Death Anniversary: दुनिया की सबसे उंची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर चढने वाले दो व्यक्तियों में से एक थे तेनजिंग नोर्गे

हिमालय की गोद में पले तेनजिंग नोर्गे ने आज के ही दिन दुनिया को कहा था अलविदा

नई दिल्ली। दुनिया की सबसे उची चोटी माउंट एवेरेस्ट पर सबसे पहले चढने वाले दो व्यक्तियों में से एक तेनजिंग नोर्गे की आज पुण्यतिथि है। उनके साथ साथ एडमंड हिलेरी को भी इस ख़िताब से नवाजा गया था। विश्व इतिहास में इन दोनों का नाम कभी नही भुलाया जा सकता है। शेरपा तेनजिंग, हिमालय की गोद में पले एक साधारण व्यक्ति थे और अपने आत्म-विश्वास के बल पर नोर्गे ने असम्भव को सम्भव कर दिखाया था।

जीवन परिचय
तेनजिंग नोर्गे का जन्म एक बहुत गरीब शेरपा परिवार में हुआ था..चुकिं उस समय में लोग जन्म की तारीख याद नही रखते थे नोर्गे ने एवरेस्ट पर जिस दिन कदम रखा था उसी को अपनी जन्म तारीख घोषित कर दिया और वो तारीख थी 19 मई 1914। उनका जन्म नेपाल के खुम्भु इलाके में हुआ था जो नेपालियों और तिब्बतियों दोनों की मातृभूमि कहलाता था। उनके पिता का नाम घंग ला मिंगमा और माता का नाम डोकमो किन्ज्म था। तेनजिंग अपने 13 भाई बहनों में 11वे स्थान पर थे जिसमे से उनके अधिकतर भाई बहन बचपन में ही गुजर गये थे। उनके पिता गरीबी के कारण पर्यटकों का सामान अपनी पीठ पर ढोकर अपने परिवार का किसी तरह गुजर-बसर किया करते थे।

व्यक्तिगत जीवन
तेनज़िंग ने तीन बार विवाह किया था। पहली पत्नी दावा फुटी की 1944 में मृत्यु हो गई थी। अन्य पत्नियों के नाम आंग लाहमू तथा डक्कू थे। उनके बच्चों के नाम पेम, नीमा, जामलिंग व नोर्बू थे।

पर्वतारोहण का पहला मौका
तेनजिंग को पर्वतारोहण का पहला मौका मात्र 21 वर्ष की आयु में 1935 में मिला। उन्हें पहाड़ों पर चढ़ने के लिए विशेष प्रकार के कपड़े, जूते और चश्मा पहनना पड़ता था और टीन के डिब्बों में बन्द विशेष प्रकार का भोजन ही करना होता था। उन्होंने चढ़ने की कला में भी बहुत कुछ नई बातें सीखीं। नवीन प्रकार के उपकरणों के प्रयोग, रस्सी व कुल्हाडि़यों का उपयोग और मार्गों को चुनना आदि ऐसी ही बातें थी, जिन्हें जानना आवश्यक था।

एवरेस्ट पर्वत पर चढ़नें में मिली कामयाबी
1953 में तेनजिंग को वह मौका मिला जो उनका बचपन का सपना था। उन्हें एक ब्रिटिश पर्वतारोही दल में सम्मिलित होने का आमंत्रण मिला। दल का नेतृत्व कर्नल हंट कर रहे थे। इस दल में कुछ अंग्रेज और दो न्यूजीलैंड वासी थे, जिनमें एक एडमंड हिलेरी थे। उन्होंने ‘करो या मरो’ का दृढ़ संकल्प कर लिया था। दार्जिलिंग से प्रस्थान करने के लिए मार्च 1953 की तिथि निश्चित हुई। वे भरपूर आत्म-विश्वास एवं ईश्वर में दृढ़ आस्था के साथ 26 मई 1953 को सुबह साढ़े छः बजे आगे बढ़े और 29 मई, 1953 को सुबह साढ़े ग्यारह बजे दुनिया के सर्वोच्च शिखर एवरेस्ट की चोटी पर पहुंच गए।

निधन
9मई 1986 को तेनजिंग नोर्वे का निधन हो गया था।

उपलब्धियां
भारत, नेपाल तथा इंग्लैण्ड सरकार ने तेनजिंग नोर्वे को कई पुरस्कारों से सम्मानित किया। 1959 में उन्हें ‘पद्‌मभूषण’ मिला, तो इंग्लैण्ड की महारानी ने ‘जार्ज पदक’, तो नेपाल सरकार ने उन्हें ‘नेपाल तारा’ की उपाधि से विभूषित किया।

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