GM मक्का: कृषि पर नियंत्रण की साजिश या विकास की राह?

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी
डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी: मक्का आज भारत की कृषि अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बन चुका है। पहले इसे केवल खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखा जाता था, लेकिन सरकार द्वारा एथेनॉल उत्पादन में इसके उपयोग को बढ़ावा देने के बाद इसकी मांग में जबरदस्त वृद्धि हुई है। कई संगठनों का मानना है कि हमारे देश में मक्के की आपूर्ति और इसकी मांग के बीच एक खाई बढती जा रही है जिसके कारण हमें विदेशो से मक्का आयात करने की नौबत आन पड़ी है | इसी बीच, कई विदेशी कम्पनियां और GM मक्का का समर्थन करने वाले लोगों द्वारा  GM मक्के के फायदे और इसके प्रतिरोधक गुणों के भ्रामक  प्रचार करने से  भारत में जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) मक्का को बढ़ावा देने की कोशिशें तेज हुई हैं।  लेकिन BT कॉटन का हश्र देखने के बाद ये कडवी सच्चाई किसी से छुपी नहीं  है कि इन दावों के पीछे पर्यावरणीय क्षति, आर्थिक निर्भरता और स्वास्थ्य जोखिम जैसी कई गंभीर समस्याएँ भी छिपी हैं जिसपर हर किसी को गौर करने की जरुरत  है। भारत सरकार ने अब तक किसी भी GM खाद्य फसल के आयात और खेती की अनुमति नहीं दी है। इसके बावजूद, हाल ही में तंजावुर स्थित NIFTEM (National Institute of Food Technology, Entrepreneurship and Management) द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि भारत के विभिन्न राज्यों से लिए गए 34 मक्का के नमूनों में से 15% में GM लक्षण पाए गए। इसका स्पष्ट अर्थ है कि अवैध रूप से GM मक्का भारत के बाजारों में प्रवेश कर चुका है। यह न केवल जैव-सुरक्षा नियमों का खुला उल्लंघन है, बल्कि पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर सकता है। GM मक्का का सबसे बड़ा खतरा इसके पेटेंट अधिकारों में छिपा है। किसान पारंपरिक रूप से मक्का के बीजों को संरक्षित करके अगली फसल में प्रयोग करते हैं। लेकिन GM मक्का उपजाने की स्थिति में उन्हें हर वर्ष कपनियों से नए बीज खरीदने होंगे, जिससे वे बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर हो जाएंगे। भारत में लगभग 80% किसान छोटे और सीमांत किसान हैं, जो इस प्रकार की कॉर्पोरेट निर्भरता का बोझ नहीं उठा सकते। अमेरिका, जो GM मक्का का सबसे बड़ा उत्पादक देश है, वहां 2016 में USDA (United States Department of Agriculture) की एक रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया था कि GM फसलें स्वाभाविक रूप से अधिक उत्पादन नहीं देतीं। जब उन्नत कृषि वाले देशों में GM मक्का कोई चमत्कार नहीं कर सका, तो भारत में इसकी सफलता की क्या गारंटी है? GM मक्का से जुड़ी एक और गंभीर चिंता इसका स्वास्थ्य और पर्यावरणीय प्रभाव है। GM मक्का को अक्सर ग्लाइफोसेट जैसे हर्बिसाइड-प्रतिरोधक गुणों के साथ विकसित किया जाता है। यह वही रसायन है जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने “संभवतः कैंसरकारी” घोषित किया है। कई कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि GM फसलों के कारण खरपतवार भी धीरे-धीरे प्रतिरोधी होते जा रहे हैं, जिससे किसानों को अधिक मात्रा में और महंगे रसायनों का उपयोग करना पड़ता है। इन हानिकारक रसायनों के अवशेष भोजन श्रृंखला में प्रवेश कर मानव स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

