परिवार पहचान पत्र की अनिवार्यता खत्म करे सरकार:  कुमारी सैलजा

कहा- हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार अपनी गलती स्वीकार करे

ऐलनाबाद: अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की महासचिव, पूर्व केंद्रीय मंत्री और सिरसा की सांसद कुमारी सैलजा ने परिवार पहचान पत्र (पीपीपी) की अनिवार्यता पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि यह प्रणाली जनता के लिए “परिवार परेशान पत्र” बनकर रह गई है। पंजाब-हरियाणा उच्च न्यायालय ने भी हरियाणा सरकार को आदेश दिया है कि वह सुधारात्मक कदम उठाए ताकि किसी भी नागरिक को पीपीपी की कमी के कारण आवश्यक सेवाओं से वंचित न किया जाए। साथ ही, कुमारी सैलजा ने पीपीपी की अनिवार्यता को समाप्त करने की मांग की।

परिवार पहचान पत्र में हुई त्रुटियां और सरकार की जिम्मेदारी:
कुमारी सैलजा ने मीडिया को जारी बयान में कहा कि सरकार ने परिवार पहचान पत्र को जनता पर जबरन लागू किया था, लेकिन इसमें कई खामियां हैं जिन्हें आज तक ठीक नहीं किया गया है। पीपीपी के नाम पर भ्रष्टाचार भी हुआ है और लोगों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अपने आदेश में यह स्पष्ट किया है कि पीपीपी को मौलिक सेवाओं के लिए अनिवार्य नहीं माना जा सकता, यह एक स्वैच्छिक प्रक्रिया होनी चाहिए।

हाईकोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए सरकार से सुधार की मांग:
कुमारी सैलजा ने कहा कि जो जानकारी पीपीपी में दी जाती है, उसे सरकार मानने से इनकार कर देती है और अलग से प्रमाण पत्र की मांग करती है, जिससे पीपीपी का कोई महत्व नहीं रह जाता। उन्होंने सरकार से मांग की कि हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार अपनी गलती स्वीकार करे और पीपीपी की अनिवार्यता को खत्म करे।

त्रुटि सुधारने का बोझ सरकार पर:
कुमारी सैलजा ने यह भी कहा कि जिन नागरिकों के पीपीपी में त्रुटियां हैं, उन्हें सुधारने का खर्च सरकार को उठाना चाहिए। यह बोझ पीड़ित नागरिकों पर नहीं डाला जाना चाहिए।

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