Birth Anniversary: आधुनिक नर्सिग आन्दोलन की जन्मदाता और दया व सेवा की प्रतिमूर्ति थी फ़्लोरेन्स नाइटिंगेल
लेडी विद द लैंप के नाम से भी जानी जाती हैं फ्लोरेंस नाइटिंगेल
नई दिल्ली। आधुनिक नर्सिग आन्दोलन का जन्मदाता और दया व सेवा की प्रतिमूर्ति फ्लोरेंस नाइटिंगेल की आज जयंती है। उच्च कुल में जन्मी और सेवा मार्ग पर चलने वाली फ्लोरेंस को “द लेडी विद द लैंप” के नाम से भी जाना जाता हैं। परिवार के तमाम विरोधों व क्रोध के बाद भी उन्होंने अभावग्रस्त लोगों की सेवा का व्रत लिया। दिसंबर 1844 में उन्होंने चिकित्सा सुविधाओं को सुधारने का काम शुरु किया।
जीवन परिचय
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई 1820 को हुआ था। वे इटली के फ्लोरेंस में पैदा हुई हालांकि उन्होंने अपनी बाकी जिंदगी इंग्लैंड में गुजारी। उनकी माता का नाम फ्रांसिस नाइटिंगेल तथा पिता का नाम विलियम एडवर्ड नाइटिंगेल था। बचपन में उनके हाथ इतने कमजोर थे कि वे 11 वर्ष की आयु तक लिखना ही नहीं सीख पाई थीं।
शिक्षा
11 साल की उम्र में लिखना सीखने के बाद ही फ्लोरेंस में अपनी औपचारिक शिक्षा ली। उन्होंने गणित, लैटिन तथा ग्रीक भाषा में शिक्षा हासिल की। गणित उन्हें सबसे अच्छा विषय लगता था। लेकिन परिवारिक विरोध के कारण वह गणित की आगे की शिक्षा नही ले सकी और उन्होंने अपना करियर नर्सिंग के क्षेत्र में बनाने की ठान ली और परिवारिक विरोध के बाद भी उन्होंने रोम जाकर नर्सिंग का प्रशिक्षण हासिल किया।
करियर
नर्सिंग का प्रशिक्षण लेने के बाद वह लगातार रोम और पेरिस के अस्पतालों के दौरे करने लगी। वर्ष 1853 में लंदन जाकर उन्होंने महिलाओं का एक अस्पताल भी खोला। जहां उन्होंने कई मरीजों की देखभाल की। उन्होंने अपने कठिन प्रयासों से इसे विकसित किया जिससे उन्हें लोग पहचानने लगे।
1860 में फ्लोरेंस ने आर्मी मेडिकल स्कूल की स्थापना की।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का योगदान
फ्लोरेंस का सबसे महत्वपूर्ण योगदान क्रीमिया के युद्ध में रहा। अक्टूबर 1854 में उन्होंने 38 स्त्रियों का एक दल घायलों की सेवा के लिए तुर्की भेजा। इस समय किए गए उनके सेवा कार्यो के लिए ही उन्होंने लेडी विद द लैंप की उपाधि से सम्मानित किया गया। जब चिकित्सक चले जाते तब वह रात के गहन अंधेरे में मोमबत्ती जलाकर घायलों की सेवा के लिए उपस्थित हो जाती। लेकिन युद्ध में घायलों की सेवा सुश्रूषा के दौरान मिले गंभीर संक्रमण ने उन्हें जकड़ लिया था।
निधन
रोगियों की सेवा करने वाली फ्लोरेंस स्वयं एक खतरनाक रोग की शिकार हो गईं और 90 वर्ष की आयु में 13 अगस्त 1910 को उनका निधन हो गया।
उपलब्धियां
1907 में फ्लोरेंस नाइटिंगेल को ऑर्डर ऑफ मेरिट सम्मान हासिल हुआ। उन्हें‘The Angel of Crimea’ का उपनाम हासिल हुआ।