सुरेश पांडे
भारतीय मीडिया और राजनीतिक वर्ग द्वारा जनता पर थोपे गए कथानक में सबसे पहले सच ही खो जाता है। राजनीति और मीडिया के बीच बढ़ती नज़दीकी ने इस स्थिति को और गंभीर बना दिया है। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:
1. मीडिया का राजनीतिकरण
मीडिया का राजनीतिक दलों के साथ जुड़ाव, निष्पक्ष रिपोर्टिंग को प्रभावित करता है।
महत्वपूर्ण मुद्दों को नजरअंदाज कर, अप्रासंगिक विषयों को उभारा जाता है।
2. सनसनीखेज़ी बनाम तथ्य
टीआरपी की दौड़ में खबरों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है।
जटिल मुद्दों को सरल हेडलाइनों में बदल कर गलत जानकारी दी जाती है।
3. ध्रुवीकरण
मीडिया और राजनीतिक दल विभाजनकारी कथानक को बढ़ावा देते हैं।
सोशल मीडिया पर लोग अपने पूर्वाग्रहों की पुष्टि वाली जानकारी में ही सीमित हो जाते हैं।
4. विरोध का दमन
सच बोलने वालों को धमकियों या कानूनी कार्रवाई से चुप कराया जाता है।
असहमति जताने पर मुकदमों और कानूनों का दुरुपयोग होता है।
5. जनभावनाओं का शोषण
भावनात्मक अपीलों के जरिए तथ्यों की बजाय भावनाओं पर आधारित कथानक प्रस्तुत किए जाते हैं।
जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाने के लिए विवादित या अप्रासंगिक बहसें पैदा की जाती हैं।
6. फर्जी खबरें और गलत जानकारी
सोशल मीडिया पर झूठी खबरें तेजी से फैलती हैं, जो राजनीतिक दलों के एजेंडे को फायदा पहुंचाती हैं।
मुख्यधारा मीडिया भी कभी-कभी तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश करता है।
7. आईटी सेल का प्रभाव
डिजिटल प्लेटफॉर्म पर आईटी सेल के जरिए प्रोपेगैंडा फैलाया जाता है।
असहमति जताने वालों पर ट्रोलिंग और ऑनलाइन हमले होते हैं।
निष्कर्ष:
सच की बलि चढ़ाकर, भारतीय मीडिया और राजनीतिक वर्ग ने जनता को भटकाया है। यह भारतीय लोकतंत्र के लिए खतरनाक है, और इसे सुधारने के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता और जागरूकता की जरूरत है।
Suresh Pandey ✍️