गुस्ताखी माफ़ हरियाणा- पवन कुमार बंसल
गुरुवंदन दिवस पर पत्रकारिता में मेरे गुरु श्रद्धेय श्री प्रभाष जोशी को सादर नमन
आप जहाँ भी है उम्मीद है वहा भी आपके सेवाएं जारी होगी। इस दुनिया में आप कभी खाली नहीं बैठे तो वहां की भी हर वयस्था पर आपकी कलम जरूर चलती होगी। यहाँ जब भी निर्भीक और निष्पक्ष पत्रकारिता की बात होती है तो आपका उल्लेख जरूरी हो जाता है। किसी खबर से पैदा lपंगे को आप खुद झेल जाते थे लेकिन संवाददाता पर आंच नहीं आने देते थे। मेरा सौभाग्य कि आपके सानिध्य में मुझे काफी कुछ सिखने को मिला। १९८७ में जब आपने मुझे चंडीगढ़ जनसत्ता में नियुक्त किया तो एक बात कही थी कि हरियाणा की पत्रकारिता और राजनीती दोनों ही यहाँ के लालो से प्रभावित रहती है, तू इससे बच कर
रहना। आपकी इस अनमोल नसीहत को मेने अपने दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए बसा लिया।
आपको वे दोनों घटनाये तो याद होंगी ही कि किस तरह मेरी खबर से नाराज होकर सी एम चौधरी देवीलाल ने अख़बार के मालिक रामनाथ गोयनका को शिकायत कर दी और आपने मेरा बचाव किया था। और एक बार जब सुषमा स्वराज ने मेरी शिकायत की.। आप मुझे प्यार से पंडित पवन कुमार कहते थे। पन्द्रह वर्ष पूर्व रोहतक में मेरी किताब “खोजी पत्रकरिता क्यों और कैसे? ” के विमोचन के वो क्षण मुझे आज भी प्रेरणा देते है जब आपने उपस्थित लोगो से कहा था “इस किताब की एक फोटोकॉपी लाकर में रख लेना क्योंकि आने वाले समय में पवन बंसल जैसे खोजी पत्रकार केवल चिड़ियाघर में ही देखने को मिलेंगे। ”
मन्नवर राणा की पंक्तियों में आपको नमन करते हुए।
जब कभी धूप की शिद्धत ने सताया मुझको।
याद आया बहुत एक पेड़ का साया मुझ को।
अब ही रोशन है तेरी याद से घर के कमरे।
रौशनी देता है अब तक तेरा साया मुझको।