एक के बाद एक आती गईं लाशें… लग गया ढेर, चीखों से सहमा रहा सैमरा; रो पड़ा पूरा गांव

हाथरस – एक दर्दनाक सड़क हादसे ने आगरा के सैमरा गांव को गहरे मातम में डुबो दिया। हाथरस में मैक्स पिकअप और बस की टक्कर ने पूरे परिवार को बिखेर दिया। इस हादसे में एक ही परिवार के 12 लोगों समेत 16 लोगों की मौत हो गई, जिसके बाद सैमरा गांव चीखों से गूंज उठा। जैसे-जैसे एंबुलेंस से शव आते गए, पूरे गांव में कोहराम मचता रहा। बेदरिया और उनके परिवार के लोग शवों से लिपटकर बिलखते रहे, और गांव का हर कोना मातम में डूब गया।

सैमरा गांव के पांच भाइयों—बेदारिया, लतीफ, मुन्ना, चुन्नासी और नूर मोहम्मद—के घरों में मातम पसरा हुआ है। हादसे में बचे हुए परिजन अपने प्रियजनों की लाशों का इंतजार कर रहे थे। एंबुलेंस के हूटर की आवाज़ सुनते ही परिजनों की चीखें और तेज हो जातीं। पोस्टमार्टम के बाद रात तक 12 शव गांव पहुंच चुके थे, जिनमें बच्चे, युवक-युवती और बुजुर्ग शामिल थे।

विलाप और चीखें चीर रही थीं दिलों को
शवों से लिपटकर परिजनों का विलाप और उनकी करुण चीखें गांव वालों के सीने को चीर रहीं थीं। पड़ोसी नसुरुद्दीन ने बताया कि बेदरिया की बेटी असगरी, जो सासनी के गांव मुकुंदखेड़ा में ब्याही थी, अपनी दादी सास के चालीसा में शामिल होने के लिए अपने परिवार के 35 सदस्यों के साथ मैक्स गाड़ी से गई थी। किसे पता था कि उनमें से कई लोग लौटकर कभी नहीं आएंगे।

  • गांव में मातम, नहीं जले चूल्हे
    इस हादसे के बाद पूरे सैमरा गांव में मातम छा गया है। पांचों भाइयों के परिवार की यह त्रासदी पूरे गांव के दिल को झकझोर रही है। गांव के किसी भी घर में चूल्हे नहीं जले। सभी गांव वाले मृतकों के परिजनों को सांत्वना देने के लिए एकजुट हो गए। पड़ोसी वसीम खान ने बताया कि सैमरा में करीब 8000 की आबादी है, और पूरा गांव इस दुख की घड़ी में उनके साथ खड़ा है।

तंबू लगाकर रखे गए शव
जब 16 शव गांव पहुंचे तो उन्हें रखने के लिए पुलिस को जगह की तलाश करनी पड़ी। पहले पंचायत घर की जमीन देखी गई, फिर स्कूल में शवों को एकत्रित करने का निर्णय लिया गया। हालांकि, स्कूल के गेट का ताला न खुल पाने की वजह से शवों को स्कूल परिसर के बाहर तंबू लगाकर रखा गया।

स्कूल जाने की तैयारी में थे मासूम
10 साल के अल्फेज और 9 साल के अली जान, जो अब कभी स्कूल नहीं जाएंगे, अपने भाई-बहनों के साथ खुशी-खुशी दादी के घर गए थे। वे अपने स्कूल बैग पहले से तैयार करके गए थे ताकि शनिवार सुबह स्कूल जा सकें, लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह उनका आखिरी सफर होगा। परिवार की महिलाओं ने बताया कि बच्चों के बस्ते अब घर में पड़े हैं, लेकिन उन्हें लेकर स्कूल जाने वाला कोई नहीं बचा। घर का आंगन अब उन मासूमों की हंसी के बिना सूना हो गया है।

 

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