बदायूं: देशभक्ति के रंगों से सराबोर हुआ नगरपालिका प्रांगण
मेरे मकां के नीचे भी लगता है कुछ तो है, इक रोज़ मैं भी खोदूंगा अपने मकान को।
बदायूं। ज़िलाधिकारी के निर्देशानुसार गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में नगर पालिका परिषद बदायूॅं प्रांगण में कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन किया गया। सर्वप्रथम माता सरस्वती देवी की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित किया गया। तदुपरांत नपा के कार्यालय अधीक्षक खालिद अली खां और लिपिक नवेद इकबाल गनी ने सभी शायर और कवियो का फूल माला पहनाकर एवं डायरी व पेन भेंट कर सम्मानित किया गया। हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक इस कवि सम्मेलन व मुशायरे की शुरुआत षटवदन शंखधार ने माॅं सरस्वती की वंदना व असरार मुज़तर ने नात ए पाक से की।
मशहूर उस्ताद शायर डा. मुजाहिद नाज़ बदायूंनी ने कहा –
भारत मां के अंगना आई बनके दुल्हन आजादी,
छीन नहीं सकता अब हमसे कोई दुश्मन आजादी।।
डा. गीतम सिंह ने पढ़ा-
बदायूॅं की आज़ादी जंग में जो अग्रणी रहे,
कुंवर रूकुम सिंह को मेरा प्रणाम है।
हौसला बढ़ाया और जवानी में जोश भरा-
बाबू ताराचंद के रघुवीर को प्रणाम है।
प्रसिद्ध शायर अहमद अमजदी ने कहा-
“हिंदोस्तां की आन पर कुर्बान हो गए,
वो लोग इस जहान में ज़ीशान हो गए।”
चंद्रपाल ‘सरल’ ने पढ़ा-
खामखां हम उसूलों को पाले रहे।
जबकि दो-दो निवालों के लाले रहे।
हौंसले तो बहुत लड़खड़ाए मगर,
जैसे तैसे अना को सम्हाले रहे।
शम्स मुजाहिदी बदायूंनी ने कहा-
भारत की आन-बान अमन के निशान को,
हर हाल में बचाएंगे हम संविधान को।
मेरे मकां के नीचे भी लगता है कुछ तो है,
इक रोज़ मैं भी खोदूंगा अपने मकान को।
डा. अरविंद ‘धवल’ ने कहा-
राम और रहमान का संदेश रहेगा।
गंगोजमन का अपना ये परिवेश रहेगा।
बलिदान अपने व्यर्थ नहीं जाएंगे ‘धवल’-
जब तक है चाॅंद सूरज ये देश रहेगा।
डा. नासिर बदायूॅनी ने कहा-
ऐ शगुफ्ता चमन तू रहे खिंदाजन,
मेरे हिंदुस्तां मेरे प्यारे वतन।
राजवीर सिंह ‘तरंग’ ने गीत पढ़ा –
“आओ मिलकर कर करें कामना, अमर रहे गणतंत्र हमारा।
विश्व पटल के शीर्ष मंच पर, निशिदिन चमके भाग्य सितारा।।”
शैलेन्द्र मिश्र ‘देव’ ने पढ़ा-
‘हिंदू-मुस्लिम अगड़े-पिछड़े रहता भी हर तबका है।
कोई बपौती न समझे देश हमारा सबका है।
जब बाकी सब सीख रहे थे, हम तारों तक जा पहुंचे-
दुनिया को जीना सिखलाया इस देश का शज़रा सबका है।’
सगीर बदायूंनी ने फ़रमाया –
इश्क़ करना ‘सगीर’ का तुझसे,
है फ़क़त तुझसे प्यार हिंदुस्तान।
उज्ज्वल वशिष्ठ ने कहा-
उजाला देते नहीं जो घर जलाते हैं।
हवा को ऐसे चिरागों की लौ कतरने दो।
विवेक चतुर्वेदी ने कहा-
सवेरा सिर्फ सूरज की वज़ह से ही नहीं होता,
अंधेरे से दीयों के साथ में जुगनू भी लड़ते हैं।
विवेक यादव ने कहा-
पढ़ी वीरों के साहस की अमिट हमने कहानी है।
वतन के काम न आए तो वो कैसी जवानी है।
करें धूमिल छवि कोई मेरी मां भारती की तो, अगर फिर भी न खौला तो तुम्हारा खून पानी है।
अचिन मासूम ने कहा-
जमीं को आसमां पर भी झुकना जानते हैं हम।
लहू निज देश की खातिर बहाना जानते हैं हम।
उतारी आरती मां भारती की प्राण दीपों से,
झुका सकते नहीं सर को कटाना जानते हैं हम।
मु. नाजिम ने कहा –
ऑंखों में क्यों सजाए थे इतने हसीन ख्वाब,
खुलते ही ऑंख लुट भी गया शहर का शबाब।
पं. अमन मयंक शर्मा ने कहा-
ऐसी कुछ आन-बान हमारे वतन की है,
आकाश तक उड़ान हमारे वतन की है।
अमान फर्रुखाबादी ने कहा-
तेरी अता है तेरा करम है, हमारे जीवन में ग़म जो कम है।
तेरी ज़फाओं की ही बदौलत, हमारी ऑंखें हुई ये नम हैं।।
इस मौके पर भूराज सिंह लायर, प्रो. मनवीर सिंह ने भी रचना पढ़ कर वाहवाही लूटी। इस अवसर पर अहमद नबी उर्फ भाई भाई, नवेद इक़बाल गनी, साहिर अंसारी, मिर्ज़ा उसैदुल हक, मकसूद अहमद, रवींद्र कश्यप आदि अनेक लोग मौजूद रहे।