भारत में मक्का की सैकड़ों किस्में हैं, जो अलग-अलग जलवायु और मिट्टी के अनुकूल हैं। GM मक्का के आने से यह जैव विविधता खतरे में पड़ जाएगी । चूँकि मक्का परागण से फैलता है, इसलिए GM मक्का के परागकण पारंपरिक किस्मों को भी प्रभावित कर सकते हैं। मैक्सिको में, जहाँ GM मक्का पर प्रतिबंध है, फिर भी वहाँ स्वदेशी मक्का में GM के लक्षण पाए गए। अगर यह मैक्सिको में हो सकता है, तो भारत में क्यों नहीं? भारत के मक्का निर्यात में निरंतर वृद्धि हो रही है और दक्षिण-पूर्व एशिया एवं मध्य-पूर्व इसके प्रमुख खरीदार हैं। कई देश, विशेष रूप से यूरोपीय संघ, GM फसलों के आयात की अनुमति नहीं देते। यदि भारत का मक्का GM लक्षणों से दूषित हुआ तो यह निर्यात बाजार खतरे में आ सकता है। 2013 में अमेरिका को चीन ने अवांछित GM मक्का के कारण 1 बिलियन डॉलर का नुकसान पहुँचाया था। क्या हम भारत में भी ऐसी ही स्थिति देखना चाहते हैं? 2002 में Bt कपास को कीट प्रतिरोधक के रूप में प्रचारित किया गया था। शुरुआत में इसके कारण उत्पादकता बढ़ी, लेकिन धीरे-धीरे कीटों ने इसके लिए अपनी प्रतिरोधक क्षमता प्रतिरोध विकसित कर ली । नतीजा यह हुआ कि किसानों को और अधिक महंगे कीटनाशक खरीदने पड़े। महाराष्ट्र और तेलंगाना जैसे राज्यों में कई किसानों ने कर्ज से परेशान होकर आत्महत्या तक कर ली । कई लोगो को एक अंदेशा ये भी है कि क्या GM मक्का भी किसानों को उसी अनदेखे अँधेरे में ना ले जाए?

GM मक्का के बजाय भारत को यहाँ  मक्का किस्मों को उन्नत करने पर ध्यान देना चाहिए। ICAR जैसे संस्थानों को पारंपरिक एवं सूखा-प्रतिरोधी और कीट-प्रतिरोधी मक्का विकसित करने की दिशा में प्रयास करना  चाहिए। इसके अलावा, किसानों को फसल चक्र अपनाकर प्राकृतिक रूप से कीट नियंत्रण, जैव उर्वरकों का प्रयोग कर मिट्टी की गुणवत्ता सुधार तथा  गैर-GM संकर बीजों को अपनाना जैसे उपाय अपनाने चाहिए I आज भारत में GM मक्का को आधिकारिक स्वीकृति नहीं मिली है, फिर भी इसकी अवैध खेती की रिपोर्टें सामने आ रही हैं। सरकार को इस पर सख्त कार्रवाई करनी चाहिए और अवैध GM बीजों की बिक्री पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। साथ ही, खाद्य उत्पादों की सख्त लेबलिंग अनिवार्य की जानी चाहिए ताकि उपभोक्ता GM मक्का से जुड़ी जानकारी प्राप्त कर सकें और अपनी पसंद के अनुसार निर्णय ले सकें।

भारत आज एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। अब यह तय करना हमारे हाथ में है कि हम बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा नियंत्रित खाद्य प्रणाली को अपनाएंगे या अपने किसानों, जैव विविधता और खाद्य संप्रभुता की रक्षा करेंगे। GM मक्का केवल कृषि का मुद्दा नहीं है, यह भारत के खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता और भविष्य की स्थिरता का सवाल है। हमें सोच-समझकर निर्णय लेना होगा, क्योंकि इसका प्रभाव आने वाली पीढ़ियों तक रहेगा। यदि हमने इस पर अभी ध्यान नहीं दिया, तो भविष्य में इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी
पर्यावरणविद, समाजसेवी, और ट्रस्टी, प्रशुभगिरी ट्रस्ट

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