अलवर : अलवर शहर और जिलेभर में शासन प्रशासन की लापरवाही के कारण जनता की पेयजल समस्या और भी गंभीर होती जा रही है। हालांकि मीटिंग्स का आयोजन होता है, लेकिन धरातल पर इनका कोई असर नहीं दिखता। सर्दियों में पूरे जिले में ग्रेप की गाइडलाइन की धज्जियां उड़ाई गईं, जिससे आमजन को प्रदूषित हवा में जीने को मजबूर होना पड़ा। अब, राशन वितरण के मामले में भी शासन प्रशासन की ओर से गरीबों को बड़ा झटका देने की तैयारी की जा रही है।
गरीबों के राशन में कटौती, 31 जनवरी तक अंतिम तिथि
अब, सूबे की डबल इंजन सरकार गरीबों का राशन छीनने के लिए कमर कस चुकी है। भजनलाल सरकार ने जिला रसद विभाग को 31 जनवरी तक सक्रिय कर रखा है ताकि गरीबों का राशन छीना जा सके। एनएफएसए योजना के तहत, जिन परिवारों की वार्षिक आय एक लाख रुपये से अधिक है, उन्हें राशन का गेहूं नहीं दिया जाएगा। इस नीति से मजदूर वर्ग और गरीब परिवारों को गंभीर संकट का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि वे दो वक्त की रोटी से भी वंचित हो सकते हैं।
वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों में एक लाख की आय सीमा अनुपयुक्त
वर्ष 2012-13 में एनएफएसए योजना की शुरुआत हुई थी, और उस समय एक लाख रुपये की वार्षिक आय को गरीब परिवारों के लिए उचित माना गया था। लेकिन आज के संदर्भ में, यह आंकलन पूरी तरह से अप्रचलित हो चुका है। वर्तमान में रेडी पटरी वाले या अन्य मजदूर वर्ग की आय बढ़ी है, लेकिन यह अभी भी पर्याप्त नहीं है। सरकार द्वारा एक लाख रुपये की आय सीमा तय करना गरीबों के हित में नहीं है और इसे पुनः विचार करने की आवश्यकता है।
नेता प्रतिपक्ष की खामोशी और जनता की समस्याएं
अलवर जिले की इस गंभीर स्थिति पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली की खामोशी भी सवालों के घेरे में है। लंबे समय तक दलित और अल्पसंख्यकों के नाम पर सत्ता में रहने वाले जूली, अब जनता की गंभीर समस्याओं को लेकर सरकार को घेरने के बजाय चुप्पी साधे हुए हैं। यह स्थिति और भी चिंताजनक है क्योंकि गरीबों के अधिकारों के लिए लड़ाई की बजाय, उनकी समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा है।
सारांश
इस समय जरूरतमंद परिवारों के लिए राशन का संकट बढ़ चुका है, और प्रशासन की निष्क्रियता और राजनीतिक खामोशी से गरीबों को कोई राहत नहीं मिल रही है। सरकार को अपनी नीतियों पर पुनः विचार करना चाहिए ताकि गरीबों को इस कठिन समय में उचित राशन मिल सके और उनकी रोज़ी-रोटी की समस्या हल हो सके।