जैसे कि अंग्रेजों द्वारा बनाए गए भूमि अधिग्रहण कानून 1874) के अंतर्गत शासकीय आदेश या अध्यादेश निकाला जाता है फिर मुआवज़े के नाम पर जमीन पर कब्ज़ा करके किसानों को बेदखल किया जाता है. अब रही बात कानूनी कार्रवाई की. एक नेता दूसरे के विरुद्ध विष वामन करेगा, पब्लिक में बदनाम करेगा, पत्रकारों के सामने दिखावा करेगा, लेकिन करगा कुछ नहीं. इसी तरह नेताओं की जिंदगियां पूरी होती रही हैं और वे सिधार जाते हैं या ठन्डे हो कर घर बैठ जाते हैं. यह सब एक अपराध के बड़े दायरे और इसकी विशालता को दिखाता है. पॉलिटिक्स सिर्फ एक प्रदर्शन मात्र रह गया है. इनसे उम्मीद नहीं है.li

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