राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने पटना मेडिकल कॉलेज के शताब्दी समारोह में भाग लिया, कहा- बिहार में अच्छे चिकित्सा केंद्रों का विकास जरूरी

पटना: राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने आज (25 फरवरी, 2025) बिहार के पटना में पटना मेडिकल कॉलेज के शताब्दी समारोह में भाग लिया। इस अवसर पर राष्ट्रपति ने इस संस्थान के ऐतिहासिक योगदान को सराहा और इसे बिहार की अमूल्य धरोहरों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि पटना मेडिकल कॉलेज का एक गौरवशाली इतिहास रहा है, जिसमें पुरातनता को संरक्षित करते हुए आधुनिकता की ओर निरंतर अग्रसर होने का उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। पीएमसीएच एशिया के सर्वश्रेष्ठ अस्पतालों में से एक था, और इसके पूर्व छात्रों ने देश-विदेश में अपनी सेवा, समर्पण और प्रतिभा के माध्यम से पीएमसीएच का नाम रोशन किया है।

राष्ट्रपति ने कहा कि इलाज के लिए दूसरे शहर या राज्य में जाने से कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे इलाज में देरी, भोजन, आवास और रोजगार की कठिनाइयाँ। इससे बड़े शहरों के चिकित्सा संस्थानों पर भी अतिरिक्त दबाव बनता है। उन्होंने सुझाव दिया कि देशभर में अच्छे चिकित्सा संस्थानों का विकेंद्रीकरण इन समस्याओं का समाधान कर सकता है। उन्होंने उदाहरण के तौर पर चेन्नई, हैदराबाद, मुंबई और इंदौर जैसे शहरों का उल्लेख किया, जो विशेष उपचार केंद्रों के रूप में विकसित हुए हैं। राष्ट्रपति ने बिहार में भी ऐसे कई केंद्रों के विकास की आवश्यकता जताई, जिससे न केवल राज्यवासियों को उच्च गुणवत्ता की चिकित्सा सुविधाएँ मिलेंगी, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा मिलेगा।

President Draupadi Murmu attended the centenary celebrations of Patna Medical College, said- development of good medical centers is necessary in Bihar

राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि यह तकनीक का युग है, और चिकित्सा क्षेत्र में भी तकनीक का अहम योगदान है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और रोबोटिक्स जैसी नई तकनीकें चिकित्सा प्रक्रियाओं को सरल और सटीक बना रही हैं। उन्होंने पीएमसीएच के सभी हितधारकों से नवीनतम तकनीकों को अपनाने की अपील की, जिससे इलाज को और अधिक प्रभावी और डॉक्टरों की दक्षता को बढ़ाया जा सके।

राष्ट्रपति ने इस अवसर पर डॉक्टरों से अपील की कि वे अपने पेशेवर जीवन में मरीजों की सेवा के साथ-साथ रक्तदान और अंगदान के महत्व के बारे में लोगों को जागरूक करें। उन्होंने कहा कि डॉक्टर न केवल चिकित्सक होते हैं, बल्कि वे शोधकर्ता, शिक्षक और परामर्शदाता भी होते हैं, और इन सभी भूमिकाओं में वे समाज और राष्ट्र के निर्माण में योगदान देते हैं।

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