रामपुर में दलितों ने लिखित ज्ञापन राष्ट्रपति को जिलाधिकारी द्वारा सौपा

रामपुर:  उत्तर प्रदेश ज्ञापन के माध्यम से सादर अवगत कराना चाहता है जैसा कि सर्वविदितक है कि सर्वोच्च न्यायालय के सात न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने 6-1के निर्णय में पंजाब राज्य बनाम देविन्दर सिह आदि व 22 अन्य अपील में दिनांक 01.08.2024 को एससी/एसटी के आरक्षण में वर्गीकरण कोटा में कोटा एवं क्रीमी लेयर का जो असंवैधानिक निर्णय दिया है वह संविधान में दिए गए प्रावधानों/अनुच्छेद के अनुरूप नहीं है, इस गैर संवैधानिक निर्णय से पूरे हक वंचित समाज की भावनाएं आहत हुई हैं, उनके संवैधानिक मूल अधिकारों का पूरी तरह हनन हुआ है, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 341 एवं 342 राज्यों को अनुसूचित जाति की सूची में हस्तक्षेप की इजाजत नहीं देता। अनुसूचित जाति की अलग सूची तैयार करने का मूल आधार हिंदू समाज में व्याप्त छुआछूत है एवम इस वंचित समाज में आज भी बहुत दरिद्रता व्याप्त है,इसलिए इसे सामाजिक, शैक्षणिक व आर्थिक रूप से पिछड़ी जातियों (ओबीसी) से जोड़कर नहीं देखा जा सकता और न ही क्रीमी लेयर द्वारा वर्गीकरण किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय फूट डालो- राज करो की नीति पर आधारित है । सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से देश के करोड़ों अनुसूचित जाति के लोगों में भारी रोष व्याप्त है जनपद रामपुर वंचित समाज जनहित में मांग करता है किः-
1- यह कि भारत सरकार सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिनांक- 01.08.2024 को एससी/एसटी आरक्षण के विरुद्ध दिए गए असवैधानिक निर्णय को संसद में कानून बनाकर रद्द करें और आरक्षण को संविधान की नौवीं अनुसूची में डाला जाए। आरक्षण अनुच्छेद 15 और 16 के अंतर्गत आते हैं और संविधान के मौलिक अधिकार हैं संविधान के अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 के तहत, संसद में निहित शक्ति है। एससी, एसटी का उपवर्गीकरण
2- संवैधानिक प्रविधानों के खिलाफ है। अनुच्छेद 341 और अनुच्छेद 342 में जारी राष्ट्रपति की सूची में कोई भी बदलाव सिर्फ संसद कर सकती है, राज्यों को यह अधिकार नहीं है। सरकार को संसद में बिल लाना चहिये और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय निष्प्रभावी हुआ।
शीर्ष अदालत ने 2024 में फैसला सुनाया था कि सदियों से बहिष्कार, भेदभाव और अपमान झेलने वाले एससी समुदाय सजातीय वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनका उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। सुप्रीम ने 2004 के इस फैसले को पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट की ओर से किए गए उप-वर्गीकरण से एक ही श्रेणी की जातियों के बीच संघर्ष हो सकता है. साथ ही, इस उप-वर्गीकरण के मानदंड स्पष्ट नहींहैं. अगर इस तरह से उप-वर्गीकरण वर्गीकरण किया गया है, तो ऐसा हो सकता है कि किसी जाति समूह को वर्षों तक आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा. उपरोक्त षडयंत्र आपत्तिजनक है ”
3- यह कि भारत सरकार शीघ्रता- शीघ्र पूरे भारत में जातिगत जनगणना शुरू करें ताकि देश में किस वर्ग की कितनी संख्या है उसका पता चल सके तथा उसके अधिकार उसे मिल सकें ।
4- समस्त एससी,एसटी,में बंटवारा करके ,क्रीमीलेयर लाकर इन्होंने आरक्षण को खत्म करने की एक बहुत सोची समझी नीति अपनाई है। क्योंकि जो भी आरक्षण से बाहर होता जायेगा वो आरक्षण के विरोध में आता जायेगा। इस तरह आरक्षण सपोर्टर की संख्या कम होती जायेगी और एक दिन सीधे ही खत्म कर देंगे । विरोध करने वाले जो कम पढे लिखे गरीब हैं, वो आवाज ही नहीं उठा पायेंगे। और आरक्षण खत्म।सरकार को संसद में बिल लाना पड़ा और सुप्रीम कोर्ट का निर्णय निष्प्रभावी हुआ।
5- देश में जो आरक्षण व्यवस्था है वह आर्टिकल 340,341 और 342 के तहत है जिसमें आर्टिकल 340 ओबीसी के लिए तो 341 अनुसूचित जातियों और 342 अनुसूचित जनजातियों के लिए है।इन सबका निर्धारण किसी अमीरी और गरीबी को आधार बनाकर नही किया गया है और न ही किए जाने का संवैधानिक प्राविधान है।
6-संविधान ने 340 में सामाजिक एवं शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर ओबीसी केटेगरी बनाने को कहा है तो 341 में इसके साथ अछूतपनध्छुआछूत तो 342 में आदिवासी वाले समूहों को रखा है। एससी और एसटी को उनके आबादी के अनुपात में 22.5 प्रतिशत का आरक्षण दिया है जो आजादी के 77 साल बाद भी संपूर्ण तौर पर संतृप्त नही हो पाया है।
7-यह कि भारत सरकार आरक्षण अधिनियम बनाए ताकि आरक्षण के विरुद्ध कार्य करने वालो के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जा सके।
8- देश हजारों साल से एक बहुत बड़ी आबादी को अछूत और असभ्य कहकर सारे संसाधनों से महरूम किए हुए था जिन्हे 1950 में लागू संविधान में बाबा साहब डा अम्बेडकर जी के अथक प्रयासों से आर्टिकल 341 और 342 अंतर्गत विशेष अवसर के सिद्धांत के तहत कुछ विशेष सहूलियतें दी गईं जिनकी बदौलत इन वर्गों की अधिकतम दूसरी पीढ़ी सरकारी नौकरियों में आ पाई हैं जो कुछ लोगों के लिए चिंता का शबब हो गई है। एससीध्एसटी को आरक्षण 22.5 प्रतिशत है राष्ट्रपति महोदया, से अनुरोध है कि अपने स्तर से इस मामले का निस्तार करने का कष्ट करें मा प्रधामन्त्री से अनुरोध है कि सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को सांसद की कैबिनेट में आरक्षण बिल पास कराकर संपूर्ण दलित समाज को टूटने ना दे,जिसे दलित समाज आपका हमेशा आभारी रहेगा.

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