नई दिल्ली। हिंदी कैलेंडर में प्रत्येक माह की त्रयोदशी तिथि के दिन प्रदोष व्रत रखा जाता है और चैत्र माह की त्रयोदशी तिथि 6 अप्रैल को है। इसलिए 6 अप्रैल 2024, शनिवार को प्रदोष व्रत रखा जाएगा। यह व्रत शनिवार के दिन पड़ रहा है इसलिए इसे शनि प्रदोष व्रत कहा गया है। कहते हैं कि इस दिन यदि प्रदोष काल में भगवान शिव का विधि-विधान से पूजन किया जाए तो जीवन में आ रहे सभी विघ्न दूर हो जाते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। लेकिन यह व्रत तभी पूरा होता है जब पूजा के बाद व्रत कथा पढ़ी या या सुनी जाए।
शनि प्रदोष व्रत कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्राचीन काल में एक नगर में एक विधवा ब्राह्मणी रहा करती थी। पति की मृत्यु के बाद उसके पास लालन-पालन करने का कोई साधन नहीं था इसलिए वह भिक्षा मांगकर अपना जीवन व्यतीत कर रही थी। रोजाना की तरह एक दिन जब वह भिक्षा मांग कर वापस अपने घर की ओर लौट रही थी, तो उसे रास्ते में दो बालक दिखे जो कि अकेले थे और अपना रास्ता भटक गए थे। ब्राह्मणी दोनों बालकों को अपने साथ घर ले आई और पालन-पोषण करने लगी। जब वे दोनों बालक बड़े हो गए तो ब्राह्मणी उन्हें लेकर ऋषि शांडिल्य के आश्रम गई।
वहां जाकर ब्राह्मणी ने ऋषि शांडिल्य से अनुरोध किया कि वह अपने तपोबल से बालकों के बारे में पता लगाए और ऋषि ने ब्राह्मणी का स्वच्छ मन देखकर उसकी बात मान ली।ऋषि ने अपने तपोबल से पता लगाया और बताया कि यह कोई साधारण बालक नहीं हैं। बल्कि ये दोनों बालक विदर्भ राज के राजकुमार हैं। गंदर्भ नरेश के आक्रमण से इनके पिता का राज-पाठ छिन गया है। यह सुनकर ब्राह्मणी ने ऋषि से कहा कि कोई ऐसा उपाय बताएं जिससे बालकों को अपना राज-पाठ व घर-परिवार वापस मिल जाए.
ऋषि शांडिल्य ने ब्राह्मणी और राजकुमारों प्रदोष व्रत की महिमा बताई और यह व्रत रखने की सलाह दी।ब्राह्मणी और दोनों राजकुमारों ने विधि-विधान से प्रदोष व्रत करने लगे। एक दिन बड़े राजकुमार की मुलाकात अंशुमती से हुई और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे। इसके बाद ब्राह्मणी ने अंशुमती के पिता से विवाह की बात की तो वह मान गए और दोनों का विवाह हो गया। अंशुमती भी एक राजा की पुत्री थी और उसके पिता के सहयोग से दोनों राजकुमार ने गंदर्भ पर हमला किया और उनकी जीत हुई। जिसके बाद दोनों राजकुमारों को अपना सिंहासन वापस मिल गया और गरीब ब्राम्हणी को भी एक खास स्थान दिया गया, जिससे उनके सारे दुख खत्म हो गए। राज-पाठ वापस मिलने का कारण प्रदोष व्रत था, जिससे उन्हें संपत्ति मिली और जीवन में खुशहाली आई।