सुप्रसिद्ध कवि डॉ. उर्मिलेश की कविताओं ने श्री राम जन्मभूमि आंदोलन में जन-जन में अलख जगाई

श्री राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा पूर्ण होने पर कविताएं भी हो गयी अमर

बदायूं। जनपद के सुप्रसिद्ध राष्ट्रीय कवि रहे डॉ. उर्मिलेश ने अपनी रचनाओं से पूरे विश्व में जनपद को पहचान दिलाई है। उनकी निर्भीक लेखनी को जन-जन ने बहुत सराहा है। आज अयोध्या में प्रभू श्री राम के मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह होने जा रहा है, और कविता प्रेमियों डॉ. उर्मिलेश के वे अमर गीत और कवितायें बरबस याद आ रही हैं। 80 और 90 के दशक में डॉ. उर्मिलेश ने अपनी धार धार लेखनी से असंख्य कवितायें लिखी जिन्होंने श्री राम मंदिर आंदोलन को आम जन में अलग जगाने का कार्य किया। उस समय आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों में डॉ. उर्मिलेश को प्रमुख रुप से आमंत्रित किया जाता था, और उनकी श्री राम मंदिर आंदोलन से संदर्भित कवितायें प्रमुख रुप से सुनी जाती थी और मौजूद श्रोता मंत्रमुग्ध हो जाते थे। उनके बेटे और कवि डॉ. अक्षत अशेष बताते हैं, कि उस समय उनके पिता द्वारा लगभग तीस से चालीस कवितायें, गीत, मुक्तक और दोहे लिखे गये जिनके प्रमुख रुप से उनकी एक प्रसिद्ध रचना जिसमें पूरे देश में धूम मचायी –
The poems of the famous poet Dr. Urmilesh awakened the spirit of the people in the Shri Ram Janmabhoomi movement 1धर्म के अनूठ अनुष्ठान के लिए, संस्कृति के पावन विहान के लिए,
भारतीयता के नवोत्थान के लिए, राष्ट्रचेतना के अभियान के लिए,
अपने अस्तित्व की पहचान के लिए, यानी हिन्दु, हिन्दी हिन्दुस्थान के लिए,
सारे अवरोधों को हटाके रहेंगे, हम राम मंदिर बनाके रहेंगे।
सन् 1990 में श्री राम शिला पूजन पर लिखी उनकी कविता –
आपके मंदिर को बनाने से रोका गया तो, हर एक हिन्दू राम शिला बन जायेगा।
अब राम मंदिर बनाते क्यों नहीं,
क्विता
देशवालों, तुम्हें इस देश की कसम, हिन्दू हो तो तुम्हें हिन्दू वेश की कसम,
राम मंदिर से मुख मोड़ना नहीं, रामद्रोहियों को ज़िन्दा छोड़ना नहीं।
या फिर, जिसमें लगन श्री राम की नहीं, ऐसी जिंदगानी किसी काम की नहीं।
उनका एक छन्द – आदि कवि की परम्परा का अंत हो न जाए, इसलिए राम पर गीत लिखते हैं हम।
उनके प्रकाशित कविता संग्रह चिरंजीव हैं हम की रचनायें आज भी प्रासंगिक हैं, जैसे वे जन जन से श्री राम के आदर्शो को आत्मसात करने हेतु प्रेरित करते हुए कहते हैं –
आओ हम भी अब राम बनें, सूखे न संस्कृति की धरती, हमस ब ऐसे घनश्याम बनें।
या पांखड का विरोध करते हुए कहते है-
मानस का पाठ और ऊंचे लाउडस्पीकर, पावन चौपाई के अश्लीली फिल्मी स्वर।
प्रभू को समर्पित रचना – लोक जीवन की कथा हैं राम, भक्ति, श्रद्धा आस्था हैं राम।
या अनेक रचनायें जैसे, हम बने अभी तक राम नहीं या सूर्यवंशी राम के इस देश में अब ज्येाति की उद्भावना होकर रहेगी। या फिर धनुष बाण ले राम उठो, या क्या यही है राम का प्रिय देश या हे राम! हाथ में धनुषवाण लेकर आओ, इस युग का तुलसीदास बुलाता है तुमको। या श्री राम कुशल सेनानी थे, वे शक्ति लिए वरदानी थे।
ऐसी असंख्या रचनाओं से उन्होंने उस व़क्त आम जन में श्री राम मंदिर आंदोलन के प्रति उत्साह और सक्रियता को जहां बढ़ाया वहीं श्री राम के आदर्शों और मूल्यों को ग्रहण करने लिए प्रेरित भी किया। आज डॉ. उर्मिलेश सशरीर हमारे मध्य नहंी हैं, लेकिन उनके वे अमर गीत, रचनायें आज श्री राम मंदिर के पूर्ण होने पर अमर हो गयी हैं, उनकी लेखन अपने उद्देश्यों को पूर्ण कर रहा है, जो सोच जो विश्वास, जो दृढ़ता उन्होंने अपने लेखन में रखी थी, वह आज सिद्ध हो रही है।

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