‘गुस्ताखी माफ: हरियाणा- हरियाणा में नई सरकार – नया कार्य एजेंडा

  • पवन कुमार बंसल

एक राजनैतिक विश्लेषक और शुभचिंतक हरियाणा

5 अक्टूबर को विधान सभा के लिए हुई पोलिंग में 60% से अधिक मतदान हुआ है. कांग्रेस पार्टी की दस साल में हुए दो चुनावों के बाद सत्ता हासिल करके प्रदेश में सरकार नहीं बना सकी. एक ख़ास बात यह कि जिस प्रकार से तीसरी बार भाजपा सत्ता में वापिस आने के लिए बेचैन या डेस्परेट दिखती है, कांग्रेस पार्टी ने वैसा नहीं किया और न ही अपनी निराशा को जाहिर किया. कांग्रेस पार्टी ने इंतज़ार किया. सन 2014 में विधान सभा के लिए हुए चुनाव में लोगों ने हरयाणा में भाजपा को वोट दिया था और इन्हें ही फिर से सन 2019 में अधिक वोट दिए लेकिन सत्ता में जजपा के दुष्यंत चौटाला के बिना सरकार नहीं बना पायी.

खट्टर का पहला और दूसरा कार्यकाल हरियाणा में किसान और जनविरोधी ही रहा. यह बात जरूर सुनने में आयी कि सरकारी जॉब के लिए जो कि अधिकांशतः क्लास-4 या कॉन्ट्रैक्ट के थे, बिना पर्ची-खर्ची के रिक्रूटमेंट या रि-अपॉइंटमेंट हुईं. क्लास-3, क्लास-2 और क्लास-1 पोस्ट्स के लिए बहुत ही कम रिक्रूटमेंट हुयी, केवल उन्ही पोस्ट को भरा गया जिन पर तैनात कर्मचारी या अफसर रिटायर हुए, मृत्यु हुई या इस्तीफ़ा देकर चले गए. अर्थात कुछ वैकेंसीज़ को ही भरा गया. हरियाणा में भाजपा हो या कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों में से एक को ही सत्ता में रहना है.

यहां प्रोपोर्शनल रिप्रजेंटेशन पार्टी में प्रथम स्तर पर टिकट देते समय होता है और विधान सभा में अगर बहुमत हो तो फिर सब कम्युनिटीज में प्रोपोर्शन के आधार पर मंत्री या अन्य कमाऊ पोस्ट्स पर एमएलएज को नियुक्ति दे दी जाती है. अनेक बार तो यह रिप्रजेंटेशन 100% हो जाता है. प्रतिपक्ष की पार्टी को सिर्फ संसदीय समितियों या विशेष समितियों में जगह मिलती है. देखा गया है कि 35-42% वोटों के आधार पर सरकार बनाने वाली पार्टी बाकी के 65-58% लोगों पर शासन करती है और इस तरह यह डिस्क्रिमिनेशन उतने समय तक बना रहता है जब तक कि विपक्षी पार्टी अगली बार तक अपनी सरकार नहीं बना लेती. डेमोक्रेसी का यही पहलु दुखद है. हरयाणा में भाजपा के सन 2014 में जब सरकार बनायी गयी वह ‘मोदी-लहर’ के कारण नहीं हुआ बल्कि कांग्रेस पार्टी की बहुत बुरी छवि के कारण था क्योंकि एनपीए के सहयोगी दल अत्यधिक भ्रष्ट हो चुके थे और मनमोहन सिंह या कांग्रेस अध्यक्ष उन्हें काबू में नहीं कर पा रहे थे. हरियाणा में भूपेंद्र हूडा के समय में लैंड डील्स में ग़दर था जो खट्टर के पहले मुख्य मंत्रीत्व काल तक कायम रहा. किसानों से उपजाऊ खेत की और कमर्शियल वैल्यू की जमीनें सरकारी डंडे के बल पर लोकहित का बहाना बनाकर अधिग्रहण कानून का जोर चलाकर छीनी गयीं.
इससे न केवल देहात में भूमि स्रोत पर आजीविका चलाने वाले किसान बर्बाद हुआ बल्कि उसकी जीवनशैली को भी नष्ट कर दिया गया. गुडगांव और अन्यत्र शहरों और कस्बों एवं हाइवेज से संलग्न भूमि को प्रॉपर्टी डेवलपर्स के साथ मिलकर राजनीति करने वालों ने घोखे से हड़प लिया. संवैधानिक शक्तियों का लोकविरुद्ध इस्तेमाल करने वाले राजनैतिक शक्ति से संपन्न व्यक्तियों ने किसान और गरीब का ऐसा नुकसान किया कि वे विगत के बीस सालों में दरिद्रता के चंगुल में फंस गए. जाति और आमदनी के हिसाब से इन्हें सोशल सिक्यूरिटी कवर से भी वंचित रखा गया. भूपेंद्र सिंह हूडा चाहे जो कह लें या पूर्व मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर जैसा भी सोच लें, प्रदेश में मिडिल इनकम ग्रुप और मार्जिनल फार्मर को इन दोनों ने लोकविरुद्ध नीतियां बनाकर हानि पहुंचाई और बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. वोट की ताकत का इस्तेमाल करके हरयाणा के लोग परिवर्तन करके देखते रहे हैं, लेकिन लोकमत और लोक का तजुर्बा यह बताता है कि सत्ता चाहे किसी भी पार्टी की रही हो, वह आमतौर से लोकहित में काम नहीं करती. लोकहित क्या है और कैसे इसे सिद्ध करना चाहिए ये मामूली पढ़े-लिखे या अर्द्ध-शिक्षित राजनीतिज्ञ जानते ही नहीं. बौद्धिकों की ये सुनते नहीं और एच सी एस और आईएस एवं आईपीएस किये हुए ब्यूरोक्रेट्स पर आदेश चलाकर गलत नीतियां और गलत काम करवाते रहे हैं.

