नई दिल्ली : लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने के लिए संविधान संशोधन विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक को 269 वोटों के समर्थन के साथ लोकसभा ने स्वीकार कर लिया, जबकि इसके विरोध में 198 वोट पड़े। केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने प्रस्ताव रखा कि इस विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाना चाहिए।
विपक्ष का विरोध
विधेयक का विपक्ष की ओर से तीखा विरोध देखने को मिला। समाजवादी पार्टी के सांसद धर्मेंद्र यादव ने कहा, “यह संविधान के मूल ढांचे पर हमला है। कई संविधान निर्माताओं और न्यायालय ने कहा है कि किसी को भी संविधान के मूल ढांचे को बदलने का अधिकार नहीं है। यह विधेयक संविधान के खिलाफ है।”
पीएम मोदी जेपीसी को भेजना चाहते थे: अमित शाह
गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के विरोध पर सफाई देते हुए कहा, “जब बिल कैबिनेट में आया, तो प्रधानमंत्री मोदी ने सुझाव दिया था कि इसे संसद की संयुक्त समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाना चाहिए।”
इस बीच, आईयूएमएल नेता ई.टी. मोहम्मद बशीर और आरएसपी सांसद एन.के. प्रेमचंद्रन ने विधेयक का जोरदार विरोध किया और इसे जल्द से जल्द वापस लेने की मांग की।
“विधेयक संविधान के खिलाफ है” – कांग्रेस
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने विधेयक को संविधान के मूल ढांचे पर हमला बताया। उन्होंने कहा,
“यह विधेयक इस सदन की विधायी क्षमता से परे है। मैं सरकार से इसे तुरंत वापस लेने का आग्रह करता हूं।”
“संविधान के मूल ढांचे पर प्रहार” – टीएमसी
टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, “यह विधेयक अनुच्छेद 82 और उप-अनुच्छेद 5 के माध्यम से चुनाव आयोग को सारी शक्ति देने की कोशिश करता है। हमेशा एक पार्टी शासन नहीं कर सकती।”
“सत्ता का केंद्रीकरण” – एनसीपी (एसपी)
एनसीपी (एसपी) नेता सुप्रिया सुले ने विधेयक का विरोध करते हुए कहा, “यह संविधान की कीमत पर सत्ता को केंद्रीकृत करने का प्रयास है। सरकार को इसे वापस लेना चाहिए या इसे परामर्श के लिए संयुक्त संसदीय समिति को भेजना चाहिए।”
विधेयक में क्या प्रावधान हैं?
13 दिसंबर की रात विधेयक की प्रति सामने आई, जिसमें निम्नलिखित मुख्य बिंदु शामिल हैं:
यदि लोकसभा या किसी राज्य की विधानसभा पूर्ण कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है, तो उसके शेष कार्यकाल को पूरा करने के लिए मध्यावधि चुनाव कराए जाएंगे।
संविधान में संशोधन:
- अनुच्छेद 82(ए) जोड़ने का प्रस्ताव (लोकसभा और विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव)।
- अनुच्छेद 83, 172 और 327 में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है।
विरोध और समर्थन की राह
“एक राष्ट्र, एक चुनाव” विधेयक पर संसद में जोरदार बहस के साथ देशभर में राजनीतिक बयानबाजी भी तेज हो गई है। सरकार जहां इसे प्रशासनिक दक्षता और चुनावी खर्च में कमी का जरिया बता रही है, वहीं विपक्ष इसे संविधान के मूल ढांचे पर हमला करार दे रहा है। विधेयक को लेकर आगे की कार्रवाई के लिए संयुक्त संसदीय समिति का फैसला महत्वपूर्ण रहेगा।