ग़ुस्ताखी माफ हरियाना -पवन क़ुमार बंसल: राजेन्द्र सिंह सरोहा के सौजन्य से..

ग़ुस्ताखी माफ हरियाना -पवन क़ुमार बंसल 

राखी गढ़ी बारे महत्त्वपूर्ण जानकारी हमारे जागरुक पाठक
राजेन्द्र सिंह सरोहा के सौजन्य से i राखी गढ़ी मेरा गांव है,मेरा मकान सबसे पहले 1996 में खुदाई की शुरुआत हुई,इस बाड़बंदी क्षेत्र में आने पर हमने खाली कर दिया था। मेरे पूर्वजों के दो पुराने घर और एक मेरा खुद का खरीदा प्लाट गांव में है। मेरे पूर्वज गुरु तेग बहादुर जी के प्रभाव में आकर सिख धर्म अपनाने के बाद परम्परागत चर्मकार काम को छोड़कर भवन निर्माण में मजदूरी का काम करने लगे थे। इसी के चलते गांव में गुजर बसर मुश्किल होने के कारण आजादी पूर्व मेरे पड़दादा,दादा किसी अंग्रेज इंजीनियर के साथ मजदूर गैंग/ झुण्ड/समूह (वो अंग्रेजों के प्रभाव से गैंग ही बोलते थे) रखते थे।झांसी,दतिया, देवबंद के रेलवे स्टेशन मेरे दादा (4 भाई) थे उनके पास सैकड़ों लेबर थी ने ही बनाने में काम किया था। जो आज भी मेरे दादा जी की 1947 के सांप्रदायिक दंगों में मृत्यु होने के बाद से मेरे गांव में ही रह गए हैं। उस समय मजदूर परिवारों के लिए अलग से हमारी जमीन पर ही जैसे आज लेबर कैम्प बनाए जाते हैं झोपड़ियां बनाई गई थी अब उनका एक पूरा मोहल्ला (बागड़ी) बन गया है। ये बातें मेरे बचपन में सबको मेरे ताऊ जी बताया करते थे हालांकि अब उन परिवारों ने तरक्की कर ली और वो इस बात को शायद स्वीकार भी नहीं करें।लेकिन इतिहास तो इतिहास है।मेरी दादी और मेरे एक ताऊ की कोई बीमारी(1936 में) आई थी तब दतिया में ही मृत्यु हुई थी। दोनों को एक ही चिता पर रखकर जलाया गया था। अब मैं कामरेड हूं भवन निर्माण कामगार यूनियन का गुरुग्राम जिला सचिव रहते जब भी मजदूरों की मौत की खबर सुनता हूं अपनी दादी और ताऊ जिनको कभी देखा नहीं याद करके खुद को मजदूर के दर्द से अपने को जुड़ा हुआ पाता हूं। खास बात यह है कि कंकाल हमारे पूर्वजों का ही है।DNA हमसे ही मिलता है। आपने मेरे गांव को गुस्ताखी माफ़ हरियाणा में जगह दी धन्यवाद, बातें बहुत हैं सर जी,,,,,, फिर कभी,,,,

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