- रिपोर्ट: एन. के. रावत
हिंडेनबर्ग रिसर्च और अदाणी समूह की कहानी ऐसी है जैसे गांव का एक चतुर आदमी अपने चार बीघे खेत को ऐसे बढ़ाता है कि पड़ोसी भी सोच में पड़ जाए—“अरे, ये कब और कैसे हो गया?” और हिंडेनबर्ग जी आए, जैसे वो चचेरा भाई जो शहर से लौटकर बोले, “भाई, ये सब तो धोखा है! इसकी जमीन असल में हमारी भी है!” बस फिर क्या, पूरा गांव एकदम होश में आ गया।
अदाणी समूह का हाल तो वैसा है जैसे कोई बड़ा सा गुब्बारा आसमान में उड़ रहा हो—रंग-बिरंगा, चमचमाता। नीचे खड़े लोग देख रहे हैं और ताली बजा रहे हैं, “अरे, देखो, कितनी ऊंचाई पर जा रहा है!” और तभी हिंडेनबर्ग साहब सूई लेकर आ गए। सूई लगाई और गुब्बारा ऐसा फटा कि सबके कान बजने लगे। अब देखिए, गुब्बारा फूटने का गुस्सा सबको सूई पर आ गया। लोग कहने लगे, “अरे भाई, ये क्या कर दिया! हमारा मनोरंजन बंद कर दिया।”
अरे भाई, ये तो वही पुरानी बात है। किसी के महल की दीवार हिलाओ, तो महल वाले चिल्लाएंगे—‘ये क्या किया? हमारी दीवार क्यों हिलाई?’ पर अगर दीवार खोखली हो, तो गिरना तो तय है।
रकम और रेटिंग का खेल
अब अदाणी जी का कारोबार भी ऐसा है कि कल तक हर कोई उनको देखते हुए दांत चियार रहा था, जैसे कोई आदमी नया मोबाइल लेकर मोहल्ले में घूमे और सबको दिखाए कि, “देखो, मेरे पास ये है!” अब हिंडेनबर्ग ने रिपोर्ट निकाली, तो सब चौंक गए। रिपोर्ट वैसी थी, जैसे कोई कहे, “अरे, ये मोबाइल असली नहीं, चीन की सस्ती कॉपी है!”
अरे यार, अदाणी जी का व्यापार वैसा है, जैसे आप दीवार पर चूना पोतकर कहें कि ‘देखो, कितनी चमक है।’ पर असल में चूना अंदर की सीलन को छिपा नहीं सकता। हिंडेनबर्ग ने बस दीवार पर हाथ फेरा और चूना उखड़ने लगा।
‘देशभक्ति’ का नया नाम
अब जैसे ही हिंडेनबर्ग ने सवाल उठाए, अदाणी जी के समर्थक देशभक्ति की ढाल लेकर मैदान में कूद पड़े। बोले, “अरे! ये तो विदेशी साजिश है। ये लोग देश के खिलाफ हैं!” अब देखिए, जब भी बड़ा आदमी फंसता है, तो सबसे पहले उसे देश की याद आ जाती है। अदाणी जी भी बोले, “ये हमला मुझ पर नहीं, देश पर है!” मतलब, अब अगर आप उनके खिलाफ कुछ बोलेंगे, तो सीधे देशद्रोही कहलाएंगे।
भाई, ये तो वही पुराना तरीका है। जब भी किसी से हिसाब मांगो, वो चिल्लाता है—‘ये मेरे खिलाफ नहीं, पूरे खानदान के खिलाफ है!’ हिंडेनबर्ग ने अदाणी जी से बस इतना पूछा कि भाई, ये सब कैसे हुआ? और जवाब में देशभक्ति की किताब खोल दी गई!
आंकड़ों का मकड़जाल
अदाणी जी के समर्थक हर तरफ आंकड़ों का हवाला देते हुए दिखते हैं—“देखो, अदाणी ने इतनी संपत्ति बनाई, इतने लोगों को रोजगार दिया, और देश की इतनी तरक्की करवाई।” अब ये आंकड़े सुनकर आदमी सोचता है कि भाई, ये तो कोई जादूगर हैं! पर हिंडेनबर्ग ने एक सवाल उठाया और इन आंकड़ों का गणित ऐसा बिगड़ा कि सब लोग गिनती भूल गए।
ये आंकड़ों का खेल वैसा है, जैसे जादूगर अपनी टोपी से खरगोश निकालता है। लोग ताली बजाते हैं, पर किसी को ये समझ में नहीं आता कि असल खेल टोपी के अंदर हो रहा है। हिंडेनबर्ग ने बस टोपी को उल्टा करके देख लिया!
सपनों की चादर और हकीकत की ठंड
अब अदाणी जी ने जो सपने बेचे थे, वो बड़े शानदार थे। “भारत को विश्व गुरु बनाएंगे, रोजगार लाएंगे, विकास की गंगा बहा देंगे।” लेकिन हिंडेनबर्ग ने आकर ठंडे पानी की बाल्टी डाल दी। सपनों की चादर हटते ही लोगों को असलियत की ठंडी हवा लगने लगी। अब सब हड़बड़ाए हुए हैं कि “अरे, ये क्या हो गया?”
सपने तो वैसे भी ऊनी चादर की तरह होते हैं। जब तक ढंके रहते हैं, ठंड नहीं लगती। पर जरा सी खिसक जाए, तो आदमी ठंड में ठिठुरने लगता है। अदाणी जी ने सपनों की बड़ी चादर फैलाई थी, हिंडेनबर्ग ने जरा सा खींच लिया और अब लोग ठंड से कांप रहे हैं।
गुब्बारा फूटा या फुलाया गया?
अब सवाल ये है कि अदाणी जी का गुब्बारा सचमुच फूटा है या उसे और बड़ा करके दिखाया जा रहा था। हिंडेनबर्ग ने जो सवाल उठाए, उससे गुब्बारे की हवा निकल गई। लेकिन ये खेल यहीं खत्म नहीं होता। अदाणी जी तो वापस आएंगे, और फिर से वही कहेंगे—“अरे, ये तो देश पर हमला था!” और जनता फिर से सोचेगी कि भाई, देश का मामला है, इसमें हम क्या कहें?
गुब्बारा जब भी फूटता है, आवाज तो होती ही है। फर्क बस इतना है कि इस बार फोड़ने वाला कोई बाहर से था, और अंदर वाले अब चिल्ला रहे हैं कि ‘हमारा गुब्बारा क्यों फोड़ा?’ पर असल खेल ये है कि गुब्बारा कितना भी बड़ा हो, अगर उसमें हवा ज्यादा भर दी जाए, तो फूटना तय है।