मुख्यमंत्री की मंशा के अनुरूप जिले की धौरी, बैगुल, सैंजनी, बहल्ला, चौगजा और रेवती नदियों का हो रहा जीर्णोद्धार

जिलाधिकारी जोगिंदर सिंह और मुख्य विकास अधिकारी नंदकिशोर कलाल के नेतृत्व में चल रहा है अभियान जल संरक्षण को बढ़ावा देने और प्राकृतिक संपदाओं के प्रति जन जागरूकता के लिए लगातार प्रयास जारी

रामपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुरूप प्राकृतिक संसाधनों को उनके मूल स्वरूप में बनाए रखने और विलुप्त हो रहे जल संग्राहक के रूप में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए प्रशासनिक स्तर से जनपद में नदियों का जीर्णोद्धार एक महत्वपूर्ण कदम है जो पर्यावरणीय संतुलन और स्थानीय जीवन को समृद्ध करने की दिशा में उठाया गया प्रयास है। यह प्रयास न केवल जल संसाधनों की बहाली के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय कृषि, पशुपालन और लोगों के जीवन स्तर को भी बेहतर बनाने में बहुत महत्वपूर्ण है। सहायक अभियंता लघु सिंचाई जितेंद्र सैनी ने बताया कि जिले की प्रमुख नदियाँ रामगंगा और कोसी पिछले कुछ वर्षों में अल्पवर्षा और अत्यधिक प्रदूषण के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुई हैं। इन नदियों का जल स्तर व जलधारण क्षमता घट गई है और जल की गुणवत्ता भी बहुत खराब हो गई है। इस संकट को समझते हुए प्रशासन और स्वयंसेवी संगठनों ने मिलकर नदियों के पुनर्जीवन के लिए एक व्यापक योजना बनाई है।
सबसे पहले नदियों के प्रवाह को पुनर्जीवित करने के लिए इन नदियों एवं उनकी सहायक नदियों के साथ साथ अनेक छोटे बड़े बरसाती नालों की सफाई की जा रही है जिससे कि अधिक से अधिक वर्षा जल प्रमुख नदियों तक पहुँच सके। नदियों के किनारों पर अवैध निर्माणों को हटाया जा रहा है और अवरोधों को भी समाप्त किया जा रहा है। इसके अलावा, नदियों के जलग्रहण क्षेत्र में वृक्षारोपण अभियान चलाया जा रहा है ताकि जल संरक्षण को बढ़ावा मिल सके। वृक्षारोपण से न केवल मिट्टी का कटाव रोका जा सकेगा, बल्कि भूजल स्तर भी सुधरेगा। उन्होंने बताया कि जनपद में विभिन्न नदियों पर जीर्णोद्धार कार्य करवाए जा रहे हैं जिनमें जनपद के विकास खण्ड चमरौआ में रेवती नदी 6 ग्राम पंचायतों से लगभग 12.6 किमी लम्बाई में प्रवाहित हुआ करती थी जोकि वर्तमान में विलुप्त होने के कगार पर है। वर्तमान में सभी 6 ग्राम पंचायतों में नदी को प्रशासन द्वारा कब्जामुक्त कराते हुए इसके प्राकृतिक स्वरुप को पुनः स्थापित कराया जा रहा है ।
अतिरिक्त वर्षा जल को भू गर्भ में रिचार्ज करने हेतु मनरेगा द्वारा 50 रिचार्ज शाफ़्ट का निर्माण कराया जा रहा है। लघु सिचाई विभाग द्वारा 4 एनिकट चेक डैम का निर्माण कराया जाना प्रस्तावित है । रेवती नदी के जीर्णोद्धार में स्थानीय निवासियों के साथ साथ एनजीओ आर्ट ऑफ़ लिविंग एवं इंडस्ट्री रेडिको खेतान प्राइवेट लिमिटेड का विशेष सहयोग लिया जा रहा है। नदी के दोनों किनारों पर 20000 वृक्षारोपण भी कराया जा रहा है। अन्य नदियों में चौगज़ा नदी जनपद के विकास खण्ड सैदनगर से प्रवाहित होती है। यह कोसी नदी की सहायक नदी है। इसकी 3 किमी लम्बाई है मनरेगा द्वारा डिसिल्टिंग कार्य, किनारों की साफ़ सफाई, वाटरशेड डेवलपमेंट एवं वृक्षारोपण आदि कार्य करवाए जा रहे हैं। बहल्ला नदी भी जनपद के विकास खण्ड सैदनगर से प्रवाहित होती है एवं कोसी नदी की अन्य सहायक नदी है। ग्राम पंचायत बैंजना में बहल्ला नदी में एनजीओ आर्ट ऑफ़ लिविंग एवं इंडस्ट्री रेडिको खेतान प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से सबसरफेस डाइक का निर्माण करवाया गया है। सबसरफेस डाइक एक प्रकार का भूमिगत बांध (अंडर ग्राउंड डैम) है जो नदी के बेस फ्लो को रोककर नदी के जल को स्वच्छ करते हुए भूगर्भ जल स्तर को बढाता है ।
