रामपुर रज़ा पुस्तकालय एवं संग्रहालय की 250वीं वर्षगांठ के अवसर पर आयोजित सांस्कृतिक और रंगारंग कार्यक्रमों की श्रृंखला में सखावत हुसैन (सहसवान घराना, रामपुर) द्वारा प्रस्तुत शाम-ए-ग़ज़ल और अखाड़ा बाबू बहार रामपुर व अखाड़ा मंजू खाँ रामपुर द्वारा प्रस्तुत चहारवैत ने दर्शकों का दिल जीत लिया।
दोनों कार्यक्रमों ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया, और प्रस्तुति के दौरान तालियों की गड़गड़ाहट से पूरा रज़ा लाइब्रेरी परिसर गूंज उठा। इस खास अवसर पर, लाइब्रेरी के निदेशक डॉ. पुष्कर मिश्र ने एक दुर्लभ कलाकृतियों की प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया। उन्होंने बताया कि रामपुर रज़ा लाइब्रेरी की स्थापना 7 अक्टूबर 1774 को नवाब फैजुल्लाह खान द्वारा की गई थी, और यह पुस्तकालय तब से लगातार ऐतिहासिक धरोहर के रूप में अपना योगदान दे रहा है।
डॉ. मिश्र ने बताया कि रामपुर रज़ा लाइब्रेरी का प्रारंभिक चरण नवाब फैजुल्लाह खान के व्यक्तिगत संग्रह से हुआ, और इसे 1851 तक तोशा खाना के एक हिस्से के रूप में रखा गया। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद, नवाब रज़ा अली खान ने इसे देश को भेंट स्वरूप दिया, जिसके बाद इसका नाम रामपुर रज़ा लाइब्रेरी रखा गया। 1975 में, भारत सरकार ने इसे राष्ट्रीय महत्व का संस्थान घोषित किया।
रामपुर रज़ा लाइब्रेरी आज विश्वभर में अपने समृद्ध संग्रह और सांस्कृतिक धरोहर के लिए प्रसिद्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस लाइब्रेरी से पाण्डुलिपियों की प्रतिलिपियों को विभिन्न राष्ट्राध्यक्षों को भेंट किया है। यह लाइब्रेरी अब डिजिटल प्लेटफॉर्म की ओर बढ़ रही है, जिससे दुनिया भर के विद्वान इसके अद्भुत संग्रह का लाभ उठा सकें।
यह प्रतिष्ठित पुस्तकालय “एनरूट” पत्रिका द्वारा दुनिया की सबसे आश्चर्यजनक लाइब्रेरियों में आठवें स्थान पर रखा गया है।