Who is responsible for wastage of public money in Hansi – Bhutana link canal project dreamchild of then CM,Bhupinder Singh Hooda.?

Gustakhi Maaf Haryana-Pawan Kumar Bansal.

Issue of construction of Hansi -Bhutana Link canal has taken serious turn as people are asking as who was responsible for this criminal wastage of public money.?

Karan Dalal then Chairman of the Estimates Committee of Haryana Vidhan Sabha told that he had sought detailed information from the Irrigation Department through a Questionnaire regarding gradient, necessary permissions from Central Water Commission, feasibility study etc.Capt Yadav the then Irrigation Minister succeeded to convince the then C M Bhupinder Hooda about the necessity of project.

Dalal alleged that there were efforts to stall the proceedings of the committee to proceed further in this matter and the matter didn’t reach its final conclusion.According to Dalal then Speaker of assembly Dr Raghubir Kadiyan reportedly persuaded members of the committee for not attending its meetings so that the quorum was not complete.Highly placed sources told that both Bhupinder Hooda and Ajay Yadav were convinced that the project would result in big electoral gain in southern Haryana as it promised irrigation water to the area.

R.K.Garg retired EIC ,Irrigation who in his capacity of Chief Engineer had opposed the move has written in his memoir titled “Reflections “ Recall Garg” One day ,when I was in the office of Captain Ajay Singh Yadav ,the then Irrigation Minister and with whom I had fairly warm relations,he asked me that if I was really serious in questioning the viability of the Hansi Bhutana canal project.I told him that the project as was being suggested would be unworkable.I clearly cautioned him that he would find it difficult to explain to his electors when he would be convassing for 2009 elections that why the canal built at such huge cost could not be made operational.I shared my apprehension that the canal may not run during our life time.

After hearing so ,he was visibly disturbed and asked his PA to ask the EIC to come and see him immediately.I left the office and could believe that EIC again convinced him about the success of the project”
.Dr Ranbir Singh Phaugat researcher and political analyst adds that In fact, it was a technical prophesy that En. R. K. Garg made at that time, which came to be realized only much later when all the players disappeared from the scene. No politicians would ever take responsibility of squandering millions of rupees and be punished for incurring infructuous expenditure from public exchequer.

यह हमारी न्याय प्रक्रिया की करारी हार है. इस हालात में सभी की जिम्मेवारी तय करते हुए इनकी संपत्ति को कुर्क कर लेना चाहिए. I जिस तरह से अमरीका सन १९४३ के बाद से अन्तराष्ट्रीय कूटनैतिक निर्णय लेने में गलती पर गलती करता रहा है जैसे कि कोरिया, विएतनाम, सोमालिया, चीन और अफगानिस्तान, उसी तरह से हरयाणा में राजनीति के मैदान में रहे भूपेंद्र हूडा जैसे लोगों ने अनेक ऐसे गलत निर्णय लिए जिनके लिए भारत संघ के राज्यों में तालमेल न होने की स्थिति में भी निर्णय लेकर इसे गलत साबित करने के लिए अरबों रुपया हांसी-बुटाना नहर परियोजना पर बर्बाद किया गया. इंजीनियर गर्ग साहब की आपत्ति वाले बिन्दुओं को लिखित में जाहिर न करते हुए आपने इस बारे में विडियो-क्लिप पोस्ट कर दी है. मैं विडियो पोस्ट नहीं देखता क्योंकि इसमें न कभी आपकी आवाज़ साफ़ सुनायी दी है और न ही इंटरव्यू देने वाले की. यह कॉमन सेन्स तो एक दरिद्र में भी होती है कि दो पैसा खर्च करने से पहले वह नफ़ा-नुकसान तौल लेता है. भूपी भाई ने कौनसा अपनी जेब से पैसा खर्चना था? पंजाब में भी नहर अगर बन जाती और पानी इधर आ जाता तो यह उसका क्रेडिट लेते और नहीं बन पायी तो पंजाब के पॉलिटिकल रूलर्स को कसूरवार घोषित करने का आप्शन खुला ही था.

पंजाब पोलीटिशियंस ने अपनी जनता के नाम पर इस प्रोजेक्ट से पीछे हटने की घोषणा लगातार की, चाहे सरकार अकालियों की रही हो, कांग्रेस की या ‘आप’ पार्टी की. ऐसी ही अनेक गलतियों के लिए अबकी बार लोगों ने बाबू-बेटा को घर बिठा दिया है ताकि वे अपनी कमअक्ली पर अफ़सोस कर सकें. भूपी भाई अगर अपनी सारी संपत्ति बेच दे तब भी हांसी-बुटाना नहर पर बर्बाद हुयी धनराशि के बराबर धन नहीं जुटा पाएंगे. देखा जाय तो यह पैसा बर्बाद नहीं हुआ क्योंकि नहर खोदाई के लिए लगे हुए श्रम का और मशीनों का मूल्य किसी की तो जेब में गया ही. असली नुकसान १५०० एकड़ जरखेज जमीन का हुआ जिस पर ३० बरस से खेती नहीं हो रही है. इस तरह से 60 फसली साल बर्बाद हुए. एक एकड़ में धान, गेहूं, ज्वार, बाजरा की फसलों से औसत कमाई अगर रु.20 हज़ार भी लगाई जाए तो कुल नुकसान रु. 1,80,00,000,00 अर्थात एक अरब 80 करोड़ रुपयों का हुआ है. यह शायद बहुत कम है.

अगर एकोनोमिस्ट्स ने स्टेटिस्टिशियंस के साथ मिलकर इस नुकसान की कास्टिंग की होती हो सही फिगर सामने आ सकती है. जनता को विरोधी पॉलिटिकल पार्टी वाले ये बातें इसलिए कभी नहीं बताते कि (१) अव्वल तो ऐसा करना पॉलिटिकली रिस्की है, या (२) वे बिलकुल अक्लहीन लेकिन बेहद चालाक रहे हैं. ये लोग हमेशा अनजान बने रहते हैं और आरोपों की पुष्टि के लिए अकाट्य तथ्य जनता के साथ शेयर नहीं करते. जबकि इंजीनियरिंग और प्रशानिक स्टाफ को वे हमेशा ही बलि का बकरा बना देते हैं. ऐसे मामलों में निर्णय पॉलिटिकल-एग्जीक्यूटिव लेती है, तब गलती होने की स्थिति में न्याय प्रणाली भी बिलकुल बे-असर रहती है या बेबस होकर तमाशा देखती है. न्यायविदों को मालूम सब होता है, लेकिन सच बात जाहिर नहीं हो पाती.l

1 Comment
  1. Rajinder Krishan Sharma says

    Every DPR (detailed project report) has an important component of Cost Benefit Ratio in respect to the Viability &reliability of the project
    No such detailed exercises seem to have been done.Political decisions are not sometimes based on public interest but mostly on personal economic gains of the leader ruling the regime or his business Cronies. Who got the Tenders worth millions ? Who manipulated the system?Property ID and Family ID scams and Ecogram scam in Haryana Khatter regime are the examples where no accountability has been fixed. Similarly No accountability will be fixed in Hansi Butana link canal scam. Public looted politicians suited,judiciary muted???????????

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