Birth Anniversary: शौर्य व त्याग के प्रतीक थे महाराणा प्रताप, कभी भी जीवन में नहीं मानी हार
हिन्दी माह के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत को मनाई जाती है प्रताप की जयंती
नई दिल्ली। शौर्य व त्याग के प्रतीक महाराणा प्रताप की जंयती है। इतिहास के पन्नों में कई योद्धाओं और वीरांगनाओं की गाथाएं हमें पढ़ी है, महाराणा प्रताप उन्हीं महान योद्धाओं में से एक थे। प्रताप ने अपने शौर्य, पराक्रम, वीरता और स्वाभिमान के कारण हमेशा के लिए अमर हो गए। उनके साहस की कहानियां पढ़कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। वे मेवाड़ के सोलहवीं शताब्दी के एक महान हिंदू शासक थे जो अकबर को लगातार टक्कर देते रहे तथा कभी भी जीवन में हार नहीं मानी। उनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य, त्याग, पराक्रम और दृढ प्रण के लिये अमर है।
जीवन परिचय
महाराणा प्रताप का पूरा नाम महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया था। प्रताप उदयपुर, मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। उनका जन्म हिन्दी माह के अनुसार ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 को हुआ था। जो अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार 9 मई 1540 को पड़ता है।
उनका जन्म वर्तमान राजस्थान के कुम्भलगढ़ में महाराणा उदयसिंह एवं माता रानी जयवन्ताबाई के घर हुआ था।
इनके बचपन का नाम प्रताप था। प्यार से इनको “कीका” के नाम से भी पुकारा जाता था। इनके वंशजों में महाराणा की उपाधि प्राप्त करने वाले ये एकमात्र राजा थे।
शिक्षा
प्रताप ने प्रारंभिक शिक्षाएं अपनी माता से ही ली थी इसलिए इनकी माता को ही इनका प्रथम गुरु कहा जाता है। बचपन से ही महाराणा प्रताप नेतृत्व करने जैसे गुणों से भरपूर थे और अक्सर खेल खेल में अपने साथियों को उनका लक्ष्य समझाकर ये अपने दल का नेतृत्व करते देखे जाते थे। इन सब गुणों से इनके पिता काफी खुश थे तथा इनमें मेवाड़ के अगले उत्तराधिकारी की छवि देखते थे। इसके इलावा प्रताप को तलवारबाज़ी एवं युद्ध विद्या में पारंगत करने के लिए कुशल शिक्षकों की व्यवस्था कराई गई थी। जिसके बाद बहुत कम समय में ही ये एक कुशल योद्धा की तरह निखर कर सामने आए।
व्यक्तिगत जीवन
इनकी माता जयवंताबाई के अलावा भी इनके पिता राणा उदय सिंह की कई पत्नियां थीं। इनमें रानी धीरबाई उदय सिंह की सबसे प्रिय पत्नी थी। प्रताप के अन्य तीन सौतेले भाई- जयमाल सिंह, शक्ति सिंह और सागर सिंह भी थे। इनकी सौतेली माँ धीरबाई उसके बेटे जयमाल सिंह को मेवाड़ का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। उसी प्रकार सभी रानियां अपने- अपने पुत्रों को उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। लेकिन राणा उदय सिंह और मेवाड़ की प्रजा, प्रताप को ही उत्तराधिकारी मानते थे। इस वजह से इनके तीनों सौतेले भाई इनसे हमेशा नफरत ही करते थे।
मेवाड़ रियासत के 54वें शासक बने महाराणा प्रताप
अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी अंतिम इच्छा मानकर प्रताप ने अपने सौतेले भाई जगमाल को मेवाड़ का राजा बना दिया। लेकिन मेवाड़ के विश्वासपात्र चुनाड़ावत ने मेवाड़ का भविष्य खतरे में देखा और जगमाल का विरोध करा के उसे गद्दी से हटा दिया। इसके पश्चात 28 फरवरी 1567 को 27 वर्ष की उम्र में प्रताप ने 54वें शासक के तौर पर महाराणा की उपाधि के साथ मेवाड़ की राजगद्दी संभाली।
निधन
महाराणा प्रताप का निधन एक हिंसक जानवर के प्रहार के कारण 19 जनवरी 1597 को चावंड नामक स्थान पर हुआ था।