नेता लोग पहले तो ठेकेदारी प्रथा के चलते हुए सार्वजनिक वित्त को साइफन-ऑफ़ करके अपने घर भरते हैं, रिश्वत खोरी को चरम पर ले जाकर प्रकृति और पर्यावरण विरुद्ध और नियम विरुद्ध काम करके जरूरत से अधिक धनार्जन करते हैं और फिर मसल पॉवर और इस धन के बलबूते पर गरीबों और कानून का पालन करने वाले लोगों और परिवारों को आतंकित करके रखते हैं. हरयाणा में उद्योगों, माइनिंग, जंगलात, सिविल वर्क्स, दारू का उत्पादान और बिक्री लाइसेंस, ट्रांसपोर्ट, पॉवर सेक्टर, कृषि उत्पाद की खरीद और विपणन, जंगलात, प्राइवेट एजुकेशन के लिए संस्थान बनाने की परमिशन, कमर्शियल काम्प्लेक्स बनाने के लिए लाइसेंस और सी एल यू जारी करने के हज़ार बहाने इनके पास मौजूद होते हैं. हरयाना में भाजपा और कांग्रेस ने लोककल्याण कारी योजनाओं के सफल सञ्चालन का दावा किया है जैसा दावा विज्ञापन देकर किया है, ग्राउंड लेवल पर इनका आकलन एक इंडिपेंडेंट एजेंसी से करवाया जाए तो भ्रष्ट आचरण उजागर हो जाएगा. यह सिर्फ सार्वजनिक पैसे की बरबादी के अलावा और कुछ नहीं. द इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली, सेमिनार, द हिन्दू, और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज (दिल्ली) के हरयाणा सम्बन्धी विशेष अध्ययन, रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट्स, वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट्स और अन्य विदेशी मूल की रिसर्च ओरिएंटेड, गंभीर अध्ययनों को प्रकाशित करने वाली पत्रिकाओं की स्टडीज को देख लीजिये तो हरयाणा के फाइनेंसियल-पोलिटी को लेकर भारी निराशा हाथ लगती है. इस प्रदेश में ये लोग ‘इक्विटी’, ‘इक्वलिटी’, ‘इन्क्लूजन’, और लोकतंत्र के बारे में कुछ ख़ास नहीं जानते. विशिष्ट, डेमोक्रेटिक पॉलिटिकल थॉट में ये सभी कोरे हैं. खट्टर या भूपी भाई से कोई इनके बारे में पूछे तो वे प्रश्नकर्ता को ही उठवा देंगें, ऐसा मेरा विचार है. हरयाणा में सन 2024 के हाल में संपन्न हुए चुनाव में जिस हिसाब से वोट पड़े हैं और जो नतीजे अपेक्षित हैं उनके पीछे दोनों बड़ी पार्टियों और स्वतंत्र कैंडिडेट्स की गुड गवर्नेंस, फाइनेंसियल मैनेजमेंट और लोगों की आम खुशी का तत्व प्रबल नहीं है बल्कि यह कि जैसे भी हो भाजपा को सत्ता से बाहर करके कांग्रेस को लाना है, न कि भूपेंद्र सिंह हूडा को.