मनरेगा के कन्वर्जेन्स से विकास खण्ड बिलासपुर ग्राम पंचायत चंदोला में सैंजनी नदी का जीर्णोंद्धार कार्य कराया जा रहा है।
ग्राम पंचायत में उत्तराखण्ड बॉर्डर से कार्य को प्रारम्भ कराकर लगभग 2 किमी लम्बाई में नदी के आस पास की भूमि को जलमग्न होने से बचाने का कार्य किया। पूर्व में यह नदी कई स्थानों पर सिल्ट से पूरी तरह भर चुकी थी तथा नदी की कुल चौड़ाई मात्र 2 से 3 मीटर ही रह गयी थी। वर्तमान में डिसिल्टिंग एवं किनारों की साफ़ सफाई के पश्चात नदी में जल का प्रवाह सतत रूप से होने लगा है तथा नदी की चौड़ाई 5 से 10 मीटर तक हो गयी है। विकास खण्ड बिलासपुर में बैगुल नदी से पिपरा बॉर्डर तक कुल 4.2 किमी लम्बाई में धौरी नदी का जीर्णोंद्धार किया गया है। धौरी नदी के जीर्णोंद्धार से विकास खण्ड बिलासपुर की लगभग 6 ग्राम पंचायतों के साथ साथ सीमावर्ती जिले बरेली के भी लगभग 65 ग्रामों को सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हुआ है।
विकास खण्ड बिलासपुर में ही उत्तराखंड बॉर्डर पर स्थित कीरतपुर ग्राम से चंदायन बॉर्डर पर लगभग 3 किमी लम्बाई में डिसिल्टिंग, तटबंध निर्माण एवं वृक्षारोपण आदि कार्य करवाए जा रहे हैं।
प्रदूषण नियंत्रण के लिए उद्योगों और स्थानीय निवासियों को जागरूक किया जा रहा है। उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट को नदियों में सीधे बहाने पर रोक लगाई गई है और इसके लिए सख्त नियम बनाए गए हैं। जल संसाधनों का सतत उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सामुदायिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जा रहा है। स्थानीय समुदायों को नदियों की सफाई और संरक्षण कार्यों में शामिल किया जा रहा है। इसके लिए जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है और लोगों को नदियों की महत्ता और उनके संरक्षण के तरीकों के बारे में लोगों को शिक्षित किया जा रहा है। नदियों के पुनर्जीवन के प्रयासों का सकारात्मक प्रभाव धीरे-धीरे दिखाई देने लगा है। जिले में जल की गुणवत्ता में सुधार हो रहा है और जल स्तर भी बढ़ रहा है, इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हो रही है और पशुपालन को भी प्रोत्साहन मिल रहा है। साथ ही, स्वच्छ जल उपलब्ध होने से स्थानीय निवासियों के स्वास्थ्य में भी सुधार हो रहा है। जिले में नदियों का पुनर्जीवन एक आदर्श उदाहरण है जो यह दर्शाता है कि सही योजना और सामुदायिक सहभागिता से प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण और पुनर्जीवन संभव है। यह पहल न केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी एक महत्वपूर्ण धरोहर है, जो हमें सतत विकास की ओर अग्रसर करती है। जिले में नदियों के पुनर्जीवन का यह अभियान हमें यह सिखाता है कि यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें तो हम अपने प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित कर सकते हैं और अपने पर्यावरण को सुरक्षित बना सकते हैं। यह प्रयास हमें एक नई और स्वच्छ दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है।

 

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