अमृतसर: मोहाली की सीबीआई कोर्ट ने हाल ही में तीन पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। ये पुलिस अधिकारी 1992 में तरनतारन जिले में कई युवाओं के फर्जी मुठभेड़ों में शामिल थे।
फर्जी मुठभेड़ों में मारे गए युवक
1992 में, गुरबचन सिंह, रेशम सिंह और हंसराज नामक तीन पुलिस अधिकारियों ने प्रमोशन की फर्जी प्रतिस्पर्धा के तहत कई युवाओं का झूठा एनकाउंटर कर दिया था। 30 नवंबर 1992 को एक युवक, गुरनाम सिंह पाली, जो होम गार्ड में कार्यरत था, अचानक गायब हो गया। परिवार का कहना है कि जब गुरनाम सिंह ड्यूटी के बाद घर लौटा तो चार पुलिस अधिकारियों ने उसे अपने साथ ले लिया। इसके बाद, परिवार को पता चला कि उसे फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया और उसका शव भी पुलिस ने परिवार को नहीं सौंपा। इसके साथ ही, गुरनाम के साथी युवक जगदीप सिंह मक्खन को भी झूठे एनकाउंटर में मौत के घाट उतार दिया गया था।
सीबीआई कोर्ट में लंबी कानूनी लड़ाई
इस मामले को सीबीआई कोर्ट में दाखिल करने के बाद, 32 साल बाद आज न्याय मिला। पीड़ित परिवार ने कहा कि न केवल उनके बेटे, बल्कि कई अन्य युवाओं को भी इन पुलिस अधिकारियों ने झूठी मुठभेड़ में मार डाला था। वकील सरबजीत सिंह वेरका ने यह केस बिना किसी फीस के लड़ा और आज इस मामले में न्याय मिला। परिवार ने भगवान का धन्यवाद किया कि उन्हें न्याय मिला और उनके वकील ने साहस के साथ उनका केस लड़ा।
सीबीआई की जांच और आरोप पत्र
वकील सरबजीत सिंह वेरका ने मीडिया से बातचीत में बताया कि 1992 में गुरनाम सिंह पाली और जगदीप सिंह मक्खन को पुलिस ने अवैध रूप से गिरफ्तार किया था। कई दिनों तक उन्हें हिरासत में रखा गया और 30 नवंबर 1992 को दोनों को फर्जी मुठभेड़ में मार दिया गया। पुलिस ने इसे आतंकियों से मुठभेड़ का रूप दिया, लेकिन बाद में यह मामला सीबीआई के पास पहुंचा। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर सीबीआई ने जांच की और चार पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। इनमें से एक आरोपी अर्जन सिंह था, जिसकी मृत्यु मुकदमे के दौरान हो गई।
कानूनी प्रक्रिया में 32 साल का समय
इस मामले में 32 साल तक कानूनी प्रक्रिया चलती रही। अंततः सीबीआई अदालत के न्यायाधीश श्री राकेश कुमार गुप्ता ने इस मामले में निर्णय सुनाया। इस मामले की सुनवाई में सीबीआई के वकील अनमोल नारंग का भी अहम योगदान रहा। इसके बाद, पीड़ित परिवार को न्याय मिला।
आगे के मामले और मुआवज़ा
वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि इस तरह के 70 पुराने झूठे मुकदमे अभी भी चल रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कुछ मामलों के मुआवज़े के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग से मदद मिली है। मार्च 2025 तक इनमें से अधिकांश मामलों का समाधान हो सकता है। उम्मीद है कि पीड़ित परिवारों को जल्द न्याय मिलेगा और कोर्ट के फैसले आने वाले समय में अपेक्षाकृत जल्दी होंगे।
न्याय में देरी पर पीड़ित परिवार का संघर्ष
इस पूरे मामले में पीड़ित परिवारों को लंबे समय तक न्याय का इंतजार करना पड़ा, लेकिन अंततः उन्हें अदालत से न्याय मिला। 32 साल बाद अब उन्हें राहत मिली है, और यह निर्णय अन्य पीड़ित परिवारों के लिए भी उम्मीद की किरण बन सकता है।