आम मतदाता को न भूपी भाई से और न ही खट्टर बाबा से कोई लगाव या शत्रुता है बल्कि सभी लोग बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार से छुटकारा पाना चाहते हैं. यह ठीक है कि लोगों ने कांग्रेस को वोट नहीं दिया बल्कि हूडा और उसके सहयोगियों को दिया है, लेकिन असल तत्व है भाजपा को बाहर करना क्योंकि लोगों में अब इसके राज को सहन करने का मादा नहीं बचा है. कांग्रेस पार्टी हरयाणा में चुनावी नतीजों में बहुमत लेती है और सरकार बनाने में कामयाब होती है और तो यह पहले के मुकाबले में खुद को अधिक योग्य और बेहतर सिद्ध कर पाएगी, इसमें मुझे अभी शक है. भाजपा के सत्ता में रहे कुल समय में जो घटनाक्रम और गवर्नेंस का आलम रहा इस नज़र में कांग्रेस को पहले से बेहतर साबित करते हुए पहले वाली गलतियों को दोहराव से बचना होगा. सत्ताधारियों की आदतें मुश्किल से बदलती हैं. कांग्रेस के सत्ता में आने से हल्का सा ही परिवर्तन होगा लेकिन इसका असर थोड़े दिनों, या कहलें कि 4-6 महीना, तक ही रहेगा. इसके बाद पुराना ट्रेंड फिर से शुरू हो सकता है. कांग्रेस पार्टी सत्ता में आती है तो अगले चार साल इसके लिए मुश्किल वाले रहेंगे क्योंकि ऊपर के आका, अर्थात केंद्र सरकार’ मोदी जी और अमित शाह हैं और ये भाजपा पर कोई आघात सहन नहीं करेंगे. इसलिए सन 2029 तक अर्थात चार साल कांग्रेस किस तरह से अपनी स्थिति को बचाकर रखते हुए, लोगों को नाराज़ न करते हुए गुजारेगी, यह कांग्रेस पार्टी ही नहीं बल्कि भाजपा को भी देखना होगा. डेमोक्रेटिक प्रोसेस चल रही है, इस प्रक्रिया का हिस्सा बने रहकर आमजन पॉलिटिक्स और गवर्नेंस से कुछ सीख ले ही रहा है. मीडिया से उम्मीद होनी चाहिए थी वह अब नहीं है क्योंकि आज़ाद मीडिया को सौ खतरे हो गए हैं. अपनी रोजी-रोटी चलाने के लिए उन्हीं तीखी न्यूज़ और व्यूज की अपेक्षा मीठे व्यूज और दोस्ताना या प्रोपगंडा टाइप की न्यूज़ देनी होती है. इसे सॉफ्ट मटेरियल कहते हैं. गोयनका के दौर के इंडियन एक्सप्रेस के दिन अब कभी नहीं आएंगे. इसीलिये अब मीडिया को लोग ‘गोदी-मीडिया’ कहने लगे हैं. हरयाणा में कांग्रेस के मुख्य मंत्री को इस बार बहुत संभल कर निर्णय लेने होंगें और हरयाणा के दुखीजन को राहत देनी होगी. यह नौकरियों की बंदरबांट करके, कर्जा माफी देकर, एमएसपी बढ़ाकर, सब्सिडी देकर या बिना काम किये मुफ्त में पेंशन या सोशल सिक्यूरिटी के नाते खजाने का पैसा बांटकर नहीं हो सकता बल्कि माहौल बनाकर होता है जिसमें किसान को सपोर्ट, रिसर्च एंड एजुकेशन को बढ़ावा, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल, पॉवर और पानी का अच्छा इंतजाम, अच्छे सड़कें और दोस्ताना माहौल जरूरी हैं. विगत का हिसाब और तौर-तरीके देखें तो नेता लोग महकमों को आर्डर तो दे देते हैं कि फलाना काम करो या इसका करो और उसका न करो, लेकिन महकमें ही अगर एफिशिएंट और प्रोफ़िशियेंट नहीं या कर्मचारी और अफसर रिश्वत खोर, कामचोर और अर्द्ध प्रशिक्षित हैं तो सरकार की स्कीम्स फेल हो जाती हैं.

