महाभारत में पितामह भीष्म: जीवन के अमूल्य उपदेश

महाभारत में पितामह भीष्म एक प्रमुख पात्र के रूप में उपस्थित होते हैं, जिन्हें अपनी जीवनभर की प्रतिज्ञा और वचनबद्धता के लिए जाना जाता है। पितामह भीष्म ने विवाह न करने की प्रतिज्ञा ली थी, जिससे उन्होंने राजगद्दी से दूर रहते हुए अपने जीवन को तपस्वी तरीके से बिताया। यह प्रतिज्ञा उन्होंने अपनी मृत्यु तक निभाई और इस दौरान वे पांडवों और कौरवों दोनों के लिए आदर्श बने।

युधिष्ठिर को दिए उपदेश
महाभारत के युद्ध के बाद, जब पितामह भीष्म बाणों की शैय्या पर लेटे हुए थे, तब पांडवों के प्रमुख युधिष्ठिर उनसे मिलने आए। इस दौरान पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को कई महत्वपूर्ण उपदेश दिए, जो न केवल उस समय के लिए, बल्कि आज भी हर किसी के जीवन में लागू हो सकते हैं। उनके इन उपदेशों में राजधर्म, मोक्षधर्म और आपद्धर्म से जुड़ी बहुत सी महत्वपूर्ण बातें शामिल थीं।

सत्य का मार्ग
पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को बताया कि जीवन में हमेशा सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सत्य ही सनातन धर्म है और सत्य से ही योग और तप का उदय होता है। सत्य का अनुसरण करने से जीवन में शांति और संतुलन आता है, और यह आत्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है।

अहंकार और झूठ से दूरी
पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को उपदेश देते हुए कहा कि जीवन में हमेशा अहंकार से दूर रहना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अहंकार मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन होता है और इससे बचना चाहिए। इसके अलावा, झूठ से बचने की भी सलाह दी। पितामह भीष्म ने कहा कि झूठ एक अंधकार है, जिसमें फंसने के बाद मनुष्य सिर्फ गिरता ही जाता है। सत्य के मार्ग पर चलने से ही सम्मान और आत्म-सम्मान प्राप्त होता है।

स्वयं पर संयम
पितामह भीष्म ने युधिष्ठिर को यह भी बताया कि सफलता और उन्नति पाने के लिए व्यक्ति को खुद पर संयम रखना सीखना चाहिए। मनुष्य के मन को वश में रखना उसकी सबसे बड़ी विशेषता होती है। जब मन को काबू में किया जाता है, तो जीवन की किसी भी मुश्किल घड़ी से आसानी से पार पाया जा सकता है।

डिस्क्लेमर
यहां दी गई सभी जानकारी सामाजिक और धार्मिक आस्थाओं पर आधारित हैं। इसके लिए किसी विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें।

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