भारत में मक्का की खेती: लचीलापन, अनुकूलन और समृद्धि की कहानी

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी

डॉ. ममतामयी प्रियदर्शिनी
मक्का, शुरू से अपने बहुउपयोगी गुणों के कारण, देश की खाद्य सुरक्षा और आर्थिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण स्रोत रहा है। भोजन, चारा और औद्योगिक उपयोग के अलावा, बायो फ्यूल सेक्टर में इसकी बढ़ती मांग के कारण मक्के को एक मामूली जीवन निर्वाह की फसल से उठकर आर्थिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में देखा जाने लगा है। हाल के वर्षों में, मक्का के किसानों ने हाइब्रिड किस्मों और उन्नत कृषि तकनीकों का उपयोग करके भारत को वैश्विक स्तर पर शीर्ष मक्का उत्पादक बना दिया है।

इन सबके बीच मक्के के क्षेत्र में हुए भारत सरकार द्वारा किए गए नीतिगत बदलावों और मक्का के आयात पर भारत की बढ़ती निर्भरता के कारण, मक्का-किसानों के आर्थिक उन्नति के सुनहरे सपनों पर आशंकाओं के काले बादल मंडराने लगे हैं। कल डेक्कनक्रॉनिकल में प्रकाशित एक समाचार के अनुसार, हमारी वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने टैरिफ दर कोटा (TRQ) के तहत बिना आयात शुल्क के दो लाख टन मक्का के आयात का आश्वासन दिया है, जिससे भारत में मक्के की आपूर्ति निर्बाध हो सके।
शुरू में सरकार का नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन बढ़ाने का निर्णय भारत के मक्का किसानों के लिए एक वरदान प्रतीत हुआ।

विश्व पटल पर मक्के के क्षेत्र में हमारे देश के निर्यात के बढ़ते आंकड़े, विभिन्न कृषि प्लेटफॉर्म पर मक्के की खेती को लेकर आकर्षक कहानियां, और दिन-ब-दिन मक्के के मूल्य में इजाफा—इन सबने मक्के की सुनहरी बालियों से भारत के मक्का किसानों के सुनहरे भविष्य की कहानियां बुनने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन इन व्यापार के आंकड़ों के पीछे एक गहन मानवीय कहानी छिपी है—उनके संघर्ष, निराशा और उधेड़बुन की कहानी।
एक तरफ तो ये किसान मक्के की अच्छी खेती करके अपनी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए पूरी तरह आशान्वित हैं, तो दूसरी तरफ वे मक्के के आयात के इस दानव से कैसे निपटें, इसे लेकर सशंकित भी हैं। उन्हें एक डर यह भी है कि कहीं बढ़ते आयात के कारण मक्के के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और आयात निर्भरता के बीच की खाई इतनी गहरी न हो जाए कि मक्के की खेती में लगाई जा रही उनकी पूंजी, श्रम और सपने मिट्टी के भाव न हो जाएं।

उनकी सुनहरी बालियां, जो कभी आजीविका का एक विश्वसनीय स्रोत थीं, अब अपने अस्तित्व को बचाने में लगी हैं।इन किसानों ने अपनी सीमित आय के बावजूद मक्के के सुनहरे भविष्य को देखते हुए कॉर्न में बहुत निवेश किया है। लेकिन उनके सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, उनके आत्मनिर्भर मक्का किसान होने का गर्व आर्थिक संघर्ष और अनिश्चितता की कठोर वास्तविकता से बदल रहा है। अगर उनकी आशंकाएं सच हुईं, तो यह कई छोटे किसानों के लिए आर्थिक संकट और भविष्य की अनिश्चितता पैदा कर सकता है।
.
घरेलू उत्पादन को बेहतर करनाही एकमात्र समाधान
मक्का आयात के नकारात्मक प्रभावों को कम करने के लिए, भारत को घरेलू मक्का उत्पादन को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इस समस्या का समाधान केवल मक्का के आयात को रोकना नहीं है, बल्कि भारत के घरेलू किसानों में निवेश करना और उन्हें सशक्त बनाना है। सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना और सुधार करना चाहिए और भारतीय किसानों को जैव ईंधन रणनीति के केंद्र में रखना चाहिए।नीति-निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि भारत में मक्का उत्पादन को कैसे और बेहतर ढंग से प्रोत्साहित, समर्थित और संरक्षित किया जाए।

भारत के मक्का किसानों को बेहतर बुनियादी ढांचे, बीज, सब्सिडी और तकनीक तक पहुंच की आवश्यकता है ताकि वे अपनी उपज बढ़ा सकें। उन्हें यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उनकी फसलें आयातित मक्के से कम मूल्यांकित नहीं होंगी। इसके अलावा, भंडारण और वितरण प्रणाली में सुधार करने के कदम उठाने होंगे, जो अक्सर मक्का फसलों के बर्बाद होने का कारण बनते हैं।घरेलू मक्का उद्योग में निवेश करना केवल उनकी आर्थिक सुरक्षा के लिए नहीं है, बल्कि भारतीय किसानों का सम्मान वापस लाने के लिए भी है।

यह उनके योगदान को सम्मानित करने और यह मान्यता देने के बारे में है कि वे भारत की कृषि अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं। मक्का का आयात भारत की बढ़ती मांग के लिए एक तात्कालिक समाधान प्रदान कर सकता है, लेकिन यह देश की कृषि पहचान की नींव को कमजोर कर रहा है।
मक्के की खेती भारत में मजबूती, अनुकूलन और विकास की कहानी है। एथेनॉल की बढ़ती मांग ने मक्का को मुख्यधारा में ला दिया है, जो किसानों और उद्योगों के लिए नए अवसर पैदा कर रही है।

हालाँकि, बढ़ती आयात निर्भरता इस सफलता की कहानी को खतरे में डाल रही है। भारत को मक्का के शक्तिशाली उत्पादक के रूप में सच्चे विकास के लिए औद्योगिक विकास की आवश्यकताओं के साथ किसानों और पर्यावरण की जरूरतों का संतुलन स्थापित करना होगा।केवल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देकर और स्थानीय उत्पादकों की रक्षा करके ही भारत अपनी मक्का किसानों समृद्धि और सम्मान सुनिश्चित कर सकता है।
डॉ. ममतामयीप्रियदर्शिनी,
पर्यावरणविद्, सामाजिक कार्यकर्त्ता
स्टेट चेयरपर्सन, इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन, दिल्ली

Leave A Reply

Your email address will not be published.