बुढापा पेंशन की राशि बढ़ाकर रु.६ हज़ार करने से पहले इस घोषणा की वैलिडिटी और फीजिबिलिटी का देखा जान जरूरी था? महिलाओं को भत्ता देने के विरोध में मैं नहीं हूं. लेकिन इससे पीले यह जरूरी है महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (सेल्फ-हेल्प ग्रुप्स) को शक्तिशाली और प्रोडक्शन इनोवेटिव बना कर, प्रोडक्ट की क्वालिटी को बेहतर बनाया जाए तभी मार्केटिंग संभव है. हरयाणा के किसी भी हेंडीक्राफ्ट की क्वालिटी राष्ट्रीय स्तर की भी नहीं होती, अंतरराष्ट्रीय की तो बाद ही छोड़ दें. रेहड़ी वालों, ठेले वालों या शहरों के भीतर स्माल-ट्रांसपोर्ट और वेंडिंग-ट्रालर्स की बेहतरीन व्यवस्था नहीं है जबकि हमारे यहां प्रोद्योगिकी में शैक्षणिक और प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या कम नहीं है. वे शानदार डिजाईन करके इन्हें वेंडर्स को क्यों नहीं देते? रोड्स को एक्सीडेंट-फ्री करने के लिए इनकी डिजाईनिंग में सुधार किया जाना जरूरी है जबकि पीडब्ल्यूडी इसे सिर्फ ठेकेदारों के भरोसे पर छोड़ देती है. नहरों और डिग्गियों की सफाई तरीके से नहीं की जाती और उनके भीतर या औणी-पौनी निकालने के बाद भी किनारों पर यह महीनों पड़ी रहती और फिर से तालाब में घुस जाते है. अर्बन- सेक्टर्स में सुविधाओं का रिव्यु करना बेहद जरूरी हो गया है. अगले तीस साल की बढ़ोतरी और जरूरतों को नज़र में रहते हुए अनेक सुविधाओं का संवर्द्धन और पुनर्निर्माण जरूरी हो चुका है. पहले से बने हुए मकानों से संलग्न हाई राइज बिल्डिंग नहीं बनाने की नीति को तत्काल प्रभाव से लागू करने की जरूरत है.

बिजली के तारों को सभी जगह अंडरग्राउंड और हैंगिंग केबल्स के रूप में परिवर्तित किया जाना सुरक्षा, ग्रीन-बेल्ट और पॉवर लॉस बचाने के लिए जरूरी कदम है. अस्पतालों में बड़ी धर्मशालाओं का निर्माण किया जाना और सरकारी स्कूलों की आधी से अधिक बिल्डिंग्स को ध्वस्त करके इन्हें पर्यावरण-अनुकूल फिर से बनाया जाना भी जरूरी है. सभी स्टूडेंट्स, अर्थात 100%, को पोषक आहार स्कूल में ही दिया जाना आवश्यक किया जाना जरूरी है. जरूरी यह भी है कि अधीनस्थ सेवा कर्मचारी चयन आयोग और हरयाणा पब्लिक सर्विस कमीशन के ऑटोनॉमस स्टेटस को बहाल किया जाए और इनमें बेहद ईमानदार और कर्मठ व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए. इस लिहाज़ से इन दोनों रिक्रूटमेंट एजेंसीज का पूरा कायाकल्प किये जाने की जरूरत है ताकि ये पॉलिटिकल इन्फ्लुएंस से बिलकुल मुक्त रहें. पब्लिक सर्विस कमीशन के सदस्यों और चेयरपर्सन की नियुक्ति गवर्नर द्वारा सीधा ही एक सर्च कमेटी बनाकर की जानी चाहिए. इसमें पोलिटिशियंस का कोई दखल न होना चाहिए. सभी डिपार्टमेंट्स का वर्क लोड नए सिरे से ‘एसेस’ किया जाना जरूरी है और वैकेंसीज़ और नयी भर्तियों के लिए पोस्ट क्रियेट किये जाने के लिए वित्त विभाग को सहमति देनी चाहिए. पेंशन की राशि को बढ़ाकर रु.६००० किये जाने की बनिस्पत यह पैसा वित्त विभाग की मार्फत उन विभागों को वैकेंसीज़ फिल करने और नयी भर्तियों के लिए तनख्वाह और भत्तों की पेमेंट करने के लिए दिया जाना चाहिए जहां काम होता है.

Leave A Reply

Your email address will not be published.