नोएडा। वेद-शास्त्रों में भगवान शिव के प्रिय आभूषण रुद्राक्ष के विषय में विस्तार से बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति प्रतिदिन रुद्राक्ष को धारण करता है व उनकी उपासना करता है उसकी सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं और महादेव का आशीर्वाद प्राप्त होता है। रुद्राक्ष दो शब्दों से बना है रुद्र और अक्ष. रुद्र का अर्थ है स्वयं महादेव और अक्ष का अर्थ है अश्रु. शास्त्रों में बताया गया है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई थी। इसी वजह से सनातन धर्म में इसे बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है
कैसे हुई थी रुद्राक्ष की उत्पत्ति?
पौराणिक कथा के अनुसार, जब महादेव घोर तपस्या के बाद भावुक हो गए थे. तब उनके आंखों से जो अश्रु गिरे थे, उनसे ही रुद्राक्ष के पेड़ों की उत्पत्ति हुई थी. शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि रुद्राक्ष में स्वयं भगवान शिव निवास करते हैं और इनकी उत्पत्ति प्राकृतिक रूप से फल के रूप में होती है. भारत के साथ-साथ रुद्राक्ष के पेड़ नेपाल, थाईलैंड, बर्मा और इंडोनेशिया में पाए जाते हैं. बता दें कि रुद्राक्ष के 14 प्रकार होते हैं, जिसके अपने-अपने महत्व हैं.
रुद्राक्ष का महत्व?
शास्त्रों में यह वर्णित है कि रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर 14 मुखी तक पाए जाते हैं. हर रुद्राक्ष के अपने-अपने महत्व है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो व्यक्ति नियमों का पालन करते हुए रुद्राक्ष धारण करता है, उन्हें सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. साथ ही जीवन में आ रही सभी प्रकार की समस्याएं दूर हो जाती हैं. बता दें कि रुद्राक्ष को धारण करने के लिए विधि-विधान का पालन करना चाहिए और इनसे जुड़े नियमों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए.
जानिए क्या है रुद्राक्ष को धारण करने का नियम?
शास्त्रों में बताया गया है कि रुद्राक्ष की पवित्रता को ध्यान रखते हैं. अशुद्ध हाथों से रुद्राक्ष को नहीं छूना चाहिए और स्नान के बाद ही रुद्राक्ष धारण करना चाहिए.
शास्त्रों में बताया गया है कि रुद्राक्ष को धारण करते समय ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप जरूर करना चाहिए और सोमवार के दिन रुद्राक्ष को विशेष रूप से धारण करना चाहिए.
बता दें कि व्यक्ति के द्वारा धारण किया गया रुद्राक्ष किसी अन्य व्यक्ति को नहीं देना चाहिए. इससे इसकी शक्तियां कम हो जाती हैं और कभी-कभी दुष्प्रभाव भी पड़ता है.