अपने राजकाल में भूपेन्द्र हूडा ने भी पब्लिक इंटरेस्ट को खूब हानि पहुंचाई है. असल में राज्य का ऑडिट सिस्टम ही बेकार है. इलेक्शन के टाइम किसी एजेंसी द्वारा इनके कामकाज का जन ऑडिट तीन आस्पेक्ट्स -पॉलिटिकल, इकॉनोमिक और डेवलपमेंट, के बारे में करवाना चाहिए. लेकिन लोकतंत्र के नाम पर बाहुबली और अथाह संपत्तियों के मालिक बने हुए पॉलिटिकल लोग ऐसा करवाने नहीं देते. जो लोग इन्हें सरकारी फाइलों में गुस्ताखी करके राज्य को वित्तीय हानि पहुंचाने वाले मुद्दों से परिचित हैं और फंसा सकते हैं उन्हें कुछ ले-देकर चुप करा दिया जाता है या अशोक खेमका जैसे लोगों को सेवाकाल में ५७ बार ट्रान्सफर करके उन्हें कहीं भी टिक कर काम नहीं करने दिया जाता. ऐसे कुछ कर्मठ और ईमानदार लोगों को अनेक बार बहुत हानि पहुंचाई गयी है. इसलिए अधिकांश अधिकारी वर्ग सताये जाने के डर कर बोलता नहीं है. प्रेस अब इन राजनेताओं का जार-खरीद गुलाम है.
पिछले १० सालों में प्रिंसिपल ऑडिटर जनरल ऑफ़ हरयाणा द्वारा हरयाणा टूरिज्म कारपोरेशन के बारे में की गयी ऑडिट रिपोर्ट, परफॉरमेंस रिपोर्ट और कंप्लायंस रिपोर्ट्स मुझे ऑडिटर जनरल और टूरिज्म कारपोरेशन की वेबसाइट पर नहीं मिली है. इसीसे आपको अंदाज़ होना चाहिए कि राज्य सरकार और टूरिज्म विभाग इसे जानबूझ कर क्यों छिपा रहे हैं.
हरयाणा टूरिज्म को कौन लोग, किस उद्देश्य से वास्तव में इस्तेमाल करते रहे हैं और घाटा क्यों बढ़ा है, यह कभी उजागर ही नहीं किया जाता. निगहबानी वाली एजेंसीज के पावरफुल के अधिकारियों और इनके परिजनों को सरकारी खर्चे पर टूरिज्म रिसॉर्ट्स में निशुल्क एंटरटेन किया जाता रहा है ताकि ये एडवर्स रिपोर्ट न लिखें. रिसॉर्ट्स में विजिटर्स रजिस्टर में अधिकारी लोग आधी-अधूरी परिचयात्मक एंट्रीज़ करते हैं और विजिट को ‘ऑफिसियल’ लिखते हैं जबकि इस ‘ऑफिसियल’ विजिट से सम्बद्ध निर्गमन निर्देश में कहीं भी यह नहीं लिखा जाता कि सरकारी दौरा क्यों किया गया है.
असल में पॉलिटिकल गवर्नमेंट खुद को बचाने के लिए ही गुरुग्राम के सेक्टर ५६ के कंट्री क्लब को लीज़ पर देने के लिए कुलबुला रही हैI